म्यांमार में हुए सैन्य तख्तापलट के पीछे क्या चीन की करतूत हो सकती है. इस बड़े सवाल पर संस्पेस बना हुआ है. लेकिन तख्तापलट के बाद कुछ ऐसे सबूत मिल रहे हैं जिससे ये शक गहरा जाता है कि भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में हुए तख्तापलट में चीन का हाथ हो सकता है. एबीपी न्यूज को मिली जानकारी के मुताबिक, चीन ने म्यांमार में आंदोलन को कुचलने के लिए एक खास साइबर टीम रंगून भेजी है जो सरकार ('मिलिट्री-जुंटा') के खिलाफ सोशल मीडिया पर चल रहे प्रोपेगेंडा को मॉनिटर और कंट्रोल करने का काम करेगी.


एबीपी न्यूज को विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है कि 10-11 फरवरी को चीन की एक साइबर टीम यूनान प्रांत के कुमिंग शहर से म्यांमार के रंगून शहर पहुंची है. इस चीनी टीम का उद्देश्य, म्यांमार के साइबर स्पेस को मॉनिटर और कंट्रोल करने का है.


सिविल आंदोलन को कुचलने में माहिर है चीन


जानकारी के मुताबिक, चीन की मिलिट्री-जुंटा (सैन्य-शासन) ने चीन से इस साइबर टीम के लिए आग्रह किया था. क्योंकि चीन को इस तरह के सिविल-आंदोलनों को कुचलने में महारत हासिल है और चीन में इंटरेनट पर चीनी सरकार का बड़ा कंट्रोल है. म्यांमार पहुंची इस साइबर टीम का मुख्य काम मिलिट्री-गर्वमेंट के खिलाफ ऑनलाइन चलाए जा रहे आंदोलन, प्रोपेगेंडा और दूसरी गतिविधियों को रोकना है.


आपको बता दें कि हाल ही में म्यांमार सेना ('तात्मादा')ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार का तख्ता पलट कर शासन अपने हाथ में ले लिया है. साथ ही म्यांमार की सबसे बड़ी नेता, आंग सान सू क्यू सहित सरकार के नुमाइंदों को जेल में डाल दिया है. सेना का आरोप है कि हाल ही में म्यांमार में हुए चुनावों में सू की कि पार्टी ने जबरदस्त तरीके से धांधली की थी. इसीलिए, सेना ने सरकार को हटाकर सत्ता अपने हाथ में ले ली है.


क्या है तख्तापलट का कारण


दरअसल, इस तख्तापलट का एक बड़ा कारण सरकार (पुरानी सरकार जिसका तख्तापलट किया है) उसमें सेना का हिस्सेदारी और दबदबे को कम करना माना जा रहा है. क्योंकि, हालिया चुनाव में आंग सान सू क्यू की पार्टी बिना सेना की मदद से सरकार बनाने में सक्षम थी. इसीलिए माना जा रहा है कि म्यांमार सेना ने ये तख्तापलट किया है. दरअसल, वर्ष 2011 में जब म्यांमार (बर्मा) में एक लंबे सैन्य शासन के बाद लोकतंत्र की बहाली की गई थी, तब सेना ने संविधान में ये प्रावधान किया था कि जो भी पार्टी सत्ता में आएगी उसे 30 प्रतिशत भागेदारी सेना को देनी होगी.


म्यांमार में मिलिट्री-रूल का एक लंबा इतिहास रहा है. इंग्लैंड से 1948 में आजादी के बाद 1962 में पहली बार सेना ने सरकार का तख्तापलट किया था. उसके बाद से 2011 तक सेना ने ही भारत के इस पड़ोसी देश पर राज किया है. लेकिन दस साल लोकतंत्र रहने के बाद एक बार से वहां सेना सत्ता पर काबिज हो गई है.


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