सजा दिलाने में फिसड्डी, बड़े मामलों में सबूत नहीं जुटा पाए फिर भी CBI को क्यों सौंपी गई रेल हादसे की जांच?
कन्विक्शन रेट (सजा दर) और जांच के अंदरुनी सिस्टम को लेकर सीबीआई हमेशा सवालों के घेरे में रही है. सवाल उठता है कि इसके बावजूद रेल हादसे की जांच सीबीआई को ही क्यों दी गई है?
ओडिशा रेल हादसे में एफआईआर दर्ज कर सीबीआई ने जांच शुरू कर दी है. रेल मंत्रालय ने आपराधिक साजिश की जांच के लिए सीबीआई को यह जिम्मा सौंपा है. रेल हादसे की सीबीआई जांच का विरोध भी शुरू हो गया है. ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने इसके जरिए लीपापोती का आरोप लगाया है.
खुद ममता बनर्जी ने कहा कि सीबीआई जांच से कुछ नहीं निकलने वाला है. ममता बनर्जी ने कहा कि मैंने एक केस 12 साल पहले सीबीआई को दिया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ. ममता ने ज्ञानेश्वरी रेल हादसा (2010) का भी जिक्र किया. इस रेल हादसे में 149 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 24 लोगों का पता अब तक नहीं चला है. सीबीआई ने शुरू में इस हादसे में माओवादी समर्थक संगठन पीसीपीए के सदस्य बापी महतो को गिरफ्तार किया था.
सीबीआई पर साक्ष्य जुटाने और सजा दिलाने को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं. हाल ही में संसद में सरकार ने बताया था कि पिछले 5 साल में सीबीआई का औसतन सजा दर 70 प्रतिशत है.
कन्विक्शन रेट (सजा दर) और जांच के अंदरुनी सिस्टम को लेकर सीबीआई हमेशा सवालों के घेरे में रही है. कई बड़े मामलों में सीबीआई गुनहगारों को सजा दिलाने में नाकाम रही है. सवाल उठता है कि इसके बावजूद रेल हादसे की जांच सीबीआई को ही क्यों दी गई है?
सीबीआई ने किन धाराओं में दर्ज की है एफआईआर?
सीबीआई ने बालासोर जीआरपी की एफआईआर को टेकल कर लिया है. यह एफआईआर हादसे के अगले दिन किया गया था. एफआईआर में निम्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज है.
रेलवे एक्ट 153- यात्रियों की सुरक्षा को जान बूझकर संकट में डालना.
रेलवे एक्ट 154- लापारवाही या चूक से यात्रियों की जान खतरे में डालना.
रेलवे एक्ट 175- रेल सेवक द्वारा ड्यूटी के दौरान यात्रियों की जान खतरे में डालना.
IPC 337, 338- लापारवाही से यात्रियों की जान को खतरे में डालना.
IPC 34- साजिशन या जानबूझकर यात्रियों की जान को खतरे में डालना.
इन सभी धाराओं में अधिकतम 5 साल की सजा हो सकती है. हालांकि, जांच के बाद सीबीआई आपराधिक धाराओं को घटा और बढ़ा भी सकती है.
सीबीआई की ओर से दर्ज एफआईआर में जीआरपी थाना प्रभारी पप्पू नायक के बयान को आधार बनाया गया है. एफआईआर में लापरवाही का भी जिक्र है.
(Source- CBI FIR Copy)
सीबीआई को जांच क्यों सौंपी गई?
सवाल सीबीआई को जांच सौंपे जाने को लेकर उठ रहे हैं. तीन पूर्व रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खरगे, पवन बंसल और ममता बनर्जी का कहना है कि सीबीआई अपराध से जुड़े केसों की जांच करती है. रेल हादसा अपराध से जुड़ा मामला नहीं है.
सीबीआई के पूर्व अधिकारी एनके शर्मा के मुताबिक साजिश की जांच सीबीआई कर सकती है. शर्मा सीबीआई को जांच सौंपे जाने के पीछे 3 अहम वजहों का जिक्र करते हैं.
1. रेलवे की तकनीक टीम का दायरा बेहद ही छोटा है, जबकि सीबीआई का दायरा बड़ा है. सीबीआई के पास टेक्निकल टीम के साथ-साथ अन्य अन्वेषण टीम भी है. आपराधिक मामला होगा, तो जांच करने में कठिनाई नहीं आएगी.
2. 80 के दशक में इंदिरा गांधी के मकालू विमान के उड़ान भरने से पहले केबल काटे जाने का मामला सामने आया था. इसे सीबीआई को सौंपी गई थी और केबल काटने की साजिश का पर्दाफाश हुआ था.
3. सीबीआई अब तक रेल हादसे में पटरी उड़ाने या ब्लास्ट से जुड़ी मामलों की जांच करती रही है. यह पहला मामला है, जो केबल और तकनीक से जुड़ा है. ऐसे में यह पता लगाना जरूरी है कि क्या कोई मॉड्यूल इसके पीछे तो नहीं है?
सीबीआई जांच का दायरा क्या होगा?
एनके शर्मा के मुताबिक जिन धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई है, उसी को आधार मानकर सीबीआई जांच करेगी. सीबीआई सबसे पहले यह जानने की कोशिश करेगी कि क्या यह तकनीक चूक था या किसी ने केबल या पटरी से छेड़छाड़ की थी.
शर्मा कहते हैं- सीबीआई यह जानने की कोशिश करेगी कि हादसा क्यों हुआ और कोरोमंडल एक्सप्रेस लूप लाइन पर कैसे चली गई? लूप लाइन में जाने की वजह से ट्रेन एक्सिडेंट की बात अब तक सामने आई है.
शर्मा आगे कहते हैं- अगर सीबीआई की शुरुआती जांच में यह साजिश निकलता है, तो सीबीआई इसका मकसद और करने वालों के बारे में पता लगाएगी.
क्या जांच के नाम पर लीपापोती है?
विपक्ष सरकार पर लीपापोताी का आरोप लगा रही है. 2 तरह के तर्क दिए जा रहे हैं. पहला, सीबीआई का कन्विक्शन रेट (सजा दर) काफी कम है और दूसरा लापारवाही छुपाने के लिए जांच बैठा दी गई है.
सीबीआई केंद्र सरकार के अधीन है और औसतन इसका कन्विक्शन रेट 70 प्रतिशत है. सीबीआई के मुकाबले ईडी का कन्विक्शन रेट 90 प्रतिशत और एनआईए का कन्विक्शन रेट 94 प्रतिशत है.
यानी सीबीआई ईडी और एनआईए के मुकाबले सजा दिलाने या केस को अंजाम तक पहुंचाने में फिसड्डी साबित हुई है. इतना ही नहीं, कई बड़े मामलों में भी सीबीआई सबूत नहीं जुटा पाई.
बड़े मामलों में सीबीआई पर केस को कमजोर करने का भी आरोप लगता रहा है. तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता साकेत गोखले रेल हादसे को लेकर लगातार सवाल उठा रहे हैं. उनकी पार्टी भी सरकार पर आंकड़े छुपाने का आरोप लगा रही है.
गोखले ट्वीट कर लिखते हैं- स्थानीय थाना प्रभारी ने सीबीआई की एफआईआर में इसे लापरवाही बताया है, जबकि रेल मंत्रालय ने इसे साजिश मानते हुए सीबीआई को जांच दे दी है. पूरी सरकार लीपापोती में जुटी हुई है.
गोखले आगे लिखते हैं- रेल मंत्री ने 4 जून को दोषियों को चिह्नित करने की बात कही थी, लेकिन तोड़फोड़ का कोई सबूत ही नहीं है. रेल मंत्रालय ने सुरक्षा के मानको का उल्लंघन किया है, इसलिए रेल मंत्री को इस्तीफा देना चाहिए.
सीबीआई के पूर्व निदेशक एम नागेश्वर राव भी साजिश और तोड़फोड़ के एंगल पर सवाल उठाते हैं. राव लिखते हैं- मैंने ओडिशा में रेल एसपी और अतिरिक्त डीजीपी के रूप में कार्य किया है और मेरा इसको लेकर अपना अनुभव रहा है.
वे आगे लिखते हैं- अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए रेलवे और सरकार इस तरह की बातों का प्रचार करती है. शुरुआत में जांच की बात करेगी और जब रिपोर्ट आती है, तो उसमें कुछ नहीं निकलता है. सरकार की कोशिश हादसे को भुलाने की रहती है.
अब उन केसों के बारे में जानिए, जिसमें सीबीआई जांच पर सवाल उठे
1. बकोरिया फर्जी मुठभेड़- जून 2015 को झारखंड के पलामू जिले के बकोरिया में पुलिस और कथित नक्सलियों के बीच एक मुठभेड़ हुआ. इस मुठभेड़ में 12 आम नागरिकों की मौत हो गई. पुलिस पर फर्जी एनकाउंटर का आरोप लगा.
मामले में विवाद बढ़ा तो सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी. सीबीआई ने 7 साल तक इस मामले की जांच की और अप्रैल 2023 में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दिया. सीबीआई ने कहा कि फर्जी मुठभेड़ के कोई सबूत नहीं मिले.
सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट पर परिवार वालों ने सवाल उठाया और कहा कि जांच सही ढंग से नहीं की गई.
2. नवरुणा हत्याकांड- बिहार के मुजफ्फरपुर से 2012 को 14 वर्षीय नवरुणा का अपहरण हो गया. कुछ दिन बाद मुजफ्फरपुर से ही उसका कंकाल बरामद हुआ. नवरुणा की हत्या की खबर मिलने के बाद पूरे बिहार में हंगामा बरप गया.
बिहार सरकार ने 2014 में इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी. जांच के दौरान सीबीआई के 5 इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर बदले गए, लेकिन जांच एजेंसी हत्यारे की पहुंच से दूर रही. 2020 में सीबीआई ने इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दिया.
3. 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला- 2008 में यूपीए सरकार ने स्पेक्ट्रम निलामी का फैसला किया. सरकार ने पहली बार 2जी स्पेक्ट्रम की निलामी की. 2010 में कैग ने अपनी रिपोर्ट में हेरफेर का आरोप लगाया, जिसके बाद पूरे देश में बवाल मच गया.
आनन-फानन में जांच सीबीआई को सौंप दी गई. सीबीआई ने शुरुआत में फुर्ती दिखाते हुए तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए.राजा को गिरफ्तार कर लिया. इस केस की जांच 2017 तक चली. 2017 में सीबीआई की अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया.
फैसला सुनाते वक्त सीबीआई के जज ने जांच एजेंसी पर कड़ी टिप्पणी भी की थी. जज ने कहा कि सीबीआई साक्ष्य पेश करने में नाकाम रही.
4. ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्या- जून 2012 में रणवीर सेना के प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया की गोली मारकर हत्या कर दी गई. मुखिया की हत्या के बाद पूरे बिहार में बवाल मच गया. सरकार ने आनन-फानन में इसकी जांच सीबीआई को दे दी.
शुरुआत में सीबीआई ने काफी धर-पकड़ की, लेकिन धीरे-धीरे जांच स्थिल पड़ता गया. घटना के 11 साल बीत जाने के बाद भी यह केस अंजाम तक नहीं पहुंच पाया है. 2021 में सीबीआई ने इस केस को लेकर ईनाम भी घोषित किया था.
5. राजीव गांधी हत्याकांड की साजिश- 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में हत्या कर दी गई. इस हत्या मामले में 2 केस दर्ज किया गया. एक केस में मुरगन, निलिनी, पेरारिवलन समेत सात लोगों को हत्या का आरोपी बनाया गया था.
दूसरे केस में लिट्टे चीफ प्रभाकरण, अकीला और पुट्टूअम्मन समेत 11 लोगों को साजिश का आरोपी बनाया गया था. अंतरराष्ट्रीय साजिश की पर्दाफास एक विशेष टीम भी बनाई गई थी. इसके बावजूद जांच एजेंसी इसमें सबूत नहीं ढूंढ पाई.
सुप्रीम कोर्ट ने कई दफे इस टीम को फटकार भी लगाई. आखिर में 2022 में केंद्र सरकार ने इस एजेंसी को ही भंग कर दिया.