विश्वविद्यालय परीक्षाओं पर रोक लगाने का अंतरिम आदेश देने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. कोर्ट में दायर याचिकाओं में यूजीसी के उस गाइडलाइन को चुनौती दी गई है, जिसमें विश्वविद्यालयों से 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष के परीक्षा का आयोजन कर लेने को कहा गया है. आज कोर्ट ने सुनवाई 10 अगस्त तक के लिए टालते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय से मसले पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा. साथ ही, महाराष्ट्र में राज्य डिज़ाइनर मैनेजमेंट कमेटी की तरफ से जारी किए गए आदेश की कॉपी भी रिकॉर्ड पर रखे जाने के लिए कहा.


क्या है मामला


प्रणीत समेत 31 छात्रों, कानून के छात्र यश दुबे, शिवसेना की युवा इकाई युवा सेना, पश्चिम बंगाल के कॉलेज शिक्षकों की एक संस्था समेत कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि देश में कोरोना के मद्देनजर यूजीसी के निर्देश गलत हैं. अभी परीक्षा कराने से छात्रों के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा हो सकता है. जिस तरह से सीबीएसई की परीक्षा में एवरेज मार्किंग के जरिए रिजल्ट घोषित करने का आदेश दिया गया था, वैसा ही इस मामले में हो. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर यूजीसी से जवाब देने को कहा था. यूजीसी ने कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि अंतिम वर्ष की परीक्षा के आयोजन का फैसला छात्रों के हित में ही लिया गया है. छात्रों को ऑनलाइन और ऑफलाइन परीक्षा का विकल्प दिया जा रहा है. उनके स्वास्थ्य को बिना किसी खतरे में डाले परीक्षा ली जाएगी.


याचिकाकर्ताओं की दलील


आज मामले की सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यूजीसी ने हालात पर बिना सोच-विचार किए गाइडलाइंस जारी कर दी है. अब याचिकाओं पर जो जवाब दाखिल किया है, वह भी बिना सोचे दाखिल किया गया लगता है. देश में 16 लाख कोरोना के मामले हो चुके हैं. हर दिन हजारों लोग संक्रमित हो रहे हैं. अगर कॉलेज की परीक्षाओं का आयोजन नहीं होगा तो कोई आसमान नहीं टूट पड़ेगा.


सुनवाई के दौरान सिंघवी ने यह दलील भी दी कि कई विश्वविद्यालय ऑनलाइन परीक्षा कराने में सक्षम नहीं है. उनके पास इतनी सुविधा नहीं है. इस पर कोर्ट ने कहा कि छात्रों को ऑफलाइन परीक्षा का भी विकल्प दिया जाएगा. सिंघवी का जवाब था, "स्थानीय हालात और बीमारी के चलते कई लोग ऑफलाइन परीक्षा भी नहीं दे पाएंगे. यूजीसी का हलफनामा कहता है कि उन्हें बाद में परीक्षा देने का मौका मिलेगा. लेकिन इन सभी बातों से सिर्फ भ्रम बढ़ेगा. बेहतर हो कि परीक्षा को रदद् ही कर दिया जाए."


कोर्ट ने सुनवाई टाली


कुछ और याचिकाकर्ताओं ने केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से 20 जुलाई को जारी उन दिशा निर्देशों का हवाला दिया, जिनमें अभी भी लोगों के एक जगह पर जमा होने और स्कूल-कॉलेजों को खोलने से मना किया गया है. इस पर कोर्ट का कहना था कि यूजीसी ने 6 जुलाई को गाइडलाइंस जारी की थीं. उसके 20 जुलाई को गृह मंत्रालय की तरफ से जारी निर्देशों के हिसाब से होने की उम्मीद करना गलत है. एक याचिकाकर्ता ने महाराष्ट्र में राज्य डिजास्टर मैनेजमेंट कमेटी की तरफ से जारी नए आदेश का हवाला दिया, जिसमें स्कूल कॉलेज बंद रखने की बात कही गई है.


सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच ने पूरे मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय से अपना रुख बताने को कहा. साथ ही, महाराष्ट्र डिजास्टर मैनेजमेंट कमेटी की तरफ से जारी आदेश को भी रिकॉर्ड पर रखने को कहा. इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई 10 अगस्त तक के लिए टाल दी.


रोक का आदेश नहीं


सुनवाई के अंत में यूजीसी की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से यह स्पष्ट करने को कहा कि फिलहाल विश्वविद्यालय परीक्षाओं पर कोई रोक नहीं है. मेहता ने कहा, “कई लोग इस भ्रम में रहेंगे कि सुप्रीम कोर्ट में मामला आ जाने के चलते अब विश्वविद्यालय परीक्षा पर रोक लग गई है. उनके सामने स्थिति स्पष्ट होना जरूरी है, ताकि वह परीक्षा की अपनी तैयारियों को न रोक दें.“ इस पर जजों ने कहा, “हम फिलहाल कोई अंतरिम रोक नहीं लगा रहे हैं. मामले में पूरी सुनवाई के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा.“


याचिकाकर्ता पक्ष के एक वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने कोर्ट से असम और बिहार के बाढ़ ग्रस्त इलाकों में कॉलेज परीक्षा पर रोक लगाने की दरख्वास्त की. लेकिन कोर्ट ने इस पर भी कोई आदेश देने से मना कर दिया.