लाइफ साइंस यानि जुड़ा तमाम डाटा संग्रह करने के लिए दिल्ली से सटे फरीदाबाद में देश में पहला इंडियन बायोलाजिकल डाटा सेंटर (आइबीडीसी) बनाया गया है. जिससे लाइफ साइंस यानि जीवन विज्ञान के क्षेत्र में कामयाबी की राह खुल गई है. ये सेंटर फरीदाबाद में रिजनल सेंटर ऑफ बायाटेक्नॉलाजी में बनाया गया है. केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने गुरुवार को इस सेंटर का अनावरण किया. इस मौके पर उन्होंने इसे मेडिकल रिसर्च के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया.


इस मौके पर उन्होंने कहा कि इस सेंटर के जरिए आने वाले समय में कोरोना जैसी बीमारियों की पहचान और रिसर्च में मदद मिलेगी. साथ ही इस सेंटर से एक घंटे में ही किसी भी बीमारी की जिनोम सीक्वेंसिंग की जा सकेगी और ये सेंटर साइफ साइंस से जुड़े तमाम डाटा का संग्रह कर सकेगा. ये देश का ऐसा पहला सेंटर है. जहां लाइफ सांइस का डाटा संग्रह किया जा सकेगा.


जबकि आज से पहले ऐसा कोई भी लाइफ साइंस डाटा स्टोर करके रखने का सेंटर देश में नहीं था. इसके लिए यूरोप और अमेरिका जैसे देशों पर हमें निर्भर रहना पड़ता था. क्योंकि इन देशों के पास ही इस तरीके के लाइफ साइंस डाटा को स्टोर करने के लिए डाटा बैंक की सुविधा उपलब्ध है. लेकिन अब हमें इन देशों पर निर्भर नहीं रहना होगा.


जानकारी के मुताबिक 100 करोड़ की लागत से बनाए गए, इस लाइफ साइंस डाटा सेंटर के पास 4 पेटाबाइट तक स्टोरेज रखने की क्षमता है और ये उच्च क्षमता वाली सुपर कंप्यूटिंग सुविधा 'ब्रह्म' से लैस है. 


इसको लेकर आइबीडीसी के कार्यकारी निदेशक प्रो सुधांशु व्रती के मुताबिक इस सेंटर की मदद से देश के पास लाइफ साइंस से जुड़ा डाटा उपलब्ध होगा और ये डाटा सभी कानूनी अड़चनो के बिना उपलब्ध हो सकेगा.


इसके साथ ही उनके मुबातिक कम्प्यूटेशनल में गहन विश्लेषण करने में दिलचस्पी रखने वाले रिसर्चस् के लिए इस सेंटर में सभी सुविधाएं उपलब्ध होंगी.


प्रो सुधांशु व्रती ने बताया है कि आईबीडीसी में इसको 2 डाटा पोर्टलों में बांटा गया है, पहला इंडियन न्यूक्लियोटाइड डाटा आर्काइव होगा, जो इसी तरीके के अन्य देशों के साथ मिलकर काम करेगा. जबकि दूसरा पोर्टल आइएनडीए-एक्सेस कंट्रोल है, जिसका डाटा किसी अन्य देश के साथ साझा नहीं किया जाएगा.इस डाटा सेंटर के जरिए बिमारियों की पहचान और रिसर्च में मदद मिलेगी.


हमने ये देखा कि पिछले कुछ सालों में कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के वैरिएंट की पहचान के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग जांच की गई थी. इस दौरान भी डाटा शेयरिंग की बहुत जरूरत महसूस की गई थी.


बता दें जीनोम सिक्वेंसिंग किसी भी वायरस का बायोडाटा होता है. जिसमें ये पता चलता है कि वो वायरस कैसा दिखता है? वो वायरस कैसा है? ये पूरी जानकारी जीनोम सिक्वेंसिंग के जरिए मिलती है और कोरोना काल के दौरान इसकी काफी जरूरत पड़ी थी.


क्योंकि कोरोना के नए नए वैरिएंट सामने आ रहे थे. जिनका पता लगाने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग की जा रही थी और अब इस लाइफ साइंस डाटा सेंटर के बनने के बाद कोरोना के साथ-साथ हार्ट, टीबी, मोटापा और डायबिटीज जैसी कई अन्य बिमारियों को लेकर पूरी जानकारी और रिसर्च की जा सकेगी. क्योंकि इसका पूरा डाटा अपने देश में ही होगा. जिससे दूसरे देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा.