दुनिया में चल रही 'वर्चस्व की लड़ाई' के बीच भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिलना कितना अहम?
जी 20 दुनिया की बीस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का समूह है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा और दशा तय करता है. जी 20 शिखर सम्मेलन के दौरान विश्व की अर्थव्यवस्थाओं का एजेंडा तय किया जाता है.
इंडोनेशिया के बाली में इस साल का जी-20 सम्मेलन समाप्त हो गया है. दुनिया के बड़े देशों के मंच में भारत छाया रहा. लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा उन तस्वीरों की हो रही है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग हैं. गलवान में हुई झड़प के बाद यह दूसरा मौका था जब दोनों नेता आमने-सामने थे. अब अगले साल भारत में यह सम्मेलन होगा. जिस देश में यह मंच सजता है वही उसकी अध्यक्षता भी करता है. शीत युद्ध के बाद पहली बार दुनिया अमेरिका और रूस के खेमे में बंटी हुई है. भारत ने इस मंच से पूरी दुनिया को संदेश दिया है किया यह युग युद्ध क नहीं है. लेकिन साम्राज्यवादी चीन और आतंक का गढ़ पाकिस्तान भारत के इस संदेश को समझेंगे. जी-20 की अध्यक्षता भारत को मिलना कितनी बड़ी बात यह इसको चीन के राष्ट्रपति और पाकिस्तान किस नजरिए से देखते हैं?
अध्यक्षता के मिलने के क्या मायने हैं?
पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और विदेश मामलों के जानकार राजेश जोशी ने एबीपी न्यूज से बातचीत करते ह भारत को ये अध्यक्षता ऐसे समय में मिली है जब पूरी दुनिया वर्चस्व की लड़ाई लड़ने में लगी है. एक तरफ जहां रूस यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के कारण सप्लाई चेन भी बिगड़ी हुई है और कई देश दो धड़े में बंट गए हैं. वहीं दूसरी तरफ महाशक्तियों के बीच में विश्वास का संकट गहरा रहा है. ऐसे समय पर भारत को जी 20 शिखर सम्मेलन का अध्यक्ष बनाना बड़ी बात है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर में आयोजित हुए एससीओ समिट में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बातचीत में जो मैसेज दिया था, उसकी गूंज जी20 शिखर सम्मेलन के घोषणापत्र में सुनाई भी दी.
आज भारत विश्वपटल पर उस स्थिति में है जहां दो देशों या महाशक्तियों के बीच में किसी भी मुद्दे पर संवाद स्थापित करा सकता है. इसके अलावा भारत को यह अध्यक्षता मिलने से अन्य देशों के सामने हमारे देश की वैल्यू एडिशन भी हुआ है.
भारत के अध्यक्षता करने हमारे देश को आर्थिक मोर्चे पर मदद मिल सकती है. ऐसे समझिये की भारत की क्रेडिबिलिटी बढ़ती है तो अंतरराष्ट्रीय निवेशक का भारत को लेकर और सकारात्मक रुख बनेगा. वहीं दूसरी तरफ पिछले कुछ समय में कई देश ऐसे हैं जो चीन से अपनी कंपनियों को निकालना चाहता है. ऐसे में वह भारत की तरफ आकर्षित हो सकते हैं. इससे भारत का विदेशी निवेश भी बढ़ेगा.
जी 20 समूह में कौन-कौन देश हैं शामिल
जी-20 में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्किये, ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) शामिल हैं.
क्या है जी 20 समूह
जी 20 दुनिया की बीस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का समूह है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा और दशा तय करता है. जी 20 शिखर सम्मेलन के दौरान विश्व की अर्थव्यवस्थाओं का एजेंडा तय किया जाता है. इस समूह में दुनिया की शीर्ष 19 अर्थव्यवस्था वाले देश और यूरोपीय संघ शामिल है.
जी 20 सदस्य देशों में ही दुनियाभर का 85 प्रतिशत कारोबार होता है. साल 1999 में आए एशियाई वित्तीय संकट के बाद इस संगठन को बनाया गया और इसका असली असर साल 2008 में आए आर्थिक मंदी के बाद सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों का सालाना सम्मेलन के बाद से दिखा. आगे चलकर जैसे-जैसे दुनिया के मुद्दे बदलते गए, वैसे ही जी 20 का एजेंडा भी बदलता गया. इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन और ‘अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद’ जैसे मुद्दों पर भी चर्चा होने लगी. अब इस सम्मेलन की अध्यक्षता भारत करने वाला है. ऐसे में हमारे देश के पास जी 20 को फिर से उसके आर्थिक लक्ष्यों की तरफ ले जाने का मौका होगा.
इस समूह को दुनिया का सबसे ताकतवर समूह माना जाता है क्योंकि दुनिया की 60 फीसदी आबादी यहीं से आती है. इसके अलावा दुनिया के सभी देशों को मिला दें तो जीडीपी का 80 प्रतिशत हिस्सा और वैश्विक व्यापार का 75 प्रतिशत हिस्सा जी 20 समूह के देशों से जुड़ा हुआ है. इस समूह के गठन का उद्देश्य मध्यम आय वाले देशों को शामिल करके उनकी वित्तीय स्थिरता को सुरक्षित करना है. इसके अलावा यह राजकोषीय मुद्दों को सुलझाने का काम काम करता है साथ ही यह समूह का उद्देश्य भ्रष्टाचार का विरोध करना विकास और ऊर्जा के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना भी है.
G7 से G20 तक
जी-20 की शुरुआत जी7 के रूप में हुई थी. दरअसल फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन, अमरीका और कनाडा ने मिलकर G7 बनाया था. इसे सात शक्तिशाली वाला देश कहा जाता था. इसके बाद साल 1998 में इस समूह में रूस को शामिल किया गया. तह इस समूह को G8 का नाम दिया गया.
साल 1999 में 8 देशों के इस समूह ने जर्मनी के कोलोन में बैठक की और जहां उन्होंने एशिया के आर्थिक संकटों पर चर्चा की. जिसके बाद दिसंबर 1999 मे बर्लिन में पहली बार G20 समूह की बैठक की गई. इस समूह में एक बदलाव ये भी आया कि साल 2008 से पहले तक इस बैठक में सदस्य देशों के वित्त मंत्री और गवर्नर्स भाग लेते थे. लेकिन साल 2008 से समूह की बैठक में देश के राष्ट्राध्यक्ष भी भाग लेते हैं.
G20 का वैश्विक प्रभाव
इस समूह के वैश्विक प्रभाव की बात करें तो जी 20 का वैश्विक जीडीपी में दुनिया के सभी देशों की तुलना में 85 प्रतिशत है और वैश्विक व्यापार में ये समूह 75 प्रतिशत से भी ज़्यादा का योगदान देता है. इस समूह के सदस्य देशों में विश्व की कुल आबादी का 66 प्रतिशत हिस्सा निवास करता है. वहीं जी 20 का वैश्विक निवेश 80 प्रतिशत है.
अध्यक्षता करने वाले देश को करना पड़ता है ट्रोइका प्रक्रिया का पालन
इस समूह की अध्यक्षता करने वाले देश को पहले ट्रोइका की प्रक्रिया का पालन करना होता है. दरअसल जब भी कोई देश जी-20 शिखर सम्मेलन आयोजित करने की अध्यक्षता करता है उसे पिछले अध्यक्ष देश और होने वाले अध्यक्ष देश के साथ समन्वय स्थापित करना होता है ताकि जी 20 के एजेंडे को लगातार बरकरार रखा जा सके, इसी पूरी प्रक्रिया को ट्रोइका का नाम दिया गया है. वर्तमान में ट्रोइका में इटली, इंडोनेशिया और भारत शामिल हैं.
बाली में हुए सम्मेलन से भारत के लिए क्या
बाली में हुए जी 20 सम्मेलन के दौरान संयुक्त घोषणा पत्र में पीएम मोदी शांति संदेश को आधार बना कर कहा गया, "आज का युग युद्ध का नहीं होना चाहिए". बाली द्वीप पर दुनिया भर के प्रभावी नेता इस सम्मेलन के लिए जुटे थे. यहां प्रधानमंत्री मोदी ने देश का प्रतिनिधित्व मौजूदा हालातों में इस तरह से किया कि 19 देशों और यूरोपियन यूनियन का ये मंच राजनीतिक मतभेदों पर भी संघर्ष से बचा रहा. भू-राजनीतिक तनाव से जूझ रही दुनिया में भारत की क्षमताओं का प्रदर्शन करने के लिए पीएम मोदी ने बाली में कोई कसर नहीं छोड़ी. दो दिनों तक चले इस सम्मेलन से भारत के लिए पीएम कई सौगातें लेकर आए हैं.