सांसदी खत्म होने के बाद राहुल गांधी को लोकसभा सचिवालय ने बंगला खाली करने का नोटिस दिया है. कांग्रेस ने नोटिस भेजने में जल्दबाजी को लेकर सवाल उठाया है. पार्टी का कहना है कि सांसदी जाने के 2 दिन बाद ही सचिवालय ने बंगला खाली का नोटिस दिया है, जो कि कई अन्य मामलों में नहीं देखा गया है.


सांसदी खत्म होने के बावजूद बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और पूर्व कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद को अब तक बंगला खाली का नोटिस नहीं मिला है. आडवाणी और जोशी 2019 के बाद से किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं. आजाद फरवरी 2021 में रिटायर हुए थे. 


कांग्रेस नेता और छत्तीसगढ़ सरकार के एडिशनल एडवोकेट जनरल अशोक बसोया ने ट्वीट कर लिखा कि जेड प्लस सुरक्षा प्राप्त लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और एमएस बिट्टा लुटियंस दिल्ली के सरकारी बंगला में रहते हैं, लेकिन राहुल गांधी के नियम कुछ और ही है.


लुटियंस दिल्ली में बंगला किसे मिल सकता है?
साल 1911 में ब्रिटिश शासित भारत की राजधानी कोलकाता से नई दिल्ली बनाने का प्रस्ताव रखा गया. राजधानी दिल्ली में इंफ्रास्ट्रक्चर की रूपरेखा तैयार करने का जिम्मा एडवर्ड लुटियंस को सौंपा गया. लुटियंस ने 1912 में रायसीना हिल्स के आसपास नई दिल्ली का पुनर्निर्माण कराया. इसलिए इस इलाके को लुटियंस दिल्ली भी कहा जाता है. 


लुटियंस दिल्ली में करीब 1000 बंगले अभी हैं, जिसमें से 65 प्राइवेट है. बाकी के बंगले में सरकार के अधिकारी, सेना के टॉप कमांडेंट, जज और सांसद-मंत्री रहते हैं. सांसदों और मंत्रियों को बंगला आवंटित करने का काम हाउसिंग मंत्रालय का संपदा विभाग करता है. यही विभाग बंगले की देखरेख भी करता है.


लुटियंस दिल्ली में 8 टाइप का बंगला है, जिसे टाइप-1, टाइप-2, टाइप-3, टाइप-4, टाइप-5, टाइप-6, टाइप-7 और टाइप-8 नाम दिया गया है. टाइप-4 तक का बंगला सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को दिया जाता है. 


टाइप-5 और टाइप-6 का बंगला सांसदों को जबकि टाइप-7 और टाइप-8 का बंगला केंद्रीय मंत्री, स्पीकर, सुप्रीम कोर्ट के जज और सेना के प्रमुखों को मिलता है.


कई बार टाइप-7  और टाइप-8 का बंगला वरिष्ठ सांसदों को भी सरकार दे देती है. उदाहरण के लिए सोनिया गांधी को मिला 10 जनपथ का बंगला है. बंगला आवंटित करने और खाली करने को लेकर सरकार ने नियम बना रखे हैं. 


नए नियम के मुताबिक सांसद और एसपीजी प्राप्त व्यक्ति को सरकार लुटियंस दिल्ली में बंगला अलॉट करेगी. इसके अलावा किसी भी व्यक्ति को बंगला नहीं मिलेगा. सांसदों को सदस्यता खत्म होने के बाद बंगला खाली करने के लिए 30 दिन का नोटिस मिलता है.


अगर नोटिस के बाद बंगला खाली नहीं करते हैं तो उसे सरकार जबरन खाली करा सकती है. इसके अलावा 8 महीने तक आवास में रहने वालों पर 10 लाख का जुर्माना भी सरकार लगा सकती है. 


सांसद नहीं, फिर भी किन लोगों के पास है बंगला?
संपदा विभाग की वेबसाइट पर इसका कोई डेटा नहीं है. साल 2021 में प्रेस इन्फॉरमेशन ब्यूरो ने एक रिलीज में कहा था कि पूर्व सांसदों और मंत्रियों को बंगला नहीं मिल सकता है. राज्यसभा और लोकसभा सांसदों के टाइप-7 का बंगला ही मिलेगा. रिलीज में आगे कहा गया था कि स्पेशल केस में कैबिनेट कमेटी ऑफ एकमेंडेशन बंगला दे सकती है.


अब तक लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सुब्रमण्यम स्वामी, गुलाम नबी आजाद और एम एस बिट्टा के पास लुटियंस दिल्ली में सरकारी बंगला है. ऐसे में आइए विस्तार से जानते हैं पूर्व सांसदों ने क्यों नहीं खाली किया अब तक बंगला?


1. लालकृष्ण आडवाणी- 1970 में सांसद बनने के बाद लालकृष्ण आडवाणी को पंडारा पार्क में सरकारी आवास अलॉट किया गया था. 2002 तक आडवाणी यहीं पर रहे. साल 2002 में संसद पर हमले के बाद उनका बंगला बदला गया.


2002 के बाद से लालकृष्ण आडवाणी 30 पृथ्वीराज रोड, लोधी एस्टेट में रह रहे हैं. आडवाणी 2019 तक लोकसभा के सांसद थे, उसके बाद उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा. साल 2020 में ही कैबिनेट कमेटी ऑफ एकमेंडेशन ने आडवाणी को जान का खतरा देखते हुए बंगला जीवनपर्यंत के लिए आवंटित कर दिया.


आडवाणी देश के पूर्व गृहमंत्री रहे हैं और उन्हें अभी जेड प्लस की सुरक्षा मिली हुई है. आडवाणी को 2008, 2009 और 2020 में जान से मारने की धमकी मिल चुकी है. 2009 में खालिस्तान की ओर से आडवाणी को मारने की धमकी मिली थी. 


2. मुरली मनोहर जोशी- लुटियंस दिल्ली के रायसीना रोड पर पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी को बंगला आवंटित है. जोशी 2014 से 2019 तक कानपुर सीट से सांसद थे. 2019 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया. 


89 साल के जोशी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में गृह और शिक्षा जैसे विभागों के मंत्री रह चुके हैं. जोशी 1992 के बाबरी विध्वंस केस में आरोपी रह चुके हैं. हालांकि, 2020 में उन्हें कोर्ट से बरी कर दिया गया था. 


आडवाणी की तरह जोशी को भी कैबिनेट कमेटी ऑफ एकमेंडेशन ने सुरक्षा का खतरा बताते हुए हमेशा के लिए बंगला अलॉट किया है. जोशी को भी आईटीबीपी की सुरक्षा मिली हुई है. 


3. गुलाम नबी आजाद- राज्यसभा में नेता प्रतपक्ष और केंद्रीय मंत्री रह चुके गुलाम नबी आजाद से भी सरकार ने अब तक बंगला खाली नहीं करवाया है. आजाद को 2009 से ही  5, साउथ एवेन्यू लेन, नई दिल्ली का सरकारी बंगला आवंटित है. आजाद फरवरी 2021 में राज्यसभा से रिटायर हो गए. 


इसके बाद उनसे बंगला लेने की अटकलें चल रही थी, लेकिन आजाद ने कांग्रेस छोड़ खुद की नई पार्टी बना ली. साल 2022 में शहरी आवास मंत्री हरदीप पुरी से जब आजाद से बंगला खाली करवाने को लेकर सवाल पूछा गया तो उनका जवाब था कि ऐसे कई हैं अभी. सरकार धीरे-धीरे सबका बंगला खाली करवा रही है.


करीब 2 साल बीत जाने के बाद भी विभाग की ओर से अब तक आजाद को नोटिस नहीं भेजा गया है. 


4. सुब्रमण्यम स्वामी- पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी अब तक अपना सरकारी बंगला खाली नहीं किया है. स्वामी अप्रैल 2022 में ही संसद से रिटायर हो चुके हैं. स्वामी को राष्ट्रपति ने साल 2016 में अपने कोटे से मनोनित किया था. 


स्वामी को जनवरी 2016 में पंडारा रोड के एबी-14 बंगला आवंटित किया गया था. उस वक्त स्वामी राज्यसभा के लिए मनोनित नहीं हुए थे. कार्यकाल खत्म होने के बाद स्वामी ने हाईकोर्ट में अपील कर दिया. स्वामी का कहना है कि सरकार मेरे प्राइवेट घर में सुरक्षा की व्यवस्था नहीं कर पाएगी. 


जनवरी 2023 को इस मामले में अंतिम सुनवाई हुई है. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान स्वामी को 3 हफ्ते का वक्त घर खाली करने के लिए दिया था. 


इन चार नेताओं के अलावा एमएस बिट्टा को भी घर मिला हुआ है. बिट्टा को भी सुरक्षा के ग्राउंड पर ही घर दिया गया है. 


कैबिनेट कमेटी ऑफ एकमेंडेशन में गृह मंत्री अमित शाह, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी सदस्य हैं, जबकि मंत्री जितेंद्र सिंह को स्पेशल इनवाइटी के रूप में शामिल किया गया है.