मानवाधिकार संगठन वॉक फ्री की तरफ से जारी ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के मुताबिक पांच करोड़ लोग 'आधुनिक गुलाम' बन कर जी रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक आधुनिक दासता या आधुनिक गुलामी में लोगों की संख्या पिछले पांच सालों में काफी बढ़ी है. साल 2021 में 2016 के मुकाबले दुनिया भर में 10 करोड़ से ज्यादा लोग आधुनिक गुलाम बने हैं. ये रिपोर्ट 24 मई को लंदन में प्रकाशित हुई. रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई गई कि इस गुलामी में महिलाएं और बच्चे पूरी तरह से असुरक्षित हैं. 


आधुनिक गुलामी दुनिया के लगभग हर देश में हो रही है. आधुनिक गुलामी करने को मजबूर लोग हर जाति, सांस्कृतिक और धर्म से जुड़े अलग-अलग लोग हैं. ये सभी जबरन श्रम कर रहे हैं. इस गुलामी में आधे से ज्यादा लगभग 52 प्रतिशत 'जबरन श्रम' और एक चौथाई लोग जबरन विवाह करने को मजबूर हैं. जबरन विवाह करने को मजबूर ये लोग उच्च-मध्यम आय या उच्च आय वाले देशों के लोग हैं. 


ताजा सूचकांक के मुताबिक उत्तर कोरिया, इरीट्रिया और मौरितानिया में दुनिया में आधुनिक गुलामी का स्तर सबसे ज्यादा है. रिपोर्ट ने पांच साल पहले अपने पिछले सर्वेक्षण के बाद से वैश्विक स्तर पर "बिगड़ती" स्थिति का उल्लेख किया है.


भारत, चीन और रूस में भी आधुनिक गुलाम


टॉप 10 देशों की लिस्ट में सऊदी अरब, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात और कुवैत भी शामिल हैं. रिपोर्ट के मुताबिक ये सभी देश नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के लिए भी कई तरह के कदम उठा रहे हैं. इसके बावजूद इन देशों में आधुनिक गुलामी के सबूत बड़े पैमाने पर मिले हैं. 


रिपोर्ट में कहा गया है कि कई देशों में सरकारें अपने नागरिकों को निजी जेलों या जबरन श्रम जैसे अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने के लिए मजबूर करती हैं. रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 1.1 करोड़, चीन में 50 लाख और रूस में 18 लाख लोग शोषित हैं.


'वैश्विक गुलामी सूचकांक-2016’  में पांच देश एशिया देशों में आधुनिक गुलामी सबसे ज्यादा हो रही थी. भारत सबसे टॉप पर था. भारत के बाद चीन (33.90 लाख), पाकिस्तान (21.30 लाख), बांग्लादेश (15.30 लाख) और उज्बेकिस्तान (12.30 लाख) के आंकड़े पर था. 


आधुनिक गुलामी क्या है?


वॉक फ्री फाउंडेशन के मुताबिक जबरन श्रम, ऋण न चुकाने पर गुलामी, जबरन विवाह, दूसरी तरह की गुलामी-जैसी प्रथाएं, बच्चों की बिक्री और शोषण और मानव तस्करी शामिल हैं.


आधुनिक गुलामी को हम अपने आस-पास कई तरह से देखते हैं. इनमें शामिल हैं-


मानव तस्करी-  रिपोर्ट के मुताबिक जबरन वेश्यावृत्ति, श्रम, जबरन विवाह या शरीर का अंग काट देना, धमकियां देकर या जबरदस्ती किसी का इस्तेमाल मानव तस्करी का हिस्सा है. 


बेगारी- कोई भी काम या सेवा जो लोगों को जबरदस्ती करना पड़े या करने के लिए मजबूर किया जाए. 


बंधुआ मजदूरी- ये दासता की दुनिया का सबसे व्यापक रूप है. आमतौर पर गरीबी में फंसे लोग पैसे उधार लेते हैं और कर्जा न चुका पाने की स्थिति में काम करने के लिए मजबूर होते हैं. ऐसे में वो अपना रोजगार भी खो देते हैं.


वंश-आधारित दासता - ये गुलामी का एक बहुत पुराना रूप है. यहां पर पूरे वंश को ऊपर बैठे लोग अपनी संपत्ति मानते हैं.


बाल दासता-  यहां पर किसी बच्चे का शोषण किसी और के फायदे के लिए किया जाता है. इसमें बाल तस्करी, बाल सैनिक, बाल विवाह और बाल घरेलू दासता शामिल हो सकती है. 


जबरन और जल्दी शादी- जब किसी की शादी उसकी मर्जी से न होकर कहीं और करा दी जाए, और वो मजबूरी में उसे छोड़ भी न सके. अधिकांश बाल विवाह को गुलामी माना जा सकता है.


घरेलू दासता- घरेलू काम और घरेलू दासता हमेशा गुलामी नहीं होती है. घरेलू दासता के बदले आमतौर पर पैसे मिलते हैं. जब कोई किसी अन्य व्यक्ति के घर में काम कर रहा होता है, तो अक्सर ही वो दुर्व्यवहार, शोषण और दासता के प्रति संवेदनशील होता है, लेकिन ऐसे लोगों के लिए बड़े पैमाने पर कानूनी रूप से कोई सुरक्षा नहीं पहुंचाई जाती है. 


रिपोर्ट के मुताबिक जबरन श्रम के 86 प्रतिशत मामले निजी क्षेत्र में पाए जाते हैं. अन्य क्षेत्रों में 'जबरन श्रम'  63 प्रतिशत है. कमर्शियल सेक्सुअल एक्सप्लाइटेशन के मामले 23 प्रतिशत पाए गए. इस शोषण में शामिल पांच लोगों में से लगभग चार महिलाएं या लड़कियां हैं. वहीं जबरन श्रम के ज्यादातर मामले बच्चों में पाए गए. कुल 8 में 1 बच्चा जबरन श्रम के लिए मजबूर पाया गया. अलग-अलग देशों को मिलाकर देखें तो 3 करोड़ 30 लाख बच्चे जबरन श्रम के लिए मजबूर हैं. 


जबरन शादी


2021 के बाद से 2.2 करोड़ लोग जबरन कराई गई शादी में रहने को मजबूर हैं. यह 2016 के वैश्विक अनुमानों के बाद से भयानक बढ़ोतरी की तरफ इशारा करता है. जबरन विवाह के रिशते में ज्यादातर 16 साल और उससे कम उम्र के बच्चे रह रहे हैं.


प्रवासी मजदूर 'जबरदस्ती श्रम' के लिए मजबूर 


प्रवासी श्रमिकों में गैर-प्रवासी वयस्क श्रमिकों के मुकाबले जबरदस्ती श्रम करने के माले तीन गुना ज्यादा पाए गए. यह इस बात की तरफ इशारा है कि आधुनिक गुलामी की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है. आईएलओ के महानिदेशक गाइ राइडर ने वॉक फ्री सो बताया, " इस मौलिक दुरुपयोग को तुरंत रोका जाना चाहिए. हम जानते हैं कि क्या करने की जरूरत है, हम ये भी जानते हैं कि इसे रोकने के लिए क्या किया जा सकता है. इसके लिए प्रभावी राष्ट्रीय नीतियां हैं, लेकिन सरकारें इसे अकेले नहीं कर सकती हैं. 


आधुनिक गुलामी की वजह क्या है?


आधुनिक गुलामी की सबसे बड़ी वजह गरीबी है. गरीबी का मार झेल रहे लोग अक्सर शोषण, और धोखाधड़ी का शिकार होते हैं. कानूनी तौर पर भी ऐसे लोगों को ठीक से सुरक्षा नहीं पहुंचाई जाती. इसके अलावा आधुनिक गुलामी के कई और कारण भी हैं, लेकिन पर्यावरणीय मुद्दों और कोविड-19 के व्यापक प्रभाव की पृष्ठभूमि में स्थिति बदतर होती जा रही है.


कई देशों में अपराधी गिरोह आज भी गरीबों की बेबसी का फायदा उठा रहे हैं. ऐसे लोग पुरुषों से बंधुआ मजदूरी और भीख मांगने का काम कराते हैं. वहीं मजबूर औरतें जिस्मफरोशी करने को मदबूर होती हैं. इन पेशों पर रोक लगाने के लिए कानून तो बने हैं लेकिन  कई देशों का राजकीय तंत्र पूरी तरह से रोकथाम नहीं कर पाया है. जिन देशों से आधुनिक गुलामी के मामले सबसे ज्यादा आए हैं, वहां पर कहीं न कहीं सरकार अपने प्रत्येक नागरिक के लिए समुचित भरण-पोषण का इतंजाम नहीं कर पा रही है. देश में भयानक गरीबी, अशिक्षा और पिछड़ेपन के चलते करोडों लोग गुलामों की तरह अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं.  


इन मामलों पर संयुक्त राष्ट्र की तरफ से भी हर बार कदम उठाने की अपील की जाती है, मगर मानव-विकास का एजेंडा कहीं न कहीं पीछे छूटता जा रहा है. 


आधुनिक गुलामी को कैसे रोका जा सकता है?


रिपोर्ट में आधुनिक गुलामी को खत्म करने और 2030 तक सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) को प्राप्त करने के वादों पर जोर दिया गया है. राष्ट्रमंडल सदस्य देशों ने 2018 में इस तरह की गुलामी को 4 प्रतिशत तक खत्म करने का वादा किया था, लेकिन 2023 तक ये और बढ़ गया . 


रिपोर्ट में पाया गया है कि राष्ट्रमंडल सदस्य देशों में से केवल एक तिहाई जबरन विवाह को अपराध मानते हैं, और 23 राष्ट्रमंडल सदस्य देश कमर्शियल सेक्सुअल एक्सप्लाइटेशन को अपराध बनाने में नाकामयाब साबित हुए. 


वॉक फ्री और राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल देशों के अध्यक्षों की अगली बैठक के एजेंडे में आधुनिक गुलामी को मजबूती से शामिल किए जाने की बात कही गई है. रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि राष्ट्रमंडल सरकारें आधुनिक गुलामी और शोषण का मुकाबला करने के लिए एक बड़ी पहल शुरू करें.


वॉक फ्री की सह-संस्थापक ग्रेस फॉरेस्ट ने रिपोर्ट में कहा कि सदस्य देशों को कमजोर लोगों की सुरक्षा के लिए अब कदम उठाने की जरूरत है.  "आधुनिक गुलामी में रहने वाले लोगों को वादों और योजनाओं की जरूरत नहीं है. इसके बजाय हम राष्ट्रमंडल देशों से कार्रवाई करने का आग्रह कर रहे हैं. "राष्ट्रमंडल देशों में हर 150 लोगों में से एक आधुनिक गुलामी में रह रहा है. इसमें लगभग 15.7 मिलियन पुरुषों, महिलाएं शामिल हैं.


सीएचआरआई लंदन कार्यालय की निदेशक स्नेह अरोड़ा ने रिपोर्ट में कहा कि सीएचआरआई और वॉक फ्री अगली बैठक से पहले राष्ट्रमंडल सरकारों के साथ काम करने के लिए तत्काल प्रभाव से नई रिपोर्ट को आधार बनाते हुए काम शुरू करेगी. अरोड़ा ने कहा, "सदस्य देशों और राष्ट्रमंडल सचिवालय को एक साथ आना चाहिए.