कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम के शिष्य रहे बृजलाल खाबरी को पार्टी की कमान सौंप दी है. दरअसल कांग्रेस के इस फैसले के पीछे प्रियंका गांधी की पूरी तरह से छाप दिख रही है और इसे लोकसभा चुनाव 2024 को देखते हुए एक बड़ा दांव माना जा रहा है.


इसके साथ ही 6 क्षेत्रीय प्रमुख भी बनाए गए हैं जिनमें अजय राय (भूमिहार) योगेश दीक्षित (ब्राह्मण), नकुल दुबे (ब्राह्मण), नसीमुद्दीन सिद्दिकी (मुस्लिम) वीरेंद्र चौधरी (ओबीसी) और अनिल यादव (ओबीसी) शामिल हैं. 


दरअसल यूपी में कभी दलित-ब्राह्मण और मुसलमान कांग्रेस का कोर वोटबैंक हुआ करते थे. लेकिन कांशीराम और मायावती के ऊभार के बाद दलित एकमुश्त होकर बीएसपी के साथ चले गए. ब्राह्मण अगड़ी जातियों की तरह बीजेपी में और मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी और कुछ बीएसपी को अपनी पार्टी बना लिया.


यूपी में ये तस्वीर 90 के दशक में मंडल और कमंडल की राजनीति के दौरान बनी और राज्य में कांग्रेस की दुर्दशा हो गई. लेकिन प्रियंका गांधी ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में प्रचार से लेकर रणनीति बनाने तक की कमान संभाली. 


उनकी टीम में 35 लोग शामिल किए गए और दलित वोटों को लेकर पूरा प्लान बनाया गया.  इस प्लान में 40 सीटों पर फोकस किया गया जिसमें दलित 20 प्रतिशत से ज्यादा हैं और इनमें से 17 सीटें आरक्षित थीं. जानकारी के लिए बता दें कि इस टीम में उस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल थे. 


2019 में कांग्रेस ने एक तरह से बीएसपी सुप्रीमो मायावती को सोचने के लिए मजबूर कर दिया था जो यूपी में खुद को दलित नेता के तौर पर स्थापित करके मुख्यमंत्री की कुर्सी तक जा चुकी थीं.उस समय कांग्रेस का हर कदम मायावती को चिढ़ाने वाला था.



  • लोकसभा चुनाव 2019 में मध्य प्रदेश की गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट से बीएसपी नेता लोकेंद्र सिंह राजपूत को कांग्रेस ने अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था. हालांकि कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया तब भी इस सीट से जीत नहीं पाए.

  • यूपी में बीएसपी नेता और मायावती के करीबी रहे नसीमुद्दीन सिद्दिकी को कांग्रेस ने बिजनौर से लोकसभा का टिकट दे दिया था.

  • पश्चिमी यूपी में भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर रावण को कांग्रेस ने स्थापित करने की पूरी कोशिश कर रही थी.

  • मध्य प्रदेश में उस समय कमलनाथ की सरकार बनवाने के लिए बीएसपी के दोनों विधायकों का समर्थन मिला. लेकिन किसी को भी मंत्री पद नहीं दिया गया था. यहां तक कि लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने बीएसपी को सीट समझौते के नाम पर भी ठेंगा दिखा दिया.

  • सबसे बड़ा झटका कांग्रेस ने बीएसपी को राजस्थान में दिया था. जब पार्टी के सभी 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर लिया गया था. यानी इस राज्य में कांग्रेस ने बीएसपी का पूरी तरह से सफाया कर दिया था.


मायावती को कांग्रेस की ओर से किए जा रहे इन ताबड़तोड़ हमले का अंदाजा नहीं था. लेकिन उन्होंने भी कांग्रेस के प्लान को नाकाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. बता दें कि लोकसभा चुनाव में 2019 में यूपी में सपा-बसपा-कांग्रेस और आरएलडी का गठबंधन होने की बात कही जा रही थी.





लेकिन कांग्रेस जिस तरह से दलित वोटों में सेंध लगाने की कोशिश कर रही थी वो बीएसपी सुप्रीमो को नागवार गुजरा और उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से साफ इनकार दिया.  हालांकि नतीजे में सपा-बसपा के पक्ष में भी कुछ खास नहीं आए थे. 


पीएम मोदी की अगुवाई में राष्ट्रवाद की लहर पर सवार सभी जातिगत समीकरणों को ध्वस्त करते हुए 62 सीटें जीत ली थीं. हालांकि 2014 में एक भी सीट न जीत पाने वाली बीएसपी को इस बार 10 सीटें मिल गई थीं. सपा को 5 और कांग्रेस को मात्र एक सीट मिली थी.


बात करें 2022 के विधानसभा चुनाव में इस चुनाव में भी कांग्रेस कुछ खास नहीं कर पाई है. प्रियंका गांधी ने बिना किसी पार्टी से गठबंधन किए अकेले ही मैदान में उतरने का फैसला किया. लेकिन पार्टी की दुदर्शा हो गई. 


विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खाते में सिर्फ 2 सीटें आईं. कांग्रेस ने 399 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे जिसमें 387 की जमानत जब्त हो गई. पार्टी के खाते में 2.33 फीसदी वोट आए. कांग्रेस का यूपी में ये अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था. प्रदेश पार्टी अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू तक अपना चुनाव हार गए. बाद में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया. कई दिनों से ये पद खाली चल रहा था. इस बीच यूपी से प्रियंका गांधी भी पूरी तरह से गायब दिखाई दी हैं.


बृजलाल खाबरी जैसे दलित और जुझारू नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद माना जा रहा है कि प्रियंका गांधी अपने प्लान पर पर्दे के पीछे से काम रही हैं. उनके भाई राहुल गांधी जहां दक्षिण राज्य में भारत जोड़ो यात्रा के जरिए मोर्चा संभाले हुए हैं वहीं प्रियंका गांधी भी यूपी में जातिगत समीकरणों में पार्टी को स्थापित करने में अभी हार नहीं मानी है.


प्रियंका गांधी को पता है कि यूपी में कांग्रेस की दमदार वापसी के लिए पार्टी के पुराने कोर वोटबैंक को समेटना होगा जिसमें इस समय दलित समुदाय को समेटना आसान है. क्योंकि चुनाव दर चुनाव दलितों का झुकाव बीएसपी से हट रहा है. 


बीजेपी ने पीएम आवास और शौचालय जैसी योजनाओं के जरिए दलित वोटबैंक में सेंध लगाने में कामयाबी है. बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग में गैर यादव ओबीसी के साथ-साथ गैर जाटव दलित भी शामिल हैं.


कांग्रेस को लगता है कि बीजेपी ने भले ही राजनीतिक तौर जातिगत समीकरणों को अपने पाले में कर लिया है और मायावती की बीएसपी कुछ खास नहीं कर पा रही है. लेकिन जमीन पर आज भी दलितों को उनके हक की बात करने वाले नेता की जरूरत है. ऐसे में बृजलाल खाबरी पार्टी के लिए के लिए ट्रंप कार्ड साबित हो सकते हैं.


बात करें बृजलाल खाबरी की तो जालौन के खाबरी गांव के रहने वाले हैं. खाबरी कांशीराम के भाषणों से इतना प्रभावित थे कि उन्होंने घरबार तक छोड़ दिया था. कांशीराम ने साल 1999 के चुनाव में उनको जालौन लोकसभा का टिकट दिया था. खाबरी ने इस चुनाव में जीत दर्ज की और पहली बार सांसद चुने गए थे.
  
कांशीराम से उनकी नजदीकी इस बात से समझी जा सकती है कि जब अगले चुनाव में खाबरी हार गए तो बीएसपी संस्थापक ने उनको राज्यसभा भेज दिया था. दलितों के लिए संघर्ष बृजलाल खाबरी ने स्कूल के समय से ही कर दिया था. 





बताया जाता है कि साल 1977 एक बार कुछ दलितों के साथ मारपीट गई. 9वीं क्लास में पढ़ने वाले बृजलाल थाने में पहुंचकर दारोगा से बात की और आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा ही मानें. इसके बाद बृजलाल खाबरी जालौन के डीएवी पीजी कॉलेज में छात्रनेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई. दलितों के लिए संघर्ष करते हुए कांशीराम के नजदीक पहुंच गए. 


इंदिरा और राजीव गांधी के समय दलितों की पार्टी कही जाने वाली कांग्रेस एक बार फिर समाज में पैठ बनाने के लिए कांशीराम के शिष्य बृजलाल खाबरी को यूपी की कमान सौंपी है. कांग्रेस के इस कदम से कांशीराम की शिष्या और बीएसपी सुप्रीमो मायावती के लिए ये खतरे की घंटी हो सकती है.