5 दशक पहले चीन और ऑस्ट्रेलिया के करीब आने की कहानी, लेकिन अब बदल गई है दोनों की रवानी
एक दौर था जब ऑस्ट्रेलिया को चीन से करीबी रिश्तों की दरकार थी और वो जोखिम उठा कर भी इसे बनाना चाहता था, लेकिन आज तस्वीर अलग है अब वो भारत के करीब है. इसलिए भी तीन देशों की ये कहानी बेहद दिलचस्प है.
साल था 1971 का और एक युवा ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ता कैनबरा के एक पब में शराब पी रहे थे. इस दौरान उन्हें एक फोन आया, जिसने उसकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी. पब में आए कॉल में पूछा गया, “क्या यहां कोई है जिसे स्टीफन फिट्ज़गेराल्ड कहा जाता है?" लाइन पर दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया के सबसे शक्तिशाली राजनेताओं में से एक भविष्य के प्रधानमंत्री एडवर्ड गफ विटलम थे.
ऑस्ट्रेलिया के इस तत्कालीन विपक्षी नेता ने चीन के मामले में जानकारी रखने वाले स्टीफन फिट्ज़गेराल्ड से पूछा कि क्या वह देश के लिए एक ऐतिहासिक राजनयिक मिशन में उनके साथ शामिल होंगे? डॉ. फिट्ज़गेराल्ड ने तुरंत कहा, “बिल्कुल मैं शामिल होना पसंद करूंगा!" फिर गफ विटलम ने अपने अनोखे अंदाज में उनसे पूछा, 'क्या आप इकोनॉमी क्लास में सफर करना पसंद करेंगे?"
यही 21 दिसंबर 1972 का वो पल था जिसने ऑस्ट्रेलिया को चीन के साथ राजनयिक संबंध बनाने में मदद की थी. स्टीफन फिट्ज़गेराल्ड एडवर्ड गफ विटलम के सत्ता में आने के बाद चीन में ऑस्ट्रेलिया के राजदूत बनकर गए थे.
ड्रैगन पर 'गहरा विभाजनकारी' मुद्दा
चीन के साथ राजनयिक रिश्ते कायम करने के लिए चीन जाना मिस्टर गफ विटलम का एक जोखिम भरा कदम था. 1971 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) शीत युद्ध के बीच विश्व मंच पर अपना रास्ता बना रही थी. वो विदेशी संबंधों में सुधार और संयुक्त राष्ट्र में एक सीट की मांग कर रही थी. लेकिन अमेरिका जैसे प्रमुख खिलाड़ियों की वजह से उसे रुकावटों का सामना करना पड़ रहा था. अमेरिका ने सीसीपी को चीन की वैध सरकार के तौर पर मान्यता देने से इनकार कर दिया था.
उधर ऑस्ट्रेलिया एक ऐसा देश था जहां चीन "गहरा विभाजनकारी" मुद्दा बना रहा. चीन को लेकर ऑस्ट्रेलियाई लोगों की राय बंटी हुई थी. दरअसल उस वक्त इसकी केवल 3 फीसदी आबादी ऑस्ट्रेलिया या यूरोप के बाहर पैदा हुई थी और बहुत से लोगों को अन्य संस्कृतियों को लेकर संदेह था. साम्यवाद का "लाल खतरा" भी एक बड़ी चिंता का विषय था. इस तरह की आशंकाओं की वजह से चीन को लेकर ऑस्ट्रेलिया में एक राय नहीं बन पा रही थी.
जब ऑस्ट्रेलिया की रूढ़िवादी सरकार ने चीन से पैदा होने वाले खतरे की बात की तो कई लोगों को ये लगा कि चीन का ऑस्ट्रेलिया पर कब्जा किया जाना आसान है जो सिर्फ चीनी नहीं थे बल्कि चीनी साम्यवादी थे. दूसरी तरफ गफ विटलम लंबे वक्त से ऑस्ट्रेलिया के चीन के साथ रिश्ते बनाने की वकालत करते आ रहे थे, लेकिन वो सीसीपी की वकालत किसी वैचारिक सहानुभूति की वजह से नहीं करते थे.
उनका मानना था कि चीन को पसंद करने की जरूरत नहीं है, लेकिन उनका ये मानना था कि चीन के आकार के देश की सरकार के साथ राजनयिक रिश्ते न रखा जाना भी संभव नहीं है. हालांकि मिस्टर गफ विटलम की लेबर पार्टी के अंदर भी कई लोगों ने चीन की तरफ किसी भी तरह के कदम बढ़ाने को घरेलू स्तर पर उनके लिए "राजनीतिक मौत" कहा था. इस तरह से देखा जाए तो गफ विटलम के चीन के साथ कूटनीतिक रिश्ते कायम करने के फैसले को अपने ही देश में कई मोर्चों पर लोहा लेना पड़ा था.
अचानक बने राजदूत
ऑस्ट्रेलिया के 21वें प्रधानमंत्री गफ विटलम के लिए भले ही चीन से कूटनीतिक रिश्ते बनाना जरूरी मान रहे थे, लेकिन तब डॉ. फिट्जगेराल्ड के लिए चीन कोई खास मायने नहीं रखता था. उन्होंने चीन का अध्ययन करना नहीं चुना था, लेकिन विदेशी सेवा कैडेट के तौर पर पहले ही दिन उन्हें चीनी भाषा की कक्षाएं पढ़नी पड़ी थीं. जब गफ विटलम का फोन डॉ. फिट्जगेराल्ड को आया था तो वो अकादमिक क्षेत्र में करियर बनाने का फैसला कर चुके थे. लेकिन उनके लिए चीन जाने का न्योता एक आश्चर्य से कम नहीं था.
वह बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में डॉ. फिट्जगेराल्ड कहते हैं, "उन दिनों आपको चीन में चलना पड़ता था, वहां कोई फ्लाइट्स नहीं थीं. हमें हांगकांग जाने के लिए बॉर्डर तक ट्रेन से जाना था. अपना सामान उस पार ले जाने के लिए चीन की तरफ से आव्रजन और सीमा शुल्क से गुजरना था और फिर दूसरी ट्रेन में सवार होना था."
ऑस्ट्रेलिया के इस प्रतिनिधिमंडल ने दो सप्ताह के लिए व्यवसायों, कारखानों, स्कूलों और पर्यटन स्थलों का दौरा किया. डॉ. फिट्जगेराल्ड याद करते हैं कि कैसे उन्हें "रहस्यमय" चीनी अधिकारियों को लगातार ऑस्ट्रेलियाई सेंस ऑफ ह्यूमर समझाना पड़ता था.
लेकिन मिशन का असली मतलब तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री झोउ एनलाई से मिलना था. लेकिन ये पक्का नहीं था कि ये मुलाकात होगी कि नहीं. जब तक कि चीनी अधिकारी देर रात ऑस्ट्रेलियाई लोगों के होटल में नहीं पहुंचे और लोगों को कारों में बैठाना न शुरू कर दिया तब- तक इस मुलाकात को लेकर बस कयास ही लगाए जा रहे थे.
डॉ. फिट्ज़गेराल्ड कहते हैं, "हमने बीजिंग की खाली सड़कों से ग्रेट हॉल ऑफ़ द पीपुल की ओर गाड़ी चलाई, मंद रोशनी वाले गलियारों से होते हुए सीढ़ियां चढ़कर एक कमरे में गए, और झोउ एनलाई वहां खड़े थे."
जब बड़े इंतजार के बाद ये बैठक शुरू हुई तो झोउ ने पत्रकारों को कमरे में रहने के लिए बुलाया और ऑस्ट्रेलियाई प्रतिनिधिमंडल को चौंका दिया. यही वो बैठक थी जिसने चीन के लिए ऑस्ट्रेलिया की भावनाओं को बदल दिया था.
फिट्ज़गेराल्ड बताते हैं, "जब मैंने गफ विटलम और झोउ एनलाई के बीच उस बैठक को देखा, तो मैंने निष्कर्ष निकाला कि चीन के साथ रिश्ते फिर कभी पहले जैसे नहीं रहेंगे. उस दौर में चीन और ऑस्ट्रेलिया के राजनयिक रिश्तों के बीच दिसंबर 1972 का चुनाव था. इसी चुनाव में गफ विटलम ने 23 साल के रूढ़िवादी शासन को खत्म करते हुए चुनाव जीता था और हफ्तों के अंदर ही उन्होंने 21 दिसंबर को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को मान्यता दी.
इसके तुरंत बाद, उन्होंने चीन में ऑस्ट्रेलिया के पहले राजदूत के तौर पर डॉ फिट्जगेराल्ड को बीजिंग भेजा. उस समय फिट्जगेराल्ड महज 34 साल के थे और ऑस्ट्रेलिया के अब तक के सबसे कम उम्र के राजदूत बने थे. फिट्जगेराल्ड के मुताबिक, "निश्चित तौर से यह उनके लिए चुनौतीपूर्ण था. ऑस्ट्रेलिया के पीएम के तौर पर एडवर्ड गफ विटलम को उम्मीद थी कि ऑस्ट्रेलिया चीन के साथ एक ऐसा रिश्ता बनाएगा, जिसकी तुलना अन्य प्रमुख शक्तियों के साथ की जा सकती है, लेकिन 50 साल बाद, चीजें ऐसी नहीं हैं.
आज कैसे हैं चीन- ऑस्ट्रेलिया के रिश्ते?
ऑस्ट्रेलिया की तरफ से इस पहली राजनयिक पहल के बाद ऑस्ट्रेलिया और चीन को एक-दूसरे के साथ व्यापार से बहुत फायदा हुआ है, लेकिन हाल के दिनों में द्विपक्षीय संबंध रिकॉर्ड स्तर पर गिर गए हैं. व्यापार, मानवाधिकारों और विदेशी हस्तक्षेप पर विवादों के बीच दो साल के लिए दोनों देशों के बीच हाई लेवल का संपर्क काट दिया गया. हालांकि लेकिन बीते महीने मई में प्रधानमंत्री चुने गए एंथनी अल्बनीज साल 2016 के बाद से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ आमने-सामने बैठक करने वाले पहले ऑस्ट्रेलियाई नेता बने.
उन्होंने इस मुलाकात के बाद कहा कि यह एक गर्मजोशी वाली बेहद रचनात्मक" बातचीत थी, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के लिए अहम मुद्दों पर कोई हलचल नहीं थी. कई विशेषज्ञ इस बात को लेकर आशावादी नहीं हैं कि जल्द ही किसी भी वक्त दोनों देशों के रिश्तों में उल्लेखनीय सुधार होगा.
अभी भी दोनों देशों के बीच कई मुद्दों के लेकर मतभेद बने हुए हैं. इनमें चीनी सरकार प्रणाली और मूल्यों को लेकर हैं और इन मुद्दों का एक बैठ या कई बैठकों से भी कोई हल नहीं निकाला जा सकता है. ऐसी ही एक और बैठक बुधवार 21 दिसंबर को हो रही है. इसमें ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वोंग अपने चीनी समकक्ष वांग यी से बीजिंग में मुलाकात करेंगी. यह 3 साल से अधिक वक्त में किसी ऑस्ट्रेलियाई मंत्री की चीन की राजधानी की पहली यात्रा है.
डॉ फिट्ज़गेराल्ड कहते हैं कि आज का चीन अधिक "तानाशाही दिमाग" और "हठधर्मी" लगता है, लेकिन वह अभी भी सोचते हैं कि 50 साल पहले जो कुछ हुआ उसके अपने सबक हैं. एडवर्ड गफ विटलम की सरकार ने माना था कि चाहे कुछ भी हो गया हो, आपको अभी भी उस देश की सरकार के साथ रिश्ते बनाए रखने हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि सब कुछ मिठास से भरा और हल्का था, इसका मतलब केवल यह था कि हम एक -दूसरे के साथ बात कर रहे थे.
दरअसल चीन ऑस्ट्रेलिया की सबसे बड़ी व्यापारिक भागीदारी रही है, साल 2019 में 195 अरब डॉलर का कारोबार चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुआ था. लेकिन 2018 से इन रिश्तों में खटास आनी शुरू हो गई थी. इसकी वजह रही ऑस्ट्रेलिया के चीनी कंपनी ख़्वावे के 5जी नेटवर्क को बैन करना.
साल 2020 में चीन ने ऑस्ट्रेलिया से शराब और बीफ़ के आयात पर रोक लगा दी थी. इसके साथ ही चीन के नेशनल डेवलपमेंट एंड रिफॉर्म कमिशन (एनडीआरसी) ने ऑस्ट्रेलिया पर 'शीत युद्ध के दौर की मानसिकता बरकरार रखने का आरोप लगाया था. चीन के इस कदम ने दोनों देशों के राजनयिक रिश्तों को और अधिक खराब कर दिया है.
गौरतलब है कि बीते साल 2021 में चीन और ऑस्ट्रेलिया के राजनयिक रिश्तों में खासी तल्खी आ गई थी. चीन ने ऑस्ट्रेलिया के संग आर्थिक बातचीत अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दी थी. ये तब हुआ जब ऑस्ट्रेलिया ने कोरोना वायरस के पैदा होने की जांच के मुद्दे को उठाया था.
अप्रैल 2021 में ऑस्ट्रेलिया ने चीन संग उसके बेहद अहम माने जाने वाले 'बेल्ट एंड रोड' प्रोजेक्ट से जुड़े दो करार रद्द कर डाले थे. ऑस्ट्रेलिया क्वॉड भी हिस्सा है. ऑस्ट्रेलिया के अलावा इस समूह में शामिल भारत, जापान, अमेरिका से चीन की पुरानी अदावत रही है. चीन इस समूह को अपने खिलाफ मानता है. इससे भी इन दोनों के देशों के रिश्तों में और अधिक खलल पड़ा.
बीते साल ही 15 सितंबर चीन को सबक सिखाने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने एक अहम रक्षा समझौता किया था. तीनों देशों ने ये समझौता हिंद-प्रशांत महासागर इलाके में चीन की बढ़ती ताकत और उसकी सैन्य मौजूदगी को देखते हुए किया था. इसे ऑकस दिया गया था, जिसका मतलब है ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस से है.
भारत और ऑस्ट्रेलिया की करीबी बढ़ी
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच वाणिज्यिक रिश्ते 18 वीं शताब्दी से हैं. 1840 तक लगभग हर चार दिन बाद सिडनी से एक जहाज भारत के लिए रवाना होता था. दोनों देशों के बीच "व्यापक रणनीतिक साझेदारी" है. ये दोनों देश ब्रिटिश साम्राज्य के उपनिवेश रह चुके हैं. इसके साथ दोनों देश राष्ट्रमंडल राष्ट्रों के सदस्य हैं. ये दो देश राजनीतिक, आर्थिक, सुरक्षा, भाषाई और खेल संबंधों को भी साझा करते हैं.
मजबूत व्यापार साझेदारी के अलावा, संस्कृति, कला, संगीत, क्रिकेट, टेनिस, बैडमिंटन जैसे वाणिज्यिक और अंतर्राष्ट्रीय खेल दोनों देशों के बीच एक मजबूत सांस्कृतिक संबंधों के तौर पर उभरे हैं. ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच विदेशी राजनयिक रिश्ते भी बेहद शानदार रहे हैं. दोनो देशों के बीच सैन्य सहयोग में नियमित संयुक्त अभ्यास भी शामिल हैं. हाल के दौर में दोनों देशों के रिश्ते विकास का एक लंबा दौर तय कर चुके हैं.
इन रिश्तों की बानगी के तौर पर हाल की घटनाओं पर नजर डाली जा सकती है. मसलन भारत प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता को देखते हुए दोनों देशों के रिश्तों को और मजबूत बनाने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून 2022 में पहला द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन आयोजित किया था.
मार्च 2022 में ऑस्ट्रेलिया ने भारत को उसकी 29 कलाकृतियां वापस की. 2 अप्रैल 2022 को भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौता (इंडिया-ऑस्ट्रेलिया ईसीटीए) पर हस्ताक्षर किए गए.
हाल ही में 28 नवंबर से लेकर रविवार 11 दिसंबर 2022 तक भारत और ऑस्ट्रेलिया की सेनाओं ने राजस्थान के बीकानेर जिले के महाजन फील्ड फायरिंग रेंज में संयुक्त युद्धाभ्यास को अंजाम दिया है. इसे 'ऑस्ट्रा हिन्द-22 (Austra Hind 22)' नाम से दिया गया था.