इस बार जब भारत 15 अगस्त को 76वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा होगा तो रूस-यूक्रेन युद्ध के लगभग डेढ़ साल भी पूरे हो चुके होंगे. इन 16 महीनों में कई बार पूरी दुनिया दो खेमों में नजर आई. एक ओर जहां रूस के साथ कुछ देश खड़े थे तो अमेरिका के साथ पश्चिमी देश.
इस दौरान भारत की भूमिका भी अहम थी. भारत सरकार ने साफ कह दिया कि इस मुद्दे पर किसी एक खेमे के साथ जाने के बजाए उस नीति का पालन करेगा जिसमें उसके अपने हित होंगे.
इस दौरान अमेरिका की ओर से दबाव भी आया. अमेरिका की ओर से तो यहां तक कह दिया गया कि चीन के साथ युद्ध के हालात में भारत को रूस कभी मदद नहीं करेगा, उसे अमेरिका को ही साथ लेना पड़ेगा.
लेकिन भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी दो टूक शब्दों में कह दिया कि चीन के साथ भारत अपने रिश्तों को हैंडल करने में सक्षम है. इसमे किसी तीसरे की जरूरत नहीं है.
एक मंच से एस जयशंकर ने यह भी कहा कि यूरोप की समस्या पूरे विश्व की समस्या नहीं है, पश्चिमी देश इस गलतफहमी में न रहें.
अमेरिकी दबाव के बाद भी भारत मौके का फायदा उठाते हुए रूस से सस्ता तेल खरीदता रहा है. यह वही समय था जब रूस को सबसे ज्यादा पैसे की जरूरत थी.
विदेश नीति के इन बेहद नाजुक और तीखे पैंतरों के बीच अगर भारत मजबूती से खड़ा है तो क्या इसकी वजह से भारत का परमाणु बम की क्षमता से लैस होना है?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें इंदिरा गांधी की सरकार से लेकर वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में हुए गुप्त परमाणु कार्यक्रमों से पहले और बाद के घटनाक्रमों को समझना होगा.
भारत की परमाणु बमों की क्षमता हासिल करने में 18 मई 1974 और 11 मई 1998 की तारीखें बेहद अहम हैं. इन दोनों ही तारीखों से पहले तक पूरी दुनिया के सामने एक बड़ा सवाल था कि क्या भारत के पास भी परमाणु बम हैं.
परमाणु क्षमता हासिल करने से पहले तक भारत में सरकारों पर एक नैतिक दबाव भी था कि क्या देश को इस विनाशक बम के बनाने की ओर कदम बढ़ाने भी चाहिए.
दरअसल आजादी के बाद भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हमेशा हथियारों की होड़ के खिलाफ वकालत करता रहा है. इतना ही नहीं भारत के परमाणु बम से लैस होने की स्थिति में दूसरे देशों की भी अपनी चिंताएं थीं.
इसके साथ ही भारत के रणनीतिकार इस बात से भी परेशान थे कि अगर परमाणु बम बना लेते हैं तो प्रतिक्रिया के तौर पर जब अमेरिका सहित तमाम देश आर्थिक प्रतिबंध लगाएं तो उसको कैसे झेला जाएगा.
भारत जो कुछ साल पहले ही आजादी पाई है. उसके बाद पड़े अकाल ने उसकी आर्थिक हालत और खराब कर दी थी. भारत अभी इससे उबर नहीं पाया है और उसे लगातार विदेशी मदद की जरूरत थी. इसके साथ ही पाकिस्तान के साथ हथियारों की नई होड़ शुरू हो सकती है.
इंदिरा गांधी की सरकार में हुआ था पहला पोखरण परीक्षण
आजादी तुरंत बाद भारत पहले पाकिस्तान और 1962 चीन के साथ युद्ध लड़ा. 1964 में चीन ने पहला परमाणु बम परीक्षण किया. भारत के दोनों पड़ोसी देश उसके दुश्मन थे जो लगातार अपनी सेना की क्षमता में विस्तार कर रहे थे.
1965 में पाकिस्तान के साथ फिर जंग हुई जिसमें परमाणु क्षमता से लैस चीन पूरी मदद कर रहा था. भारत के सामने सवाल शक्ति संतुलन का था जो बिना परमाणु बम की क्षमता हासिल किए नहीं पूरी हो सकती थी.
1970 के दशक तक आते-आते भारत परमाणु शक्ति बनने के मुहाने पर आ चुका था. इंदिरा गांधी की सरकार इस मुद्दे पर नेहरू के जमाने से चली आ रही है 'हथियारों की होड़' वाली नैतिकता के लबादे को उतारने के लिए तैयार हो चुकी थी.
तारीख थी 18 मई, साल था 1974. राजस्थान के पोखरण में भारत ने धमाका कर दिया. ऑपरेशन का कोड नाम था 'स्माइलिंग बुद्धा'. भारत अब अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्राँस और चीन के बाद परमाणु हथियार क्षमता वाला दुनिया का छठा देश बन गया.
लेकिन चुनौतियां अभी आनी बाकी थीं.पूरे विश्व में इसकी आलोचना होने लगी. अमेरिका और कनाडा ने भारत पर प्रतिबंध लगा दिया. पाकिस्तान भी अपनी क्षमता को बढ़ाने में जुट गया.
हालांकि इस परीक्षण के बाद भारत में परमाणु सेक्टर की ओर कुछ खास नहीं किया गया.
पोखरण में वाजपेयी सरकार का धमाका
साल 1998 में 11 से 13 मई के बीच भारत ने राजस्थान के पोखरण में 5 धमाके किए. कोड नाम था 'ऑपरेशन शक्ति'. अमेरिका खुफिया एजेंसी सन्न रह गईं. उसके जासूसी सैटेलाइट फेल हो गए.
किसी को कानों-कान भनक तक नहीं लगी कि भारत पोखरण में इतनी बड़ी प्लानिंग कर रहा है. पोखरण में धमाके बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा ये किसी को डराने के लिए नहीं किया गया.
भारत अब आधिकारिक तौर परमाणु बम की क्षमता रखने वाला देश बन चुका था. अमेरिका सहित तमाम देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. खास बात ये रही कि भारत उस समय तेजी बढ़ती अर्थव्यवस्था बन चुका था और प्रतिबंधों को आसानी झेल लिया.
भारत का परमाणु सिद्धांत क्या है?
परमाणु बम की क्षमता हासिल करने के बाद भारत पूरी दुनिया को समझाने में कामयाब रहा कि वह इसका इस्तेमाल पहले नहीं करेगा और न ही हथियारों की होड़ में शामिल होने का उसका कोई इरादा है.
साल 2003 में भारत ने आधिकारिक तौर पर परमाणु सिद्धांत जारी किया जिसमें 'नो फर्स्ट नीति' की बात कही गई है.
भारत के पास अभी कितने परमाणु बम हैं?
अमेरिका की एजेंसी की ओर से जारी एक रिपोर्ट की मानें तो भारत के पास अभी 160 परमाणु बम हैं. भारत के अब भूमि, वायु और समुद्र से परमाणु बम दागने की क्षमता हासिल कर चुका है.
सैन्य भाषा में इसे 'परमाणु ट्रायड क्षमता' कहते हैं. भारत के पास इस समय अग्नि, पृथ्वी और के-सीरीज़ बैलिस्टिक मिसाइलें हैं.
लेकिन परमाणु क्षमता हासिल करने पर क्या मिला?
भारत के परमाणु बम परीक्षण करने पर अमेरिका सबसे ज्यादा चीखता-चिल्लाता रहा है. लेकिन धीरे-धीरे उसे भी समझ में आने लगा कि एशिया में अब उसे चीन के सामने टिकने के लिए भारत की जरूरत है.
वाजपेयी सरकार के समय प्रतिबंध लगाने वाले अमेरिका के तेवर मनमोहन सिंह की सरकार आते-आते ढीले पड़ चुके थे. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ही अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश भारत के साथ असैन्य परमाणु समझौता करने के लिए राजी हो गए.
दूसरी ओर पाकिस्तान एक गैर विश्वसनीय परमाणु बम क्षमता वाला देश बन चुका है. पूरी दुनिया को इस बात का डर है कि कहीं पाकिस्तान के परमाणु बमों का बटन आतंकवादी संगठनों के हाथ न लग जाए.
वहीं भारत को अब तक 48 देशों के समूह वाले परमाणु आपूर्तिकर्ता ग्रुप में चीन की वजह से शामिल नहीं किया गया है. इससे साफ जाहिर होता है कि जबकि बाकी परमाणु क्षमता वाले देश पहले हैं.
इसका मतलब यह था कि पश्चिमी देशों का हथियारों की होड़ में शामिल न होने का सिद्धांत सिर्फ छलावा है.
भारत के परमाणु बम क्षमता हासिल करने के बाद अब चीन और पाकिस्तान के साथ शक्ति संतुलन के उद्देश्य को भी पूरा कर लिया गया है. अब न तो चीन और न ही पाकिस्तान भारत को परमाणु बमों की धमकी दे सकते हैं.
पोखरण परीक्षण के कुछ दिनों बाद ही भारत ने पाकिस्तान को कारगिल युद्ध में धूल चटाई है. दावा है कि पाकिस्तान चोरी-छिपे परमाणु बम की क्षमता पहले ही हासिल कर चुका था अगर भारत बिना परमाणु परीक्षण किए इस युद्ध लड़ता तो एक तरह से उसकी स्थिति निहत्थे वाली होती.
बीते युद्धों की तरह अमेरिका ने कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तान की कोई मदद नहीं की.
हाल में भारत ने पाकिस्तान में घुसकर उरी और बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक की है. साफ जाहिर है कि इतनी बेइज्जती के बाद भी पाकिस्तान की हिम्मत नहीं है कि परमाणु बम की बात छेड़ सके.