लोकसभा चुनाव में BJP को रोकने के लिए क्या उत्तर प्रदेश में भी बनेगा 'महागठबंधन'?
बिहार की तरह क्या उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी को रोकने के लिए महागठबंधन बन सकता है. ये सवाल अब यूपी में राजनीतिक चर्चाओं के बीच सुनने को मिल जाता है. लेकिन क्या यूपी में इस तरह का गठबंधन बन सकता है?
बिहार में जेडीयू और आरजेडी के साथ आने के बाद महागठबंधन के नेता उत्साह में हैं. सीएम नीतीश कुमार को लोकसभा चुनाव 2024 में विपक्ष की ओर से पीएम पद का उम्मीदवार बनाने की भी बातें हो रही हैं. लेकिन विपक्ष का ये रथ यूपी में फंसता दिखाई दे रहा है. ऐसे में सवाल इस बात का है कि क्या यूपी में भी बिहार का जैसा प्रयोग आजमाया जा सकता है.
यूपी में विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों पर अगर नजर डालें तो बीजेपी को 41 फीसदी से ज्यादा वोट मिला है. दूसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी को 32 फीसदी के आसपास वोट मिला है.
वहीं बीएसपी को 12 फीसदी वोट हासिल किए. जाहिर है बीजेपी को हराने के लिए सपा को 10 फीसदी और वोटों का इंतजाम करना होगा. लेकिन यूपी में बीजेपी ने जिस तरह से गैर यादव और गैर जाटव वोटों का समीकरण तैयार किया है उसमें सेंध लगाना इतना आसान नहीं होगा.
क्या हुआ था साल 2017 के चुनाव में
यूपी में बीजेपी ने साल 2017 का चुनाव बिना किसी चेहरे के लड़ा था. समाजवादी पार्टी साल 2012 से सत्ता में थी. नोटबंदी और उरी हमले के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक और पूर्वांचल में उज्ज्वला योजना ने बीजेपी की लोकप्रियता चरम पर पहुंचा दिया था.
इस दौरान सपा ने यूपी में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया. लेकिन उसको करारी हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी गठबंधन ने 325 सीटें जीत लीं. हालांकि इस जीत में छोटे दलों के साथ गठबंधन ने भी बड़ी भूमिका निभाई थी. जिसमें ओपी राजभर की सुभासपा, निषाद पार्टी, अपना दल शामिल थे. सपा को इस चुनाव में 47 सीटें मिली थीं.
2019 में जब मुलायम-मायावती आ गए एक मंच पर
यूपी की राजनीति में लोकसभा चुनाव 2019 का चुनाव एक बड़ा टर्निंग प्वाइंट लेकर आया. 3 दशकों तक एक दूसरे को फूटी आंख न सुहाने वाले मुलायम सिंह और मायावती एक मंच पर आ गए. अखिलेश यादव ने बीएसपी के साथ गठबंधन कर सबको चौंका दिया था.
विश्लेषकों का मानना भी था कि ये गठबंधन यूपी में बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल खड़ा कर सकता है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अच्छा-खास दखल रखने वाली आरएलडी भी इस गठबंधन में शामिल थी. लेकिन नतीजों ने सबको चौंका दिया था.
बीजेपी गठबंधन ने अपना दल और निषाद पार्टी के साथ मिलकर 64 सीटें जीत ली थीं. इस बार ओपी राजभर ने चुनाव से पहले ही बीजेपी से नाता तोड़ लिया था. अति पिछड़ा वर्ग के वोटों पर दावा करने वाले ओपी राजभर का असर भी बीजेपी लहर में नहीं दिखा. सपा को इस चुनाव में मात्र पांच और बीएसपी को 10 सीटें मिलीं. 2014 के चुनाव में बीएसपी खाता भी नहीं खोल पाई थी.
2022 विधानसभा चुनाव में सपा को फायदा
समाजवादी पार्टी ने भी इस बार वही रणनीति अपनाई जो साल 2017 में बीजेपी ने आजमाया था. यानी छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन. सपा ने इस बार ओपी राजभर की पार्टी सुभासपा, आरएलडी, अपना दल (कमेरावाद) और महान दल के साथ गठबंधन किया.
हालांकि बीजेपी ने भी जबरदस्त सोशल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल किया था. बीजेपी ने दोबारा सत्ता में वापसी कर इतिहास रच दिया. लेकिन सपा गठबंधन ने भी 125 सीटें जीत लीं. इसमें 111 सीटें अकेले समाजवादी पार्टी के खाते में आईं. 2017 में सपा को 47 सीटें ही मिली थीं.
इस चुनाव में मिली हार का असर ये रहा कि सपा से एक-एक करके सभी दल छिटक गए. यहां तक कि शिवपाल यादव ने भी साथ छोड़ दिया. लेकिन इस चुनाव से एक सबक जरूर मिला कि यूपी में बीजेपी को रोकने के लिए सभी दल अगर एक साथ आ जाएं तो काम बन सकता है.
क्या बन सकता है यूपी में 'महागठबंधन'
राजनीति में किसी भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. महागठबंधन में सपा के साथ आरएलडी, अपना दल (कमेरावादी), जेडीयू और चंद्रशेखर की भीम आर्मी शामिल हो सकती है.
इस खाई को कौन पाटेगा
सपा के साथ शिवपाल और ओपी राजभर क्या फिर वापस आएंगे, ये अपने आपमें बड़ा सवाल है. दूसरी यूपी के दो प्रमुख दल बीएसपी और कांग्रेस को भी एक साथ लाना टेढ़ी खीर है.
क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने जिस तरह दलित वोटरों को लेकर रणनीति बनाई और राजस्थान में बीएसपी के विधायकों को तोड़कर कांग्रेस में शामिल किया गया, मायावती उसको भूल नहीं पाई हैं.
यूपी में दलित कभी कांग्रेस का वोटबैंक हुआ करते थे जिस पर बाद में बीएसपी ने एकछत्र अधिकार कर लिया. इस लिहाज से देखा जाए तो दोनों का साथ आना मौजूदा परिस्थियों में मुश्किल लग रहा है.
हालांकि विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सौरभ का दावा है कि कांग्रेस इस समय नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए दो कदम पीछे तक जाने को तैयार है. उनकी मानें तो कांग्रेस 2024 में राहुल गांधी को पीएम बनाने के एजेंडे पर काम ही नहीं कर रही है. पार्टी का लक्ष्य केंद्र में तीसरी बार मोदी सरकार बनने से रोकना है.
सपा-बीएसपी का फिर होगा साथ?
2019 की तरह क्या सपा और बीएसपी साथ आएंगी. लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद अखिलेश तो शांत रहे लेकिन मायावती ने सारा दोष सपा पर ही मढ़ दिया. आखिरकार ये गठबंधन भी चुनाव में मिली हार के बाद उपजी परिस्थितियों को झेल नहीं पाया.
गठबंधन से क्या हो सकता है फायदा?
बीजेपी के खिलाफ गठबंधन की सबसे बड़ी आस 2019 और 2022 के चुनाव के नतीजे हो सकते हैं. 2019 के चुनाव में सपा-बीएसपी गठबंधन की वजह से ही यूपी में बीजेपी गठबंधन की सीटें 73 से घटकर 64 पर आ गई.
वहीं विधानसभा चुनाव 2022 में सपा की सीटें 47 से लेकर 111 तक पहुंच तक गईं. मतलब साफ है कि अगर यूपी में एक जातीय समीकरणों के मिलाकर एक गठबंधन खड़ा हो तो बीजेपी को टक्कर मिल सकती है.