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दुनिया के वो 5 विद्रोही समूह जो सेना से भी लड़ गए, सरकारों की नाक में दम कर दिया

लिट्टे ने श्रीलंका के उत्तर और पूर्व में एक स्वतंत्र तमिल राज्य बनाने की मांग की थी. LTTE यानी लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम ने लगभग तीन दशकों तक अपनी दहशत से लोगों को डराकर रखा था.

13 फरवरी 2022 को तमिल राष्ट्रवादी नेता पाझा नेदुमारन ने दावा किया कि लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) के नेता वेलुपिल्लई प्रभाकरण जिंदा हैं. वेलुपिल्लई प्रभाकरन वहीं शख्स है जिसने पूरे श्रीलंका में तहलका मचाने वाले उग्रवादी संगठन लिट्टे की शुरूआत की थी. इसके अलावा उस पर भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के साजिश का भी आरोप है. 

श्रीलंका सरकार ने लिट्टे नेता वेलुपिल्लई प्रभाकरन की मौत की घोषणा 18 मई, 2009 को यानी 14 साल पहले कर दी थी. अब एक बार फिर उसके जिंदा होने की खबर ने सबको चौंका कर रख दिया है. इस दावे पर श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय ने तमिल राष्ट्रवादी नेता पाझा नेदुमारन के दावे को खारिज कर दिया है. उनका कहना है कि लिट्टे प्रमुख मारा गया था और यह बात डीएनए टेस्‍ट में भी साबित हो चुकी है. 

ऐसे में जानते हैं कि आखिर लिट्टे क्या है और दुनिया का वो कौन सा समूह या संगठन है जिसने सेना और सरकार के नाक में दम कर दिया था. इनमें से कुछ ने तो बाद में वहां पर सत्ता भी हासिल कर ली.

सबसे पहले जानते हैं कौन है वेलुपिल्लई प्रभाकरन

वेलुपिल्लई प्रभाकरन एक श्रीलंकाई तमिल गुरिल्ला और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) का संस्थापक था. लिट्टे को आतंकी संगठन कहा जाता है. लिट्टे ने श्रीलंका के उत्तर और पूर्व में एक स्वतंत्र तमिल राज्य बनाने की मांग की थी. LTTE यानी लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम ने लगभग तीन दशकों तक अपनी दहशत से लोगों को डराकर रखा था. इसके बाद श्रीलंका सरकार और सेना ने 2009 में लिट्टे चीफ प्रभाकरन को मौत के घाट उतार दिया था. प्रभाकरन भगत सिंह और आजाद हिंद फौज बनाने वाले सुभाष चंद्र बोस, दो भारतीयों को अपना प्रेरणास्रोत मानते थे.

प्रभाकरन की मौत को लेकर अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स सामने आती रही हैं. किसी में कहा गया है कि प्रभाकरन ने सैनिकों के बीच घिरे रहकर खुद को गोली मार ली थी और कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि वह सैनिकों की गोली का शिकार हुआ था. प्रभाकरन पर पूर्व पीएम राजीव गांधी की हत्या की साजिश रचने का आरोप है. इसके अलावा वह श्रीलंका के एक और राष्ट्रपति की हत्या का प्रयास, सैकड़ों राजनीतिक हत्याओं और पच्चीसियों आत्मघाती हमलों का जिम्मेदार है. 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जब प्रभाकरन भारत-श्रीलंका समझौते को एक मौका देने के लिए तैयार हो गया तो राजीव गांधी काफी खुश हुए थे. प्रभाकरन के घर से निकलते समय उन्होंने राहुल गांधी से बुलेटप्रूफ जैकेट लाने के लिए कहा जो उन्होंने प्रभाकरन को दी ताकि वह किसी भी तरह के हमले से बच सकें. कहा जाता है कि राजीव गांधी ने उसकी जुबान पर भरोसा कर लिया था और बदले में प्रभाकरन ने उनकी ही हत्या की साजिश रच डाली. 

लिट्टे

लिट्टे (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) एक अलगाववादी संगठन है. जो पूर्व में उत्तरी श्रीलंका मे मौजूद था. इसकी स्थापना मई 1976 में प्रभाकरन द्वारा की गई थी. वह एक स्वतंत्र तमिल राज्य की स्थापना करना चाहते थे. अपनी मांग को लेकर धीरे-धीरे लिट्टे का आंदोलन उग्र और हिंसक होता जा रहा था.

एक दशक के अंदर प्रभाकरन ने लिट्टे को मामूली हथियारों के 50 से कम लोगों के समूह से 10 हजार लोगों के प्रशिक्षित संगठन में बदल दिया था जो एक देश की सेना तक से टक्कर ले सकता था.

साल 1983 में इस संगठन के लोगों ने जाफना में 13 श्रीलंकाई सैनिकों की हत्या कर दी. जिसके कारण हिंसा भड़क उठी. लिट्टे और श्रीलंकाई सेना के बीच टकराव बढ़ा. नतीजतन श्रीलंका में गृह युद्ध शुरू हो गया. 

पुष्प कमल दहल

पुष्प कमल दहल प्रचंड तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए हैं. लेकिन उनके शुरुआती दिनों की बात करें तो उनका उनका झुकाव वामपंथी दलों की तरफ बढ़ गया और उन्होंने साल 1981 में नेपाल की एक अंडरग्राउंड कम्युनिस्ट पार्टी जॉइन की. 1989 में वह पार्टी के नेता बन गए. प्रचंड साल लोकतंत्र की बहाली के बाद भी साल 1990 में नेपाल में 13 साल अंडरग्राउंड रहे थे. कहा जाता है कि 13 साल तक अंडरग्राउंड रहने वाले प्रचंड के नेतृत्व में दस साल का सशस्त्र संघर्ष चलाया गया. और ये संघर्ष ही नेपाल में राजनीतिक परिवर्तन का एक बड़ा कारण रहा है. माओवादी इस संघर्ष को एक 'जनयुद्ध' के रूप में देखते हैं.

मुस्लिम ब्रदरहुड

मिस्र का सबसे पुराना और सबसे बडा इस्लामी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड है. इस संगठन की स्थापना 1928 में हसन अल-बन्ना ने की थी और इसे इख्वान अल- मुस्लिमीन के नाम से भी जाना जाता है. इस संगठन ने स्थापना के बाद से ही पूरे संसार में इस्लामी आंदोलनों को काफी प्रभावित किया था और  इसके सदस्य मध्य पूर्व के कई देशों में हैं.

इस आंदोलन की शुरुआत इस्लाम नैतिक मूल्यों और अच्छे कामों का प्रचार प्रसार करने के लिए की गई थी, लेकिन आगे चलकर मुस्लिम ब्रदरहुड राजनीति में शामिल हो गया. मुस्लिम ब्रदरहुड ने खास तौर मिस्र को ब्रिटेन के औपनिवेशिक नियंत्रण से मुक्ति के अलावा बढ़ते पश्चिमी प्रभाव से निजात दिलाने के लिए काम किया.

हालांकि मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड को अवैध करार किया जा चुका है लेकिन यह कई सालों तक सत्ता पर काबिज रहे. इस संगठन ने ही राष्ट्रपति होस्नी मुबारक को सत्ता से बेदखल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. फरवरी 2011 में जन आंदोलनों के कारण होस्नी मुबारक को सत्ता से हटना पड़ा था.

ब्रदरहुड हमेशा कहता आया है कि वह लोकतांत्रिक सिद्धांतों का समर्थन करता है और उसके इस संगठन का मुख्य उद्देश्य है कि देश का शासन इस्लामी कानून यानी शरिया के आधार पर चलाया जाए.

हूती विद्रोही

हूतियों का उदय 1980 के दशक में हुआ था. हूती विद्रोही उत्तरी यमन में सुन्नी इस्लाम की सलाफी विचारधारा के विस्तार का विरोध करता है. जब यमन में सुन्नी नेता अब्दुल्ला सालेह की सरकार बनी तो शियाओं की दमन की कई घटनाएं सामने आई. हूतियों का मानना था कि सालेह की आर्थिक नीतियों की वजह से उत्तरी यमन में असमानता बढ़ी है.

हूतियों ने साल  2000 के दशक में अपनी सेना बना ली. एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2004 से 2010 के बीच हुती विद्रोहियों ने सालेह की सेना से 6 बार युद्ध किया था. 2014 में हूती विद्रोहियों ने अबेद रब्बो मंसूर हादी को सत्ता से बेदखल कर दिया और सेना पर कब्जा कर लिया था. जिससे सऊदी अरब और यूएई घबरा गए. उन्होंने अमेरिका और ब्रिटेन की मदद से एक गठबंधन बनाया. ये गठबंधन हूतियों पर हमला करता है.

ईरान को हूती विद्रोहियों का समर्थक माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि ईरान सीधे तौर पर हूतियों का समर्थन करता है. इसके दो कारण हैं. पहला कारण ईरान का एक शिया देश होना, वही हूती शिया हैं. दूसरा कारण ईरान और सऊदी अरब के बीच लंबे समय से विवाद माना जाता है.

हूती विद्रोहियों के कारण ही यमन में सालों से गृहयुद्ध चल रहा है. रिपोर्ट के अनुसार इस गृहयुद्ध में अब तक 2.30 लाख यमन नागरिकों की मौत हो चुकी है. कई बार संयुक्त राष्ट्र ने भी युद्ध को शांत कराने की कोशिश की है लेकिन न ही सऊदी अरब पीछे हटने को तैयार है और नही हूती.

तालिबान 

तालिबान का उभार नब्बे के दशक की शुरुआत में हुआ जब सोवियत संघ अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला रहा था. कहा जाता है कि पश्तो आंदोलन पहले धार्मिक मदरसों में उभरा इस आंदोलन में सुन्नी इस्लाम की कट्टर मान्यताओं का प्रचार किया जाता था. जिसके बाद सऊदी अरब ने इसे फंडिंग की. 

धीरे धीरे तालिबानी पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच फैले पश्तून इलाके में शांति और सुरक्षा की स्थापना के वादे के साथ शरिया कानून के कट्टरपंथी संस्करण को लागू करने का वादा करने लगे थे. तालिबान ने सितंबर, 1995 में ईरान की सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्जा किया. जिसके एक साल बाद तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा जमाया.

साल 2001 में अमेरिकी नेतृत्व वाली सेना ने अफगानिस्तान में तालिबान को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. हालांकि इस समूह ने हर बीतते साल के साथ खुद को मजबूत किया और साल 2022 में इसने लगभग पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया. 

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