पहले संसद का बजट सत्र हंगामे के भेट चढ़ा और अब इस पर राजनीति शुरू हो गई है. शुक्रवार को कौशांबी में गृहमंत्री अमित शाह ने संसद नहीं चलने देने के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा दिया है. अमित शाह ने कहा कि राहुल की वजह से कांग्रेस के सांसदों ने संसद के वक्त की बली चढ़ा दी.


गृहमंत्री ने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा- आजादी के बाद ऐसा कभी नहीं हुआ कि एक सांसद की वजह से पूरा संसद ठप हो जाए. राहुल गांधी की सदस्यता रद्द हुई तो कांग्रेस ने संसद ही नहीं चलने दिया. उन्होंने कहा इतिहास में पहली बार बजट सत्र बिना चर्चा किए समाप्त हो गया है. 


कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी आरोप लगाया है कि सरकार की वजह से संसद ठप रही. थरूर ने कहा कि सरकार जेपीसी जांच की मांग से डर गई थी, इसलिए सदन बाधित किया गया. उन्होंने कहा कि 45 लाख करोड़ रुपए का बजट बिना किसी बहस के सरकार ने 9 मिनट में पास करा लिया.


बजट सत्र में कैसे होता है काम, क्यों हुआ हंगामा?
संसद का बजट सत्र 2 चरण में काम करता है. पहले चरण में राष्ट्रपति का अभिभाषण, बजट पेश और अभिभाषण पर चर्चा की जाती है. दूसरे फेज में बजट सत्र पर चर्चा होती है और फिर सरकार कुछ बिल पास कराती है. पहले फेज में संसद का बजट सत्र ठीक चला. 


राष्ट्रपति के अभिभाषण के साथ ही बजट भी पेश हुआ. इसके बाद अभिभाषण पर चर्चा भी हुई, लेकिन इसके बाद संसद में हंगामा शुरू हो गया. कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के राष्ट्रपति अभिभाषण पर दिए गए स्पीच के कुछ हिस्सों को काट दिया गया.


इसके बाद विपक्ष उद्योगपति गौतम अडानी के मामले में जेपीसी जांच की मांग करने लगी. इधर, लंदन में राहुल के दिए एक भाषण को लेकर सत्तापक्ष माफी की मांग करती है. इस मसले पर कई दिनों तक संसद ठप रही.


इसी बीच सूरत की एक अदालत ने राहुल गांधी को मानहानि केस में 2 साल की सजा सुना दी. सजा मिलने के बाद ही संसद से उनकी सदस्यता रद्द हो गई. इसके बाद कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.


राहुल गांधी के मसले पर हंगामा को देखते हुए 4 दिनों तक संसद की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी, लेकिन जब लगातार संसद नहीं चल रही थी तो नियत समय पर उसे अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया.


बजट सत्र में संसद में कितना काम हुआ?
संसद टीवी के मुताबिक बजट सत्र के दौरान लोकसभा के मुकाबले राज्यसभा में कम काम हुए हैं. अगर आंकड़ों की बात करें तो मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में सबसे कम काम इस सत्र में हुए हैं. 


लोकसभा में 45.55 घंटे (34.28%) और राज्यसभा ने करीब 31 घंटे (24.4%) काम हुए हैं. दोनों सदन करीब 25 दिनों का था, इस हिसाब से अगर दिन देखा जाए तो सिर्फ 4 दिन ही ठीक ढंग से संसद का काम हो पाया.


हंगामे की वजह से बजट सत्र में लोकसभा को 96.13 घंटे और राज्यसभा को 103.30 घंटे का नुकसान हुआ. इससे पहले 2021 का मानसून सत्र सबसे खराब था, जब हंगामें की वजह से लोकसभा में 77.48 घंटे और राज्यसभा में 76.25 घंटे का नुकसान हुआ था.


बिल की बात करें तो सरकार को इस सत्र में करीब 35 विधेयक पारित कराने थे, लेकिन सिर्फ 6 विधेयक ही पास हो सके. एक विधेयक समिति के पास भेजी गई है. लोकसभा में करीब 2099 पत्र टेबल्ड किए गए.


21 दिन बर्बाद यानी 200 करोड़ का नुकसान
सत्र शुरू होने के बाद संसद की कार्यवाही आम तौर हफ्ते में 5 दिनों तक चलती है. प्रत्येक दिन संसद की कार्यवाही 7 घंटे तक चलाने की सामान्य परंपरा है. 


भारत में 2018 में संसद की कार्यवाही के खर्च को लेकर सरकार की ओर से एक रिपोर्ट जारी की गई थी. हालांकि, अब इस रिपोर्ट के 5 साल हो चुके हैं और 2018 की तुलना में महंगाई में भी बढ़ोतरी हुई है. 


रिपोर्ट के मुताबिक संसद में एक घंटे का खर्च 1.5 करोड़ रुपए है. दिन के हिसाब से जोड़ा जाए तो यह खर्च बढ़कर 10 करोड़ रुपए से अधिक हो जाता है. संसद में एक मिनट की कार्यवाही का खर्च 2.5 लाख रुपए है. 


इनमें सांसदों के वेतन, सत्र के दौरान सांसदों को मिलने वाली सुविधाएं और भत्ते, सचिवालय के कर्मचारियों की सैलरी और संसद सचिवालय पर किए गए खर्च शामिल हैं. 


हंगामे की वजह से संसद की कार्यवाही 21 दिनों तक नहीं चली. ऐसे में अगर गणित के लिहाज से देखा जाए तो करीब 210 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है. 


भारत में संसद का काम क्या है?
संसद को भारत का सर्वोच्‍च विधायी निकाय कहा जाता है. संविधान के मुताबिक भारतीय संसद में राष्‍ट्रपति तथा दो सदन राज्‍य सभा (राज्‍यों की परिषद) एवं लोकसभा (लोगों का सदन) होते हैं. संविधान में राष्ट्रपति को दोनों में से किसी भी सदन को बुलाने या स्‍थगित करने अथवा लोकसभा को भंग करने की शक्ति दी गई है.


लोकसभा और राज्यसभा का मूल काम विधेयक यानी कानून बनाना है. संसद कार्यपालिका को नियंत्रण करने का काम भी करती है. संविधान के अनुच्छेद 75(3) में कहा गया है कि कैबिनेट और सरकार संसद के प्रति उत्तरदायी होगी. लोकसभा में अगर किसी दल को बहुमत नहीं है, तो सरकार नहीं बनाई जा सकती है.


भारत में संसद के पास राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के साथ ही सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों पर महाभियोग चलाने का अधिकार है. इसके अलावा वित्त से जुड़े काम भी संसद में ही हो सकता है. बजट संसद से पास कराए बिना सरकार एक पैसा खर्च नहीं कर सकती है. 


संसद की कार्यवाही ठप, किसकी जिम्मेदारी?
संसद की कार्यवाही संचालन के लिए नियमपुस्तिका बनाई गई है. संसद को संचालन की जिम्मेदारी लोकसभा में अध्यक्ष और राज्यसभा में उपसभापति की होती है. संसदीय कार्यमंत्री विपक्षी नेताओं के साथ तालमेल कर सदन चलाने का काम करते हैं. 


इस बार संसद का परफॉर्मेंस सबसे खराब रहा है, आइए विस्तार से सभी जिम्मेदारों के बारे में जानते हैं...


1. लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति- आजादी के बाद से ही संसद में पक्ष-विपक्ष के बीच हमेशा गतिरोध देखने को मिलता रहा है, लेकिन लोकसभा के स्पीकर और राज्यसभा के सभापति सर्वदलीय मीटिंग के जरिए गतिरोध दूर करते रहे हैं. 


सदन में लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति को दलगत राजनीति से ऊपर माना जाता है, लेकिन संसद के इस बजट सत्र में दोनों की भूमिका पर सवाल उठे हैं. कांग्रेस ने लोकसभा स्पीकर पर माइक बंद कर देने का आरोप लगाया, जबकि राज्यसभा के सभापति पर भी सरकार के पक्ष में काम करने के आरोप लगे. 


यही वजह है कि इस बार सर्वदलीय बैठक के बावजूद सदन में गतिरोध खत्म नहीं हो पाया. लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति सदन चलाने के लिए विपक्षी नेताओं को कन्फिडेंस में लेने में नाकाम रहे.


2. संसदीय कार्यमंत्री- फ्लोर पर सरकार और विपक्ष के बीच तालमेल बनाने की जिम्मेदारी संसदीय कार्यमंत्री की होती है. इसी वजह से पहले वरिष्ठ नेताओं को संसदीय कार्यमंत्री बनाया जाता था. उदाहरण के लिए अटल बिहारी सरकार में प्रमोद महाजन और सुषमा स्वराज, मनमोहन सरकार में प्रियरंजन दासमुंशी और कमलनाथ संसदीय कार्यमंत्री थे. मोदी सरकार के पहले कैबिनेट में वैंकेया नायडू को यह विभाग मिला था. 


वर्तमान में कर्नाटक से सांसद प्रह्लाद जोशी के पास यह विभाग है. राहुल गांधी का मसला जब संसद में उछला तो सरकार की ओर से जोशी ही फ्रंटफुट पर थे, यही वजह है कि पक्ष-विपक्ष के बीच गतिरोध सुलझने की बजाय और उलझ गया.


3. दोनों सदनों के नेता यानी नेता सदन- लोकसभा में नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, जबकि राज्यसभा में पीयूष गोयल. बजट सत्र में लोकसभा और राज्यसभा दोनों का परफॉर्मेंस बेहद ही खराब है. ऐसे में इनकी जिम्मेदारी को लेकर भी सवाल है.


नेता सदन विपक्ष के मुद्दे को संसद में चर्चा कराकर गतिरोध को खत्म करने में सक्षम होते हैं, लेकिन बजट सत्र में इस तरह का कोई प्रयास नहीं किया गया. इस बार सरकार ही विपक्षी नेता के माफी मांगने पर अड़ गई, जिससे बात और बिगड़ी.


4. नेता प्रतिपक्ष भी कम जिम्मेदार नहीं- सदन को सुचारू रूप से चलाने में नेता प्रतिपक्ष की भी भूमिका अहम होती है. लोकसभा में तो कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है, लेकिन राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खरगे जरूर नेता प्रतिपक्ष हैं. खरगे कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं.


सरकार का कहना है कि नेता प्रतिपक्ष सर्वदलीय बैठक में सदन सही ठंग से चलाने में सहयोग की बात करते हैं, लेकिन फ्लोर पर हंगामा शुरू हो जाता है. सरकार का आरोप है कि एक विशेष व्यक्ति की वजह से सदन नहीं चलने दिया गया. नेता प्रतिपक्ष अगर इस मुद्दे को सर्वदलीय बैठक में उठाकर इसका हल करते तो शायद सदन का कामकाज ज्यादा हो सकता था.