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25 साल पहले जबर्दस्ती नसबंदी का शिकार हुईं पेरू की महिलाओं को मिलेगा न्याय, जानें बड़ी खबर
लैटिन अमेरिकी देश पेरू में 1990 के दशक में जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम के तहत 2 लाख से ज्यादा महिलाओं की नसबंदी की गई थी. महिलाओं का आरोप है कि इनके साथ ब्लैकमेल किया गया था.
लैटिन अमेरिकी देश पेरू में 25 साल पहले महिलाओं की जबर्दस्ती नसबंदी के मामले में न्याय की आस जगी है. पहली बार पेरू की एक अदालत इस मामले में प्रभावित महिलाओं की आपबीती सुनेगी. अदालत इस पर विचार करेगी कि कैसे कानूनी लड़ाई लड़ रही महिलाओं को न्याय और मुआवजा मिले. इन महिलाओं का आरोप है कि 1990 के दशक में तत्कालीन राष्ट्रपति अल्बर्टो फुजिमोरी की सरकार के जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम के तहत उन्हें 'जबरन बांझ' बना दिया था. लोग इसके लिए पूर्व राष्ट्रपति और स्वास्थ्य कर्मियों को दोषी मानते हैं. पूर्व राष्ट्रपति भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों के हनन के मामलों में 2007 से जेल में हैं, लेकिन उन्हें 2014 में नसबंदी कार्यक्रम से जुड़े हर आरोपों से क्लीनचिट दे दी गई थी.
जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर महिलाओं के साथ भेदभाव
स्वैच्छिक सर्जिकल गर्भनिरोधक के नाम से लाया गया जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम पेरू सरकार का ग़रीबी के प्रति चलाए जा रहे अभियान का हिस्सा था जिसका उद्देश्य ग़रीब परिवारों के बीच शिशु जन्म-दर को कम करना था. हालांकि सरकार कहती रही कि ये नसबंदी लोगों की मर्ज़ी से की गई लेकिन 2000 से ज़्यादा औरतों ने बताया कि उनकी नसबंदी जबरन, परेशान कर, ब्लैकमेल कर और धोखे से की गई. पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले कई कैपेंन ग्रुप का मानना है कि राज्य की नीति भेदभाव और नस्लवाद पर आधारित थी और ट्यूब-टाइंग ऑपरेशन के कारण कम से कम 40 महिलाओं की मौत हुई.
2.70 लाख महिलाओं की जबर्दस्ती नसबंदी की गई
पेरू के स्वास्थ्य मंत्रालय के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2.70 लाख से अधिक महिलाओं और 22,000 पुरुषों की 1996 से 2001 के बीच जबर्दस्ती नसबंदी कर दिया गया था जिसके कारण इन लोगों को भारी मुसीबतों का सामना पड़ा. इनमें से कई लोगों की नसबंदी के दौरान मौत भी हो गई थी. जिन लोगों के साथ नसबंदी के लिए जबर्दस्ती की गई उनमें अधिकांश वहां के मूल निवासी क्वेशुआ समुदाय और निम्न-आय वाले परिवारों से थे. 2002 में कांग्रेस की जांच में कहा गया है कि इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि मेडिकल स्टाफ़ पर नसबंदी के लक्ष्य तक पहुंचने का दबाव डाला गया और इसके लिए महिलाओं की सहमति के बिना ही उनकी नसबंदी की गई.
देरी क्यों हुई
यह मामला 1996 से 2001 के बीच का है. लेकिन ये अब पहली बार अपनी कहानियां लेकर पेरू के न्यायालय में पहुंची हैं. इंटर-अमेरिकन कमीशन ऑफ ह्यूमन राइट्स (IACHR) द्वारा जांच के लिए कहे जाने के बाद, अब पेरू ने मारिया ममेरीता मेसान्ज़ा शावेज़ की मौत के पीछे राज्य को ज़िम्मेदार माना है. 33 साल की मारिया एक स्थानीय समुदाय से आती थी. साल 1998 में ऑपरेशन के बाद ज़रूरी देखभाल ना मिलने के कारण उनकी मौत हो गई.
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