सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक पैनल करेगा. इस पैनल में प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष (सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) शामिल रहेंगे.


जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति पर आश्चर्य भी जताया. जस्टिस जोसेफ ने अपने फैसले में लिखा- हम इस बात से थोड़ा हैरान हैं कि अधिकारी ने 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन कैसे किया था, अगर उन्हें नियुक्ति के प्रस्ताव के बारे में पता नहीं था. हालांकि, सर्वोच्च अदालत ने गोयल को हटाने को लेकर कोई फैसला नहीं सुनाया. 


लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने इस बात पर विशेष रूप से फोकस किया कि चुनाव आयुक्त पद पर उसी व्यक्ति की नियुक्ति को प्राथमिकता दें, जो 6 साल तक इस पद पर रह सके. कोर्ट ने कहा कि जब तक संसद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कानून नहीं बना लेती है, तब तक कोर्ट फैसले के तहत ही नियुक्ति की जाएगी. 


याचिका में क्या कहा गया था?
साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई थी. याचिका में कहा गया था कि चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति का अधिकार अभी केंद्र के पास है, जो संविधान के अनुच्छेद-14 व अनुच्छेद 324 (2) का उल्लंघन करता है. 


इसी मामले में एक अन्य याचिका भी दाखिल किया गया था, जिसमें चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र पैनल बनाने की मांग की गई थी.


सुप्रीम कोर्ट ने 23 अक्टूबर 2018 को इस संबंध में दाखिल सभी याचिकाओं को क्लब कर दिया था और संवैधानिक बेंच में मामला ट्रांसफर कर दिया था. नवंबर 2022 में इन याचिकाओं पर लगातार सुनवाई हुई थी, जिसके बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. 


सुनवाई के दौरान हुई थी जोरदार बहस
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में सुनवाई के दौरान सरकार और याचिकाकर्ताओं के बीच जोरदार बहस हुई थी. याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने सुनवाई के बीच अरुण गोयल के नियुक्ति को लेकर सवाल उठाया. 


वहीं अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कहा कि पहले के बनाए गए सारे नियमों का पालन किया जा रहा है, इसलिए इस याचिका को खारिज कर दिया जाए. कोर्ट ने इस दौरान टिप्पणी करते हुए कहा था कि टीएन शेषन जैसे चुनाव आयुक्त की देश को जरूरत है.


सुनवाई के दौरान जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा था कि मान लीजिए प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव आयोग में शिकायत दाखिल की जाती है और आयुक्त कमजोर है, तो कैसे कार्रवाई करेगा? आपको लगता है, यह सही है? हम चुनाव आयोग को निष्पक्ष बनाना चाहते हैं.


कोर्ट ने फैसले में क्या कहा है?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चुनाव आयोग को कार्यपालिका की अधीनता से अलग करना होगा. कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता बनाए रखी जानी चाहिए वरना इसके अच्छे परिणाम नहीं होंगे. जस्टिस जोसेफ ने कहा कि वोट की ताकत सुप्रीम है और इससे मजबूत से मजबूत पार्टियां भी सत्ता हार सकती हैं. इसलिए वोट देने के माध्यम चुनाव आयोग को स्वतंत्र होना जरूरी है.


कोर्ट ने आगे कहा कि चुनाव आयुक्तों को हटाने का आधार वही होना चाहिए जो मुख्य चुनाव आयुक्त का है. कोर्ट ने आयुक्तों को मुख्य आयुक्त की तरह सुरक्षा देने का भी निर्देश दिया. सर्वोच्च अदालत ने इस दौरान दुख जताते हुए कहा कि 70 साल बाद भी चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कोई कानून नहीं है.


सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के इस फैसले के बाद चुनाव आयोग में क्या बदलाव होगा और भविष्य में इसका क्या असर हो सकता है, इसे विस्तार से जानते हैं...


1. नियुक्ति में सरकार का हस्तक्षेप कम होगा- संविधान विशेषज्ञ और सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक चुनाव आयोग में आगे से जो भी नियुक्ति की जाएगी, उसमें पैनल वाला नियम लागू होगा. प्रधानमंत्री के अलावा इसमें विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस शामिल होंगे.


इस वजह से अब नई नियुक्तियों में सरकार का हस्तक्षेप कम होगा. हां, सरकार अगर कोर्ट के आदेश को बिना अमल में लाए नियुक्ति करती है, तो उसे अवैध माना जाएगा और सरकार पर कंटेंप्ट का मामला चल सकता है. यानी अब नई नियुक्तियों में विपक्ष भी भागीदार होगी.


2. आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाना होगा मुश्किल- विराग गुप्ता के मुताबिक आगे की नियुक्तियों में विपक्ष भी भागीदार होगी, इसलिए चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल कम उठेगा. 


चुनाव आयुक्त के प्रमुख से लेकर आयुक्तों की नियुक्ति में विपक्षी नेता और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस शामिल रहेंगे. ऐसे में चुनाव आयोग की भी विश्वसनीयता बढ़ेगी. 


3. 2024 तक कोई बड़ा बदलाव नहीं- संविधान और कानून के अनुसार चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य आयुक्त के पदों पर पहले से ही नियुक्ति हो चुकी है. हालांकि, आदेश के बाद कांग्रेस ने मांग की है कि सभी नियुक्तियां रद्द कर नए सिरे से चुनाव आयोग में नियुक्ति की जाए. 


इस पर विराग गुप्ता कहते हैं-  ऐसी मांग का कोई कानूनी औचित्य नहीं है और फैसले में भी ऐसा कोई आदेश नहीं है. हां, गोयल की नियुक्ति पर जरूर कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है.


फरवरी 2024 में चुनाव आयुक्त अनूप चन्द्र पाण्डेय रिटायर होंगे. उसके बाद नये आयुक्त की नियुक्ति के समय सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सरकार को अमल करना होगा.


4. आयुक्त का पद और मजबूत होगा- सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील कलीश्वरम राज कहते हैं- कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त के हटाने की भी व्याख्या कर दी है. कोर्ट ने कहा है कि जिस तरह सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाया जाता है, वैसे ही चुनाव आयुक्तों को हटाया जा सकता है.


यानी संसद में विशेषाधिकार प्रस्ताव के जरिए ही अब चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाया जा सकता है. कलीश्वरम आगे कहते हैं- यह असंभव नहीं है, लेकिन आसान भी नहीं है. कोर्ट के इस फैसले से चुनाव आयुक्त का पद और मजबूत हो जाएगा.


अब 2 सवाल, जिसका जवाब जानना जरूरी है...


सवाल- सीबीआई चीफ की नियुक्ति भी पीएम, विपक्षी दल के नेता और सीजेआई का पैनल करता है. इसके बावजूद सीबीआई की निष्पक्षता पर सवाल उठता है. क्या ऐसे में आयोग पर सवाल नहीं उठेगा?


विराग गुप्ता- सुप्रीम कोर्ट के फैसले में संवैधानिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक बहुमत के फर्क को बताया गया है. उसके अनुसार बहुमत वाली सरकारें मनमानी से फैसले नहीं ले सकतीं. सरकारों को जनता से मिले बहुमत के साथ संवैधानिक प्रावधानों और संवैधानिक नैतिकता का पालन करना भी जरूरी है. 


सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद तस्वीर में बड़ा बदलाव सम्भव नहीं है. नामों के पैनल की सिफारिश केन्द्र सरकार के विधि मंत्रालय द्वारा की जाती है, जिसमें अधिकांशतः नौकरशाहों के नाम ही होते हैं. 


सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार बनाई जा रही समिति को उसी पैनल से ही नाम का चयन करना होगा. नेता विपक्ष के विरोध करने की स्थिति में चुनाव आयुक्त के चयन में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की भूमिका निर्णायक हो जाएगी.


चुनाव आयुक्त निष्पक्ष, योग्य और ईमानदार हों, उसके साथ ही चुनावी सुधार के कानून पारित करने और आयोग को संस्थागत तौर पर मजबूत करने की जरूरत है. ऐसे समग्र उपायों के बाद ही संविधान के अनुच्छेद-324 के तहत चुनाव आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को कराने की भूमिका सही अर्थों में निभा सकता है.


सवाल- चुनाव आयोग को अधिक निष्पक्ष बनाने के लिए कोई और ऑप्शन है, जिन पर विचार किया जा सकता है?
विराग गुप्ता- सुप्रीम कोर्ट के 378 पेज के फैसले में कई याचिकाओं का निस्तारण किया गया है, जिनमें चयन समिति के अलावा अन्य कई मांग की गई थीं. तीन सदस्यीय चुनाव आयोग का स्वतंत्र सचिवालय नहीं है और वहां पर डेप्युटेशन से आए अधिकारी और कर्मचारी काम करते हैं. 


सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि स्वतंत्र सचिवालय के साथ चुनाव आयोग के खर्चों के लिए संविधान के समेकित निधि की व्यवस्था बनाने के लिए कानून में जरूरी प्रावधान जल्द से जल्द किए जाएं. 


विधि आयोग ने भी कई सिफारिशें की है. सरकार को उस पर भी अमल करके नियुक्ति को लेकर एक बड़ा और वृहद कानून संसद में बना सकती है. सरकार 2024 के चुनाव से पहले इस पर कानून बना सकती है.


अब जाते-जाते जान लीजिए, अब तक नियुक्ति कैसे होती थी?


1989 तक देश में एक चुनाव आयोग में एक ही आयुक्त होते थे, लेकिन राजीव गांधी की सरकार ने एक मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो आयुक्त की नियुक्ति का प्रावधान कर दिया.


1990 में वीपी सिंह की सरकार आई तो सिंह ने फिर से एक आयुक्त के नियुक्ति की प्रक्रिया बहाल कर दी. इसके बाद चुनाव आयुक्त बने टीएन शेषण. शेषण के खौफ से सभी पार्टियां त्रस्त रहने लगी.


1993 में फिर से एक संशोधन कर केंद्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो आयुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान कर दिया. इसके पीछे वजह मुख्य चुनाव आयुक्त के फैसले पर वीटो लगाना था. 


2019 में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ एक शिकायत दर्ज की गई थी. उस वक्त एक चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने मामले में पीएम को दोषी माना, लेकिन तत्कालीन सीईसी सुनील अरोड़ा और एक अन्य चुनाव आयुक्त ने पीएम को क्लीन चिट दे दिया.


अब तक प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट अप्वाइंटमेंट कमेटी आयुक्तों की नियुक्ति की सिफारिश राष्ट्रपति के पास भेजती थी, जिसे राष्ट्रपति मंजूर करते थे.