भारत में जी20 शिखर सम्मेलन का सफल आयोजन हुआ. इस समिट के लिए खासी तैयारी की गई थी. अब G20 के सफल आयोजन के बाद सभी की निगाहें 18 सितंबर से होने वाले संसद के विशेष सत्र पर हैं. 


इस सत्र में आम से लेकर खास तक, हर कोई संसद के विशेष सत्र में बीजेपी द्वारा पेश किए जाने वाले एजेंडे पर नजर टिकाए बैठा है. क्या होने वाला है इसका अंदाजा बीजेपी के भी कई नेताओं को नहीं है.


संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने जी20 के आयोजन से पहले इस विशेष एजेंडे को लेकर एक्स (ट्विटर) पर एक ट्वीट कर इसकी जानकारी दी थी. जिसमें उन्होंने लिखा, "संसद का विशेष सत्र (17वीं लोकसभा का 13वां सत्र और राज्यसभा का 261वां सत्र) आगामी 18 से 22 सितंबर के दौरान होगा, जिसमें 5 बैठकें होंगी. अमृतकाल के समय में होने वाले इस सत्र में संसद में सार्थक चर्चा और बहस होने को लेकर आशान्वित हूं."


क्या हो सकता है विशेष सत्र का एजेंडा?
जी20 समिट से पहले से ही सभी की निगाहें संसद के विशेष सत्र पर हैं, जिसमें विपक्ष लगातार सत्ता पक्ष से एजेंडा बताने की मांग कर रहा है. वहीं मोदी सरकार ने इस बात को यह कहकर टाल दिया कि सत्र का एजेंडा पहले से रखने की परंपरा नहीं रही है.


18 सितंबर से शुरू हो रहे संसद के विशेष सत्र के सरकार द्वारा पेश किए जाने वाले एजेंडे को लेकर काफी चर्चाएं हैं, जिसमें माना जा रहा है कि इस सत्र में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' को लेकर चर्चा हो सकती है और सरकार इस पर एक कानून भी बना सकती है.


वहीं दूसरी ओर चर्चा देश के नाम को लेकर भी की जा रही थी कि सत्र का एजेंडा स्थायी रूप से देश का नाम इंडिया से भारत करने को लेकर होगा. हालांकि, अभी तक विशेष सत्र के एजेंडे पर सिर्फ कयास ही लगाए जा रहे हैं.


हाल ही में जी20 शिखर सम्मेलन का सफल आयोजन और चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग से भी देश में काफी खुशनुमा माहौल है. ऐसे में ये भी माना जा रहा है कि सरकार इस अवसर का इस्तेमाल देश के सामने अपनी पॉजिटिव इमेज बनाने के लिए कर सकती है.


जम्मू-कश्मीर पर भी हो सकता है एजेंडा?
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, अटकलें ऐसी भी हैं कि इस सत्र में सरकार कुछ ऐसा कदम उठाने वाली है जिसका असर आने वाले चुनावों पर भी पड़ेगा, इसमें जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा वापस देने का प्रस्ताव, समान नागरिक संहिता लाने की दिशा में कदम, लंबे समय से प्रतीक्षित महिला आरक्षण विधेयक का पारित होना या 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की दिशा में कदम आगे बढ़ाना भी हो सकता है. 


देश को 'विश्वगुरु' के रूप में पेश करेगी बीजेपी?
अब जब G20 शिखर सम्मेलन सफलता के साथ समाप्त हो गया है, तो बीजेपी पीएम मोदी को एक मजबूत और निर्णायक नेता के रूप में उनकी लोकप्रियता को भुनाना चाहेगी. अब तक, जवाहरलाल नेहरू एकमात्र प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अपनी पार्टी को आम चुनावों में बहुमत के साथ लगातार तीसरी जीत दिलाई है. अगर इस बार भी लोकसभा चुनावों में बीजेपी जीत हासिल करती है, तो नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद पर बैठने वाले देश के दूसरे नेता होंगे.


इससे पहले कब-कब बुलाया गया था विशेष सत्र?
जून 2017 : यह पहली बार नहीं है जब भारत में नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान विशेष सत्र बुलाया जा रहा हो. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में इस सत्र से पहले भी एक बार विशेष सत्र बुलाया जा चुका है. दरअसल मोदी सरकार ने 30 जून 2017 को वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू करने के लिए संसद के सेंट्रल हॉल में पहली बार संसद का विशेष सत्र बुलाया था.


साल 2015: इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के अनुसार साल 2015 से पहले 26 नवंबर 2015 को विशेष सत्र बुलाया गया था. उस दिन सरकार ने बीआर आंबेडकर को श्रद्धांजलि देने के लिए इस सत्र को बुलाया था. साल 2015 में भारत आंबेडकर की 125वीं जयंती मना रहा था. ये वही साल था जब 26 नवंबर को संविधान दिवस घोषित किया गया था.


साल 2002: साल 2015 से पहले 2002 में भी विशेष सत्र बुलाया जा चुका है. उस वक्त सत्ता में रही एनडीए सरकार ने 26 मार्च को दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में आतंकवाद निरोधक विधेयक पारित कर दिया था, क्योंकि सत्तारूढ़ गठबंधन के पास राज्यसभा में इसे पारित कराने के लिए बहुमत नहीं था.


साल 1997: भारत छोड़ो आंदोलन' की 50वीं सालगिरह पर नौ अगस्त 1997 को आधी रात संसद का सत्र बुलाया गया था.


महागठबंधन के खिलाफ रणनीति बीजेपी की रणनीति
2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में चुनाव की तारीख को करीब आता देख बीजेपी पूरी जान लगा रही है. बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की 28 पार्टियों ने I.N.D.I.A गठबंधन बनाया है. जिसे 'I.N.D.I.A' नाम दिया गया.


बीजेपी की पूरी कोशिश है कि इसे सनातन धर्म का विरोधी करार दे दिया जाए. गौरतलब है कि 'I.N.D.I.A' गठबंधन की प्रमुख पार्टी डीएमके के नेता उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को  लेकर विवादित बयान दिया है जिसके बाद से बीजेपी हमलावर है.


दरअसल उदयनिधि ने सनातन धर्म की तुलना "कोरोनावायरस, मलेरिया और डेंगू" से की थी. जिसके बाद से ही लगातार बीजेपी महागठबंधन में शामिल पार्टियों पर निशाना साध रही है.


इस बयान से हुए नुकसान को भांपते हुए कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और आम आदमी पार्टी ने पहले ही डीएमके नेता से दूरी बना ली है. अब देखना ये होगा कि बीजेपी इस मुद्दे को कितना भुना पाती है.


हालांकि, उदयनिधि ने इस बयान पर सफाई देते हुए एक और बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा, 'मैंने सनातन धर्म का विरोध किया लेकिन लोगों के पूजा करने के अधिकार का विरोध नहीं किया. मैंने कभी भी नरसंहार शब्द का इस्तेमाल नहीं किया और वो (बीजेपी) मेरी टिप्पणियों को गलत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. मैंने किसी धर्म के खिलाफ नहीं बल्कि धर्म के भीतर जातिगत भेदभाव के खिलाफ बोला है'.


अब जब उदयनिधि के इस बयान से विपक्ष का भारी नुकसान हो चुका है तो बीजेपी कभी नहीं चाहेगी कि चुनाव तक ये मुद्दा खत्म हो. ऐसे में बीजेपी नेताओं की कोशिश इस बयान को ज्यादा से ज्यादा भुनाने की ही रहेगी.