समाजवादी पार्टी के M-Y समीकरण से छिटक रहे हैं यादव? जानिए ये 4 बड़े घटनाक्रम
समाजवादी पार्टी 2014 से लगातार चुनाव हार रही है. कुछ उपचुनाव को छोड़ दें तो पार्टी लगातार झटके सह रही है. इसी बीच उसके कोर वोट बैंक यादव समुदाय से भी चुनौतियां मिलना शुरू हो गई हैं.
उत्तर प्रदेश में जब यादवों पर केंद्रित राजनीति की बात होती है तो समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का चेहरा बरबस ही सबसे पहले आता है. मुलायम सिंह यादव ने यूपी में यादवों को इकट्ठा करके करीब 8-9 प्रतिशत एकमुश्त वोटों पर कब्जा कर लिया और तीन दशकों तक प्रदेश की राजनीति के सिरमौर बने रहे.
मुलायम सिंह यादव की राजनीति की जमीन को तैयार करने में हरमोहन सिंह यादव का बड़ा हाथ रहा है. हरमोहन, यादव महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और मुलायम सिंह यादव पर उनका वरदहस्त था.
वैसे तो यादव महासभा सीधे राजनीतिक तौर पर सक्रिय कभी नहीं रही है. लेकिन मुलायम सिंह यादव को यादवों का नेता बनाने में इसका बड़ा योगदान रहा है. यादव महासभा के कई अध्यक्ष यूपी से रहे हैं और इनमें ज्यादातर मुलायम सिंह यादव के करीबी थे. हाल के ही कुछ वर्षों में देखें तो चौधरी राम गोपाल, चौधरी हरमोहन और इसी साल अध्यक्ष पद से हटे उदयवीर सिंह तीनों ही सपा और मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे हैं. इनमें हरमोहन और उदवीर तो सपा के सांसद रहे हैं.
इसी साल एक अद्भुत सियासी घटनाक्रम हुआ. द्वारिका में हुई यादव महासभा की बैठक में उदयवीर सिंह को अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसी बैठक में बंगाल के डॉ. सगुन घोष को राष्ट्रीय अध्यक्ष और बसपा सांसद श्याम सिंह यादव को कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया है.
ऐसा कई सालों बाद हुआ है कि जब यादव महासभा के शीर्ष दो पदों पर बैठे लोगों का समाजवादी पार्टी से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है. इनमें से श्याम सिंह यादव बीएसपी सांसद हैं जो यूपी में फिलहाल सपा के विरोध में खड़ी है.
यादव महासभा से जुड़ी दूसरी घटना भी इसी साल हुई है. 25 जुलाई 2022 को हरमोहन सिंह यादव की 10वीं पुण्यतिथि पर आयोजित एक कार्यक्रम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया. खास बात ये थी ही इस कार्यक्रम में मुलायम सिंह यादव के परिवार से किसी को नहीं बुलाया गया था. हरमोहन सिंह का यादव समाज का भले ही कभी चेहरा न रहे हैं लेकिन उनको लेकर सम्मान उतना ही नहीं जितना कि मुलायम सिंह यादव को लेकर.
हरमोहन सिंह यादव के बेटे सुखराम यादव जो कि सपा से ही राज्यसभा सांसद और यादव महासभा के उपाध्यक्ष हैं, पीएम मोदी को अपने पिता की पुण्यतिथि में बुलाकर जता दिया है कि अब अखिलेश यादव के साथ नहीं है.
यदुकुल पुनजार्गरण मिशन
तीसरी बड़ी घटना शिवपाल यादव और डीपी यादव के यदुकुल पुनजार्गरण मिशन से जुड़ी है. यादव समुदाय से आने वाले इन दो नेताओं ने अपने समाज के लोगों के हो रहे कथित उत्पीड़न के खिलाफ बीड़ा उठाया है. इस मिशन से 250 बड़े नेताओं को जोड़ने का दावा किया जा रहा है. इसमें सुखराम यादव का भी नाम जोड़ा जा रहा है.
हालांकि शिवपाल यदुकुल पुनजार्गरण मिशन को सामाजिक संगठन बता रहे हैं. लेकिन जिस तरह यादव महासभा समाजवादी पार्टी के लिए खाद-पानी तैयार करती थी शिवपाल और डीपी यादव का ये मोर्चा किसकी मदद करेगा ये देखने वाली बात होगी.
डीपी यादव के घर पहुंचे साक्षी महाराज
लेकिन इसी से जुड़े एक और दिलचस्प घटनाक्रम भी सामने आया है. बीते 20 अगस्त को ही नोएडा के सर्फाबाद गांव में डीपी यादव के पिता तेजपाल यादव की मूर्ति का अनावरण किया गया. एक भव्य कार्यक्रम में शिवपाल यादव, पूर्व कांग्रेस सांसद महाबल मिश्रा, अभिनेता रंजीत भी शामिल हुए थे. लेकिन इसी कार्यक्रम में उन्नाव से बीजेपी सांसद साक्षी महाराज भी मौजूद थे जो चर्चा का केंद्र थी. इस कार्यक्रम में समाजवादी पार्टी का कोई भी नेता मौजूद नहीं था.
abp न्यूज से बातचीत में योगी सरकार में मंत्री गिरीश चन्द्र यादव का कहना है कि यादव जनसंघ के जमाने से साथ थे. बीच में जब जातिवाद की बयार चली तो एक बड़ा हिस्सा सपा के साथ चला गया लेकिन जो पढ़ा-लिखा वर्ग जो काफी था उसने हमेशा बीजेपी का साथ दिया.
गिरीश यादव से जब अखिलेश यादव पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि अखिलेश यादवों के नेता हैं ये कहना एकदम गलत है. गिरीश यादव ने कहा, '2014, 2017, 2019 और 2022 का चुनाव अखिलेश यादव चुनाव हार गए. इसलिए ये कहना कि वो हमारी बिरादरी के बड़े नेता हैं ये कहना एकदम गलत है.'
गिरीश यादव ने कहा, 'बीजेपी में यादव से समाज से बड़े-बड़े नेता हैं. भूपेंद्र यादव जी कैबिनेट मंत्री और राष्ट्रीय महासचिव हैं. नित्यानंद राय जी हैं...' उन्होंने कहा कि अखिलेश ने कभी यादवों के लिए काम नहीं किया है उन्होंने सिर्फ घर-परिवार के लिए किया है.
यादवों के बीच बीजेपी की बढ़ती पैठ का दावा करते हुए गिरीश चंद्र यादव ने कहा कि आजमगढ़ में यादव बहुल बूथों पर भी सपा के प्रत्याशी धर्मेन्द्र यादव को हार का सामना करना पड़ा है.
हालांकि सपा नेता और यादव महासभा के पूर्व अध्यक्ष उदयवीर सिंह ने प्रधानमंत्री के हरमोहन सिंह के पुण्यतिथि में शामिल होने पर खास तवज्जो नहीं दी. उनका कहना था कि परिवर्तन होता रहता है. कौरवों के समय भी हुआ था.
M-Y समीकरण में बीजेपी लगा रही है सेंध
और यादव महासभा के बीच बिगड़ते समीकरणों के बीच बात करें बीजेपी की तो गैर यादव ओबीसी की राजनीति के दम पर पार्टी ने अच्छा-खासा वोट बैंक तैयार कर लिया है. लेकिन पार्टी इस बार के लोकसभा चुनाव में यूपी की सभी 80 सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है.
लेकिन इसके जरूरी है कि अपना वोट बैंक बनाए रखने के साथ ही दूसरी मजबूत पार्टी सपा के वोटबैंक में सेंध लगाना होगा. बीजेपी इस समय यूपी में पसमांदा मुसलमानों के बीच गुपचुप अभियान शुरू कर रखा है. इसके साथ ही यूपी में यादवों वोटों को बिखराव के लिए भी इस समुदाय के बड़े नेताओं को तैनात कर रही है.
बीजेपी की सबसे ताकतवर समिति संसदीय बोर्ड में भूपेंद्र यादव और सुधा यादव को सदस्य बनाया गया है. दोनों ही हरियाणा से आते हैं. इनके जरिए बीजेपी ने हरियाणा की अहिरवाल राजनीति और यूपी में यादवों को साधने की कोशिश की है. गिरीश यादव योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं जो खुलकर कहते हैं अखिले यादव बिरादरी के बड़े नेता नही हैं.
यूपी में यादव वोटबैंक पर एकछत्र राज करने वाली समाजवादी पार्टी के सामने अब यादवों के बीच से ही कई तरह की चुनौतियां निकलकर सामने आ रही हैं. समाजवादी पार्टी का दो दिवसीय अधिवेशन 28 सितंबर से लखनऊ में शुरू हो गया है. इसमें अखिलेश यादव का अध्यक्ष चुना जाना तय है. जाहिर इसमें इन चुनौतियों पर भी चर्चा जरूर होगी.