चांद पर कदम रख भारत ने अंतरिक्ष की दुनिया में इतिहास रच दिया है. मिशन चंद्रयान-3 की सफलता पर अमेरिका और यूरोप के अखबारों में भारत की तारीफ की गई है. पाकिस्तान के समाचार पत्रों में भी चंद्रयान की सफलता की गूंज है, लेकिन चीनी मीडिया ने इसे खास तवज्जो नहीं दिया है.


चंद्रयान-3 के सफल लैंडिंग पर चीन की चुप्पी ने जानकारों का हैरान कर दिया है, क्योंकि हाल ही में चीन ने रूस के मून मिशन के फेल होने की भी तारीफ की थी. चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा था कि लूना मिशन भले फेल हो गया हो, लेकिन रूस को फिर भी कम मत आंकिए.


वही ग्लोबल टाइम्स में चंद्रयान की सफलता का जिक्र तक नहीं किया गया है. बता दें कि साल 2017 में जब भारत ने 104 सैटोलाइटों का एक ही बार में सफल प्रक्षेपण किया था तो उस समय भी चीन जलभुन गया था. चीन ने कहा था कि भारत के लिए यह बड़ी उपलब्धि है लेकिन उसे पता है कि स्पेस के क्षेत्र में अभी वह चीन और अमेरिका से काफी पीछे है.


चीन के सरकारी अखबार में  लिखा गया कि स्पेस में सफलता नंबर के आधार पर नहीं होती है. भारत के पास अभी तक स्पेस स्टेशन बनाने का कोई प्लान नहीं है. भारत का कोई भी एस्ट्रोनॉड अंतरिक्ष में नहीं है.


वहीं इन सबसे इतर नेपाल ने भारत की जमकर तारीफ की है. जानकार एशिया और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत के प्रति सकारात्मक अवधारणा बनने के संकेत के तौर पर देख रहे हैं. चंद्रयान-3 की सफलता के बाद अंतरिक्ष की दुनिया में भी भारत की छवि बदलने की बात भी कही जा रही है. चांद पर पहुंचने वाला भारत दुनिया चौथा देश बन गया है. 


चंद्रयान-3 से बदलेगी अंतरराष्ट्रीय सियासत, 5 प्वॉइंट्स...


1. तकनीक की दुनिया में लगातार असफल हो रहा रूस- चांद पर सबसे पहुंचने वाले सोवियत संघ यानी रूस अब तकनीक की दुनिया में लगातार मात खा रहा है. यूक्रेन जैसे छोटे देश से करीब डेढ़ साल से रूस युद्ध लड़ रहा है. 


यूक्रेन रक्षा मंत्रालय के मुताबिक युद्ध में अब तक रूस के 2 लाख 58 हजार सैनिक मारे जा चुके हैं. यूक्रेनी सेना ने रूस के 315 प्लेन और 316 हेलिकॉप्टर मार गिराए हैं. युद्ध में रूस के 8488 टैंक और 5318 आर्टिलरी सिस्टम बर्बाद हो चुका है. 


रूस के हाथ से यूक्रेन वो भी हिस्सा भी निकल गया है, जिसे शुरू में उसने कब्जा किया था. यूक्रेन से युद्ध की वजह से रूस की अर्थव्यवस्था भी चौपट हो गई है. इधर, हाल ही में रूस का मून मिशन भी फेल हो गया. 


इस मिशन के जरिए रूस चंद्र ध्रुवीय रेजोलिथ (सतह सामग्री) की संरचना और चंद्र ध्रुवीय बाह्यमंडल के प्लाज्मा और चांद के सतह की मिट्टी का अध्ययन करता. दरअसल रूस का कई मोर्चों पर फेल हो जाना चीन के लिए सबसे बड़ी दिक्कत है. 


चीन अभी तक अमेरिका को रूस के ही दम पर आंख दिखाता रहा है. रूस, भारत का भी सबसे खास सहयोगी है, लेकिन रूस से चीन की दोस्ती और रूस से भारत के संबंधों में जमीन-आसमान का अंतर है. भारत की रूस से दोस्ती रचानात्मक पहलुओं पर देखी जाती है, जबकि चीन का रूस का इस्तेमाल हमेशा डराने-धमाके के लिए करता रहा है.


2. अमेरिकी अखबारों में जमकर तारीफ- चंद्रयान की सफलता पर अमेरिकी अखबारों ने जमकर तारीफ की है. न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है- रूस के मिशन मून के फेल होने के कुछ दिनों बाद भारत का चंद्रयान -3 मिशन चंद्रमा पर पहुंच गया है.


अखबार ने लिखा है कि भारत का चंद्रयान दक्षिण ध्रुव पर पहुंचा है, यह एक रिकॉर्ड है. अखबार आगे लिखता है- चांद के बाद भारत की नजर शुक्र और मंगल ग्रहों पर भी है. वैज्ञानिक शक्तियों की वजह से अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत और मुखर हो सकता है.


एक अन्य अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने विश्लेषकों के हवाले से लिखा है-  भारत लगातार अंतरिक्ष कार्यक्रम का उपयोग अर्थव्यवस्था और तकनीकी क्षेत्र में दखल बढ़ाने के लिए कर रहा है. चंद्रयान मिशन के जरिए भारत चीन से कदम मिलाने की कोशिश की है.


ब्रिटिश अखबार द गार्जियन के मुताबिक चंद्रयान की सफल लैंडिंग भारत के एक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उभरने का प्रतीक है, क्योंकि सरकार निजी अंतरिक्ष प्रक्षेपण और संबंधित उपग्रह-आधारित व्यवसायों में निवेश को बढ़ावा देना चाहती है.


3. भारत ने वहां चंद्रयान भेजा, जहां कोई नहीं पहुंचा- चांद पर अब तक रूस, अमेरिका और चीन अपना कदम रख चुका है, लेकिन अदृश्य दक्षिणी ध्रुव पर पहली बार भारत ने कदम रखा है. इसरो के मुताबिक 14 दिन तक चंद्रयान यहां चक्कर काटेगा.


जानकारों का कहना है कि दक्षिणी ध्रुव गड्ढों और खाइयों से भरा हुआ है. चंद्रयान मिशन से भारत भूविज्ञान और पृथ्वी की उत्पत्ति पर प्रयोग करने और पानी में बर्फ की उपस्थिति की जांच करने के लिए डेटा इकट्ठा करेगा. 


वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर सब कुछ सकरात्मक रहता है, तो यह भविष्य के आधार के लिए सबसे आशाजनक स्थल हो सकता है.


4. नेपाल और पाकिस्तान में चंद्रयान की चर्चा- चीन काफी लंबे वक्त से नेपाल और पाकिस्तान की सियासत को प्रभावित करता रहा है, लेकिन चंद्रयान की सफल लैंडिंग के बाद नेपाल और पाकिस्तान में इसकी चर्चा जोरों पर है. 


चंद्रयान के सफल लैंडिंग के तुरंत बाद नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने ट्वीट कर भारत को बधाई दी. प्रचंड ने इसरो की कामयाबी को एतिहासिक बताया. भारत के चांद पर पहुंचने के बाद पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर ने अपनी ही सरकार को जमकर दुत्कारा.


मीर ने लिखा- भारत चांद पर पहुंच गया, लेकिन पाकिस्तान यह तय नहीं कर पाया है कि संविधान के तहत यहां 90 दिन में चुनाव होंगे या 190 दिन में? वहीं पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री फवाद चौधरी ने पूरे देश में चंद्रयान लैंडिंग का लाइव टेलीकास्ट दिखाने की मांग सरकार से कर दी. 


5. ब्रिक्स में शुरू हो गई अंतरिक्ष अन्वेषण संघ बनाने की चर्चा- इसरो जब चंद्रयान की चांद पर सफल लैंडिंग करा रहा था, उस वक्त भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स की मीटिंग में शामिल होने के लिए दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर थे. 


चंद्रयान के सफल लैंडिंग पर ब्रिक्स देशों के सदस्यों ने भारत की जमकर तारीफ की. भारत की सफलता के बाद ब्रिक्स के कई सदस्य अंतरिक्ष अन्वेषण संघ बनाने के एक प्रस्ताव पर सहमत दिखे. प्रस्ताव भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखा था. 


एक्सपर्ट के मुताबिक यह प्रस्ताव अगर रूप लेता है, तो भारत का कद बढ़ सकता है, क्योंकि भारत सबसे कम खर्च में अंतरिक्ष के क्षेत्र में काम कर रहा है. ब्रिक्स में ब्राजिल, रूस, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन शामिल है.


भारत अंतरिक्ष अन्वेषण संघ बनाने की बात जी-20 की मीटिंग में भी कर सकता है. अगर जी-20 के देश सहमत होते हैं, तो कूटनीति तौर पर भारत को बढ़ी बढ़त हासिल हो जाएगा.


6- भारत में जी-20 सम्मेलन से पहले बड़ी सफलता


सितंबर के महीने में भारत में जी-20 सम्मेलन होने जा रहा है. जिसमें इस समूह में शामिल अमेरिका और रूस जैसे बड़े देशों के नेता भारत आ रहे हैं. चंद्रयान की सफलता से भारत का आत्मविश्वास चरम पर है. जी-20 सम्मेलन के लिए भारत साल भर से तैयारी कर रहा है. जिस समय सम्मेलन चल रहा होगा, भारत खुद को स्पेस सेक्टर की दुनिया में बड़े खिलाड़ी के तौर पर देख रहा होगा जिसमें अभी तक अमेरिका, रूस और चीन को ही महारत हासिल थी. 


चांद पर पहुंचने की होड़ क्यों, 2 वजहें...


- सौरमंडल के निर्माण के बाद से ही चांद पर जीवन का विकास नहीं हुआ और न तो यहां के वातावरण बन पाया, जिस वजह से चांद की सतह पर सौरमंडल के सभी शुरुआती प्रमाण ज्यों के त्यों मौजूद हैं. चांद से डेटा इकट्ठा कर सौरमंडल की उत्पत्ति के बारे में पता लगाया जा सकता है.


- चंद्रमा पर मौजूद डेटा के जरिए वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश में जुटे हैं कि कॉस्मिक रेडिएशन और चंद्रमा जैसे वातारण-विहीन ग्रहों पर छोटे-छोटे कणों की बारिश का क्या प्रभाव पड़ता है? इससे अंतरिक्ष के आगे की मिशन को समझने में मदद मिल सकती है.