विपक्षी मोर्चे INDIA की ओर से जारी सियासी हमले पर डिफेंसिव मोड में जाने की बजाय बीजेपी पलटवार की रणनीति अपना रही है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नैरेटिव सेट करने का जिम्मा उठा लिया है. अमित शाह समेत कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी विपक्षी गठबंधन के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया है.


2014 के बाद यह पहली बार है, जब विपक्षी गठबंधन को गंभीरता से लेते हुए बीजेपी हाईकमान रणनीति तैयार कर रहा है. विपक्षी गठबंधन के गणित के मुकाबले पार्टी कमजोर नहीं पड़ना चाहती है. इसलिए पार्टी अंकगणित दुरुस्त करने के साथ-साथ नई केमेस्ट्री भी तैयार कर रही है.


बीजेपी इसके लिए त्याग की रणनीति भी अपना रही है. 26 दलों के विपक्षी गठबंधन का बीजेपी से करीब 450 सीटों पर सीधा मुकाबला होने के आसार हैं. इनमें ग्रामीण इलाकों की 250 से अधिक सीटें हैं. बीजेपी इसी हिसाब से मुद्दे तय करने में जुटी है.


इस स्टोरी में विपक्षी मोर्चे के खिलाफ बीजेपी की रणनीति और पार्टी की चिंता को विस्तार से समझते हैं...


मोदी ने संभाली नैरेटिव सेट की कमान
चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण नैरेटिव सेट करना होता है. इसकी कमान खुद प्रधानमंत्री मोदी ने संभाल ली है. 2 जुलाई से लेकर अब तक प्रधानमंत्री विपक्षी गठबंधन पर कम से कम 8 बार अटैक कर चुके हैं. प्रधानमंत्री विपक्षी गठबंधन को भ्रष्टाचारियों का अड्डा बता चुके हैं.


इतना ही नहीं, बेंगलुरु की मीटिंग में विपक्ष ने गठबंधन का नाम इंडिया रख दिया, जिसके बाद बीजेपी के कई छोटे नेता इस पर हमला करने कतराने लगे. इसके बाद खुद प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षी गठबंधन इंडिया को आतंकी संगठन से जोड़ दिया. 


प्रधानमंत्री ने कहा कि पीएफआई, इंडियन मुजाहिद्दीन और सिमी जैसे आतंकी संगठनों के नाम में भी इंडिया जुड़ा था. जानकार प्रधानमंत्री के इस बयान को ध्रुवीकरण के नजरिए से देख रहे हैं. बीजेपी की कोशिश विपक्षी गठबंधन को देश तोड़ने के लिए बना एक संगठन करार देने की है.


विपक्षी मोर्चे पर प्रहार के साथ-साथ प्रधानमंत्री 2024 का सियासी पिच भी तैयार कर रहे हैं. दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने आर्थिक विकास का जिक्र किया. पीएम ने कहा कि तीसरी बार अगर मैं प्रधानमंत्री बना तो लोगों के सपने पूरे होंगे.


प्रधानमंत्री ने विपक्ष के गारंटी के खिलाफ मोदी की गारंटी शब्द किया. जानकार मान रहे हैं कि बीजेपी 'मोदी की गारंटी' को पूरे चुनाव में भुनाने की कोशिश करेगी. 


18 जुलाई- गाइत कुछ है, माल कुछ है और लेबल कुछ है... यह अवधि में एक गाना है, जो विपक्षी गठबंधन पर फिट बैठता है.  (एक कार्यक्रम में)


18 जुलाई- विपक्ष भ्रष्टाचारियों का अड्डा है. हमने उनके घोटाले पर एक्शन लिया तो सभी एकजुट हो गए. (एनडीए नेताओं की मीटिंग में)


20 जुलाई- विपक्ष इंडिया बचाने की मिशन पर नहीं है. सभी खुद को बचाने में जुटे हैं. जनता इसका जवाब देगी. हम 50 प्रतिशत वोट लाएंगे (एक कार्यक्रम में)


25 जुलाई- ईस्ट इंडिया कंपनी में भी इंडिया था और इंडियन मुजाहिदीन में भी इंडियन है लेकिन सिर्फ इंडिया नाम रखने से इंडिया नहीं हो जाता. विपक्ष पूरी तरह से दिशाहीन है. (बीजेपी संसदीय दल की बैठक में)


26 जुलाई- ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर देश को मैं यह विश्वास दिलाता हूं कि हमारे तीसरे कार्यकाल में भारत शीर्ष तीन अर्थव्यवस्था में पहुंच कर रहेगा और ये मोदी की गारंटी है. (ITPO कन्वेंशन सेंटर के उद्घाटन पर)


27 जुलाई- कुकर्म छुपाने के लिए यूपीए ने अपना नाम इंडिया कर लिया है. पहले जमाने में कंपनियां नाम बदलने के बाद नया बोर्ड लगाकर धंधा शुरू कर देती थी. (सीकर में एक कार्यक्रम के दौरान)


अमित शाह जुटा रहे गठबंधन के सहयोगी
विपक्ष के मैथ और केमेस्ट्री को कमजोर करने के लिए अमित शाह मजबूत दलों और नेताओं को बीजेपी में जोड़ रहे हैं. विपक्ष के इंडिया मुहिम के बाद शाह 4 बड़े दलों को बीजेपी में जोड़ चुके हैं. इनमें अजित पवार की एनसीपी, ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा, चिराग पासवान की लोजपा (आर) और जीतन राम मांझी की हम (से) प्रमुख हैं. 


इसके अलावा, जिन राज्यों में गठबंधन का जोड़ मजबूत है, उन राज्यों में छोटे-छोटे नेताओं को भी साधा जा रहा है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी की कोशिश जयंत चौधरी को साथ लाने की है. इसी तरह बिहार में बीजेपी मुकेश सहनी पर भी डोरे डाल रही है.


समाचार एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी विपक्ष के मजबूत नेताओं को अपने पाले में लाने की रणनीति पर काम कर रही है. बीजेपी ने हाल ही में सपा के कई बड़े नेताओं को यूपी में अपने साथ जोड़ा है.


माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में बिहार, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में कई छोटे-छोटे दल और नेता बीजेपी के साथ जा सकते हैं.


मुख्यमंत्री भी सोशल मीडिया के मैदान में कूदे
प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के साथ-साथ बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी विपक्ष पर लगातार हमलावर हैं. विपक्षी गठबंधन का नाम इंडिया रखने पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोशल मीडिया पर 2 ट्वीट किए. 


योगी का दोनों ट्वीट गठबंधन के नाम को लेकर ही था. इसी तरह मध्य प्रदेश, हरियाणा, असम के मुख्यमंत्रियों ने विपक्ष के खिलाफ सोशल मीडिया पर अभियान छेड़ दिया है. असम के मुख्यमंत्री ने खुद के ट्विटर अकाउंट पर इंडिया की जगह भारत लिख दिया.


परसेप्शन की लड़ाई में बड़े नेताओं के उतरने की वजह बीजेपी की स्ट्राइक नीति को माना जा रहा है. 


बड़े नेता क्यों उतरे मैदान में, 2 वजहें...



  • विपक्षी मोर्चे का नाम इंडिया रखने के बाद कार्यकर्ता पशोपेश में पड़ गए थे. हाईकमान ने काट निकाला और इंडिया का विरोध न कर गठबंधन को आतंकी संगठन से जोड़ दिया, जिसके बाद कार्यकर्ता भी सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गए.

  • बड़े नेताओं के मैदान में उतरने से मीडिया में काउंटर नीति को जगह मिलेगी. पार्टी की कोशिश लोगों में इंडिया गठबंधन के खिलाफ सीधा संदेश देने की है. मीडिया में जगह मिलने से यह काम आसानी से हो जाएगा. 


विपक्षी मोर्चे को गंभीरता से क्यों ले रही है बीजेपी?


1. इंडिया शाइनिंग का हो चुका है खेल- 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी गठबंधन ने अटल सरकार को पटखनी दे दी थी. उस वक्त अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में बीजेपी इंडिया शाइनिंग के रथ पर सवार थी.


कई सर्वे में भी उस वक्त बीजेपी को आगे बताया गया था, लेकिन सोनिया गांधी के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने बीजेपी को हरा दिया. उस वक्त सोनिया ने अपने साथ बड़े-बड़े क्षेत्रीय क्षत्रपों को जोड़ा था. 


हार के बाद बीजेपी ने समीक्षा की तो पाया कि क्षेत्रीय दलों को नजरअंदाज करना बड़ी गलती थी. बीजेपी के विकास के ओवर कन्फिडेंस में इंडिया शाइनिंग का रथ डूब गया. जानकार बताते हैं कि पार्टी इस बार यह गलती नहीं करना चाहती है. 


इसलिए बीजेपी हाईकमान छोटे-छोटे दलों के साथ मजबूत और कद्दावर नेताओं को जोड़ रही है. 


2. वोटों का प्रतिशत विपक्षी मोर्चा के पक्ष में- विपक्षी मोर्चे में जिन 26 पार्टियों ने एक साथ आने की बात कही है, उनका वोट प्रतिशत 2019 में करीब 45 प्रतिशत था. सियासी अंकगणित के लिहाज से यह काफी अहम माना जा रहा है. गठबंधन में शामिल पार्टियां देश के ग्रामीण इलाकों में काफी मजबूत स्थिति में है.


चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में लोकसभा की कुल 353 सीटें हैं. 2019 को छोड़ दिया जाए तो ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियां ही मजबूत रही है. 2009 में कांग्रेस को 123, बीजेपी को 77  और अन्य पार्टियों को 153 सीटों पर जीत मिली थी. 


वहीं 2014 के मोदी वेब में कांग्रेस की संख्या में बड़ी कमी आई. कांग्रेस 28 पर सिमट गई, जबकि बीजेपी को 190 सीटों पर जीत मिली. हालांकि, अन्य पार्टियों की सीटों में ज्यादा कमी नहीं आई. 2014 में ग्रामीण इलाकों में अन्य पार्टियों को 135 सीटों पर जीत मिली.