(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
एंटी साइक्लोन मूवमेंट, पछुआ जेट और कमजोर वेस्टर्न डिस्टर्बेंस... जानिए 40 पार कैसे पहुंचा फरवरी का तापमान?
कमजोर वेस्टर्न डिस्टर्बेंस और एंटी साइक्लोन मूवमेंट की वजह से हवा क्लॉक वाइज घूम रही है. यही वजह है कि रेगिस्तान की गर्म हवा उत्तर भारत की ओर आ रही है और तापमान में बढ़ोतरी देखी जा रही है.
वसंत बीतने से पहले ही देशभर में सूरज ने रौद्र रूप दिखाना शुरू कर दिया है. फरवरी में ही राजधानी दिल्ली का अधिकतम तापमान का 33 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच चुक है. राजस्थान और गुजरात के कई हिस्सों में फरवरी में ही पारा 40 डिग्री को छू गया है.
मौसम विभाग ने कहा है कि फरवरी में औसत तापमान में नौ डिग्री अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. विभाग ने एक चेतावनी में कहा है कि उत्तर भारत में आने वाले दिनों में गर्मी और अधिक बढ़ सकती है. तापमान में बढ़ोतरी की वजह से प्री-मॉनसून एक्टिविटी भी कमजोर पड़ सकती है.
तापमान बढ़ोतरी को लेकर मौसम विभाग ने फरवरी में दूसरी बार चेतावनी जारी की है. इससे पहले 11 फरवरी को विभाग ने पारा चढ़ने को लेकर अलर्ट जारी किया था. मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक फरवरी में जो इस बार तापमान है, वैसा अमूमन मार्च-अप्रैल में रहता है.
गर्मी ने वसंत को खत्म कर दिया
मौसम पर नजर रखने वाले सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के एसोसिएट फेलॉ आदित्य पिल्लई वाशिंगटन पोस्ट से बात करते हुए कहते हैं- पिछले साल मार्च में इस तरह की गर्मी देखने को मिली थी, लेकिन इस बार फरवरी में ही तापमान औसत से ज्यादा है. देश के कई हिस्सों में गर्मी ने इस साल वसंत को खत्म कर दिया है.
साल 2022 के मार्च महीने का अधिकतम तापमान 33.1 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था, जो कि सामान्य से 1.86 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था. मार्च 2022 में औसत तापमान ने पिछले 122 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया था.
यूपी-बिहार समेत 9 राज्यों पर असर
बढ़ते तापमान का असर यूपी, बिहार समेत 9 राज्यों पर पड़ना तय माना जा रहा है. मौसम विभाग के मुताबिक यूपी के तीन बड़े शहर लखनऊ, नोएडा और गाजियाबाद में अधिकतम तापमान 30 डिग्री सेल्सियस के करीब रहने का अनुमान है.
बिहार में भी अधिकतम तापमान 30 डिग्री के पार पहुंच चुका है. सोमवार को मोतिहारी में अधिकतम तापमान 31 डिग्री सेल्सियस और राजधानी पटना में 30.5 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. राज्य के गया, भागलपुर और पूर्णिया में अधिकतम तापमान भी 30 डिग्री सेल्सियस के करीब रहा है.
यूपी-बिहार के अलावा ओडिशा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और पंजाब ऐसा राज्य है, जहां तापमान में बढ़ोतरी देखी गई है. गुजरात के भुज में तो 16 फरवरी को तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर गया.
मौसम विभाग के मुताबिक इन राज्यों में फरवरी महीने में अब तक औसत तापमान 5-9 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज की गई है.
54 साल में तीसरी बार सबसे गर्म दिल्ली
मौसम विभाग के क्षेत्रीय पूर्वानुमान केंद्र के प्रमुख कुलदीप श्रीवास्तव ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया है कि सोमवार को राजधानी दिल्ली का तापमान 33.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज की गई है. श्रीवास्तव के मुताबिक 54 साल में यह तीसरी बार है, जब फरवरी में सबसे अधिक तापमान दर्ज किया गया है.
मौसम विभाग के अनुसार दिल्ली में 26 फरवरी, 2006 को 34.1 डिग्री सेल्सियस और 17 फरवरी, 1993 को 33.9 डिग्री सेल्सियस अधिकतम तापमान दर्ज किया गया था.
फरवरी इतना गर्म क्यों, 3 वजह...
1. कमजोर वेस्टर्न डिस्टर्बेंस - स्काईमेट वेदर के महेश पल्लावत के मुताबिक जनवरी में वेस्टर्न डिस्टर्बेंस काफी मजबूत स्थिति में था, इस वजह से कश्मीर और अन्य जगहों पर बर्फबारी भी देखने को मिली. फरवरी आते-आते वेस्टर्न डिस्टर्बेंस कमजोर पड़ गया है.
वेस्टर्न डिस्टर्बेंस यानी पश्चिमी विक्षोभ भूमध्यसागरीय क्षेत्र में उत्पन्न होने वाला एक तूफान है, जिसकी वजह से भारत में जनवरी और फरवरी के मौसम में बारिश देखने को मिलती है. मौसम विभाग के मुताबिक जब पश्चिमी विक्षोभ हिमालय की ओर आता है तो इनकी नमी बारिश और बर्फ के रूप में बदल जाती है.
मौसम विभाग के मुताबिक इस बार कमजोर वेस्टर्न बारिश और हिमपात करने में सक्षम नहीं है. कमजोर होने की वजह से वेस्टर्न डिस्टर्बेंस के बीच का अंतर बहुत कम है. इसलिए, उत्तर से ठंडी हवाएं नहीं चल रही हैं. ये हवाएं तापमान में बढ़ोतरी को पहले रोकती थी.
2. एंटी साइक्लोन मूवमेंट- मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा के मुताबिक एंटी साइक्लोन की वजह से सूरज अपने तेवर फरवरी में ही दिखा रहे हैं. महापात्रा कहते हैं- गुजरात के ऊपर एंटी साइक्लोन मूवमेंट पैदा हो रहा है, जिस वजह से हवा क्लॉक वाइज घूम रही है. यही हवा रेगिस्तानी इलाकों से उत्तर भारत आ रही है.
एंटी साइक्लोन मूवमेंट की वजह से आसमान का साफ रहना उत्तर भारत में गर्मी बढ़ने का प्रमुख कारण है. महापात्रा ने कहा कि फरवरी में इस बार राहत मिलने की उम्मीद कम है. इस वर्ष फरवरी का महीना असामान्य रूप से गर्म रहने वाला है.
3. पछुआ जेट का प्रभावी होना- फरवरी में ही तापमान में अधिक बढ़ोतरी की वजह पछुआ जेट का प्रभावी होना है. डाउन टू अर्थ पत्रिका से बात करते हुए मैरीलैंड विश्वविद्यालय और आईआईटी बॉम्बे के जलवायु वैज्ञानिक रघु मुर्तुगुड्डे ने बताया कि ऊपरी वातावरण में चलने वाली एक शक्तिशाली पछुआ जेट गर्म समुंद्र और रेगिस्तानी हवाओं को प्रभावित कर रही है.
पछुआ जेट स्ट्रीम जब भारत के ऊपर से प्रवाहित होती है तो उस वक्त भारत पर उच्च दाब बना रहता है. पछुआ जेट धरातलीय वायु को ऊपर उठने से रोकती है. धरातलीय वायु के प्रभावित होने की स्थिती में तापमान में बढ़ोतरी दर्ज की जाती है.
मुर्तुगुड्डे ने आगे बताया कि दिसंबर और जनवरी के दौरान पाकिस्तान, ईरान से लेकर अफगानिस्तान में तापमान कम था. यह कम तापमान और संबंधित उच्च दबाव पश्चिमी विक्षोभ को रोक रहे थे और उत्तर की ओर ठंडी हवाएं चल रही थी, लेकिन अब स्थिति बदल गई है.
फरवरी गर्म, असर क्या?
सूरज ने फरवरी में ही तेवर दिखाना शुरू कर दिया है. ऐसे में सवाल उठता है कि इसका असर क्या होगा? आइए विस्तार से जानते हैं...
1. गेहूं और रबी की फसल को नुकसान- फरवरी में ही तापमान में बढ़ोतरी का असर सबसे ज्यादा गेहूं और रबी फसलों पर पड़ेगा. गेहूं उत्पादन में भारत दुनिया में दूसरे नंबर का देश है. भारत में 2022 में मार्च में गर्मी की वजह से गेहूं की उत्पादन में 23 मिलियन टन की कमी आई थी.
2021 में गेहूं का उत्पान 129 मिलियन टन था, जो 2022 में घटकर 106 मिलियन टन पर पहुंच गया. नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के सलाहकार अनूप श्रीवास्तव के मुताबिक इस साल गेहूं समेत कई रबी फसलों में पहले ही समस्याएं देखी जा रही थी, तापमान की वजह से और नुकसान की संभावनाएं है.
भारत सरकार ने गेहूं और रबी फसलों की मॉनिटरिंग के लिए एक पैनल का गठन किया है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत के कृषि आयुक्त पैनल का नेतृत्व करेंगे और देश के प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों के अधिकारी और सरकारी वैज्ञानिक भी इसमें शामिल होंगे.
भारत सरकार ने इसी महीने के शुरुआत में एक बयान जारी कर कहा था कि गेहूं के उत्पादन में 4.1% की बढ़ोतरी हो सकती है.
2. एल नीनो के आने की अटकलें- फरवरी में तापमान की जिस तरह से बढ़ोतरी देखी जा रही है, इससे अल नीनो का खतरा भी मंडराने लगा है. मुर्तुगुड्डे के मुताबिक फरवरी से अप्रैल तक ला नीना की स्थिति में गिरावट की वजह से आगे चलकर एल नीनो की स्थिति बन सकती है.
लगातार तीन ला नीना ने उष्णकटिबंधीय प्रशांत को गर्म पानी से भर दिया है, जिससे एल नीनो का खतरा और अधिक बढ़ा है. अगर ऐसा होता है, तो इस साल तापमान में औसत से ज्यादा बढ़ोतरी देखी जा सकती है. भारत को इसके लिए तैयार रहना चाहिए.
समुद्र के तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में जब कोई बदलाव आता है, तो उस समुद्री घटना को एल नीनो कहते हैं. इस दौरान समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से बहुत अधिक हो जाता है. ये तापमान सामान्य से 4 से 5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो सकता है और इसका असर दुनिया भर के मौसम पर पड़ता है.