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20 लाख साल पहले आग पर पकाया खाना, फिर परमाणु बम खोजा, अब कौन सा नया खतरा इजाद कर रहा इंसान

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ऐसी मशीन होगी जो वो सब कर सकती है जो एक इंसान करता है. आर्टिफिशिअल इंटेलिजेंस , एक डॉक्टर, एक चित्रकार, एक शिक्षक, एक ड्राइवर, या एक निवेशक के काम भी कर सकती है.

1830 तक लोगों ने ये कल्पना नहीं की होगी एक स्विच को दबाते ही पूरे घर में उजाला हो जाएगा. या फिर 1983 तक हमारे-दादा दादी ने ये कल्पना नहीं की होगी कि एक बटन दबाते ही वो दूर देश में बैठे अपने बेटे-बेटियों से बात कर लेंगे.  बिजली से लेकर स्मार्टफोन तक साइंस के ऐसे खोज हैं जिन्होंने हमारे आसपास की दुनिया को पूरी तरह से बदल कर रख दिया.

इसी तरह, हमारे लिए भी भविष्य में आने वाली उन सभी खोजों की उम्मीद करना कल्पना से परे है जो हमारे जीवन को पूरी तरह से बदल के रख देने वाली है. यानी हमारा भविष्य आज की दुनिया से बहुत अलग दिख सकता है. अतीत में तकनीक का विकास बहुत धीरे-धीरे हुआ है लेकिन आने वाले समय में तकनीकी विकास इतनी तेजी से होने वाला है कि हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. 

तकनीक की शुरूआत  लाखों साल पहले हुई थी. आग की खोज, लेखन और खेती के लिए अलग-अलग तरह की बेसिक खोजों को करने में हर खोज के बीच के हजार सालों का अंतराल था. 

1800 के बाद कई बड़े आविष्कार हुए और इनके बीच का गैप पहले हुए आविष्कारों से काफी कम था. यानी तकनीक की दुनिया में इंसान तेजी से तरक्की करने लगा. आप संचार में प्रिटिंग प्रेस, टेलीग्राफ , टेलीफोन और फिर स्मार्टफोन से लेकर लिखने के लिए कागज से लेकर नोटपैड के आविष्कार पर नजर डालिए . ऐसा लगता है कि इंसान ने किसी उड़न खटौले पर बैठ कर बड़ी तेजी से इन सभी चीजों की खोज कर ली. 

 1903 में, इंसान ने पहली बार हवा में उड़ान भरी. ये उड़ान 1 मिनट से कम के लिए थी. और सिर्फ 66 साल बाद, इंसान चांद पर पहुंच गया. यानी एक ही पीढ़ी के लोगों ने उन दो खोजों को देखा जो कभी कल्पना थीं. पहला विमान और दूसरा चांद पर लैंडिंग. तकनीक और साइंस ने ही बीमारियों से लड़ने के लिए टीके जैसी खोज की तो वहीं परमाणु बम की खोज करके अपनी ही जिंदगियों को खतरे में डाल दिया. 

अगले दशक में क्या खोज करेगा इंसान? 

इसमें कोई शक नहीं है कि इंसानों ने कई तरह के टीके , कैंसर जैसी बीमारीयों का इलाज, कम्यूनिकेशन के बेहतरीन ऑप्शन खोज निकाले हैं. ऐसा लगता है कि तकनीक की दुनिया में हम बहुत आगे निकल चुके हैं. रिसर्च के मुताबिक आज पैदा हुए बच्चों की उम्र ज्यादा होगी, यानी वो लंबे समय तक जिंदा रहेंगे. इसकी वजह बेहतर आने वाले समय में बेहतर पर्यावरण होगा, जो साइंस की ही देन होगी. 

इंसानों ने अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए कई रिसर्च और खोजें की हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब भी कुछ बचा है जो इंसान के जीवन को और बेहतर बनाएगा. इसका जवाब है कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशिएल इंटेलिजेंस. 

आर्टिफिशिएल इंटेलिजेंस अब तक का सबसे बड़ी तकनीक मानी जा रही है. इसकी सबसे वजह ये है कि ये इंसानी दिमाग को जो पहले से ही सबसे ज्यादा तेज है और तेज करेगी. आर्टिफिशिएल इंटेलिजेंस से जो काम दशकों में होता वो महज एक साल में ही हो सकेगा.

आर्टिफिशिएल इंटेलिजेंस ही आने वाले वक्त की सच्चाई

एआई तकनीक पहले से ही हमारी दुनिया को बदल रही है. एआई तकनीक इंसान की जिंदगी में इस तरह की तकनीक लाएगा जिसकी हम अभी कल्पना भी नहीं कर सकते. कई एआई विशेषज्ञों का मानना है कि अभी का समय एक ऐसा समय है जो अगले दशकों के भीतर उन्नत एआई को लेकर आएगा.  

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस  को इस तरह से समझें कि कोई एक ऐसी चीज आपके घर में है और वो आपके दिमाग से भी ज्यादा तेज काम करती है. ये सुनने में जरूर किसी किताब के पन्ने पर लिखा एक वाक्य लग रहा होगा लेकिन यकीन मानिए यही आने वाले वक्त की सच्चाई है. 

एक ह्यूमन लेवल की एआई मशीन, या कई मशीनों का एक नेटवर्क होगा, जो वो सारे काम करेगा जो हम और आप करते हैं. यानी ये मशीनें  "कुछ भी करने में सक्षम है जो एक इंसान कर सकता है. आर्टिफिशिअल इंटेलिजेंस , एक डॉक्टर, एक चित्रकार, एक शिक्षक, एक ड्राइवर, या एक निवेशक के काम को करने में सक्षम होगा. 

आज फोटोग्राफी, रेडियो, एंटीबायोटिक्स, इंटरनेट, हमारे लिए आम है. अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन हमारे ग्रह का चक्कर लगा रहा है ये सब कुछ पीढ़ियों पहले हमारे पूर्वजों के लिए अकल्पनीय था.  एआई भी हमारे लिए अभी इमैजिनेशन से परे है. लेकिन ये भी सच है कि एआई सिस्टम और प्रौद्योगिकियों का निर्माण तेजी से पूरी दुनिया में हो रहा है. 30 नवंबर को लॉन्च किया गया चैटजीपीटी एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) सर्च इंजन इसी का एक जवाब है. 

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और खतरे

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को सबसे सरल भाषा में ऐसे समझिए की ये वो सारे काम करता है जो आमतौर पर एक बुद्धिमान लोगों के जिम्मे होते हैं.

यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड की एसोसिएट प्रोफेसर मारियारोसारिया टडेओ ने बीबीसी को बताया कि "मैं अक्सर कहती हूं कि ये क्लास में साथ पढ़ने वाले उस साथी की तरह हैं जिसे काफी अच्छे नंबर मिलते हैं क्योंकि वो रट के जवाब दे देते हैं लेकिन वो क्या बता रहे हैं, उन्हें इसकी समझ नहीं होती है."

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दायरा लगातार बढ़ रहा है. स्मार्ट फोन, कंप्यूटर और वॉइस असिस्टेंस के जरिए हमारी जिदगी को आसान बना रही हैं. साथ ही खाना, कार और दूसरी चींजें ऑनलाइन ऑर्डर कर रहे हैं  और उनके लिए पेमेंट भी तकनीक से ही कर रहे हैं.  इसका दायरा लगातार बढ़ रहा है.

मारियारोसारिया का कहना था कि "देश के सुरक्षा के लिए भी अब तकनीक का ही इस्तेमाल हो रहा है. गिरवी रखने और लोगों को कर्ज देने से जुड़े कई मामले एआई पर आधारित होते हैं."वहीं हेल्थ केयर से जुड़े कुछ क्षेत्रों में भी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया जा रहा  है. आने वाले समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल 'जीनोमिक्स' में हो सकता है. इससे कैंसर, डायबिटीज और अल्जाइमर का बेहतर इलाज तलाशा जा सकेगा. 

लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सबसे बड़ी दिक्कत ये होगी कि इससे इंसान पूरी तरह से टेक्निकल बायस हो जाएगा.  ये मान लिया जाएगा कि तकनीक हमेशा सही होगी. हम मशीन को काम सौंप कर निगरानी तक नहीं करने के आदी हो जाएंगे. इसका एक उदाहरण एलेक्सा रह चुका है. अभी हम इंसानी जिंदगी में मोबाइल के दुष्प्रभावों से उबर भी नहीं पाए हैं. इन मशीनों के जरिए क्या-क्या होगा आप सोच सकते हैं.

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