नई दिल्ली: राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद (NCPUL) को अल्पसंख्यक मंत्रालय के अधीन किए जाने का विरोध शुरू हो गया है. कई विद्वान सरकार के इस प्रस्ताव के विरोध में खुलकर सामने आ गये हैं. उन्हें लगता है कि सरकार के इस फैसले से भारत की एकता को ठेस पहुंचेगी.
उर्दू को अल्पसंख्य मंत्रालयक के अधीन किए जाने का विरोध
उर्दू के जानेमाने प्रोफेसर गोपी चंद नारंग कड़ी आपत्ति जताते हुए कहते हैं, "सैकड़ों उर्दू लेखक हिंदू हैं. उर्दू हिंदी और फारसी भाषा का मिश्रण है. उर्दू भाषा को संरक्षित करने का काम मुगलों ने किया है. उर्दू और हिंदी के स्वर समान हैं. वास्तव में 70 फीसद उर्दू हिंदी है. अगर सरकार NCPUL के ट्रांसफर पर आगे बढ़ती है तो इससे समझा जाएगा कि उर्दू सिर्फ मुसलमानों की भाषा है." नारंग कहते हैं कि उर्दू की जड़ भारत में है. संविधान में इसे 22 भाषाओं में मान्यता दी गई है. पूर्व में हिंदुस्तानी कही जानेवाली भाषा के बारे में महात्मा गांधी राष्ट्रीय भाषा का दर्जा देना चाहते थे. उर्दू में लिखने वाले अतहर फारूकी का भी मानना है कि उर्दू के राष्ट्रीय कैरेक्टर को देखते हुए इसके लिए सबसे उपयुक्त जगह मानव संसाधन विकास मंत्रालय है. जम्मू-कश्मीर के प्रोफेसर और उर्दू के विद्वान सुखचैन सिंह सरकार की पहल के पीछे कोई तर्क नहीं समझते. प्रोफेसर सुखचैन कहते हैं, "उर्दू सिर्फ मुसलमानों की भाषा नहीं है. अगर यहां मीर हसन हैं तो दयाशंकर कौल नसीम भी हैं.
मुख्तार अब्बास नकवी के पत्र से शुरू हुआ विवाद
दरअसल विवाद की जड़ अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का पिछले साल प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखा गया पत्र है. जिसमें उन्होंने NCPUL को अल्पसंख्यक मंत्रालय के अधीन किये जाने की अपील की थी. उनकी दलील थी कि NCPUL अल्पसंख्यकों से संबंधित काम कर रहा है. इसलिए अल्पसंख्यक मंत्रालय इसके कामकाज को आगे बढ़ाने में ज्यादा बेहतर भूमिका अदा कर सकता है. प्रधानमंत्री कार्यालय ने पत्र पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय की राय मांगी. मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने NCPUL समेत NCERT से फीडबैक मांगा. जिसके आधार पर उसने कदम का विरोध किया. NCPUL के डायरेक्टर अकील अहमद ने पुष्टि की कि प्रस्ताव पर हमारी राय मांगी गयी थी. NCPUL ने प्रस्ताव का विरोध किया. मगर अब सरकार को उचित फैसला लेना है.
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