Afghan Crisis: तालिबान के खिलाफ IS ने खोला मोर्चा, इंटरनेट को बनाया विरोध का जरिया
Afghan Crisis: अफगानिस्तान में तालिबान ने राष्ट्रपति अशरफ गनी की सत्ता को उखाड़ फेंका है. लेकिन, उसके विरोध में इस्लामिक स्टेट ने मोर्चा खोल दिया है. आईएस ने तालिबान को 'अमेरिका का पिट्ठू' बताया है.
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राष्ट्रपति अशरफ गनी को सत्ता से बेदखल कर अफगानिस्तान पर कब्जा जमानेवाले तालिबान की राह आसान नहीं लग रही है. उनके खिलाफ इस्लामिक स्टेट ने मोर्चा खोल दिया गया है. आईएस समर्थित मीडिया समूह ने इंटरनेट को दुष्प्रचार का माध्यम बनाया है. 19 अगस्त को आधिकारिक जारी बयान में इस्लामिक स्टेट ने तालिबान को 'अमेरिका का पिट्ठू' कहा. उसने अफगानिस्तान में हुई घटना पर तालिबान की नहीं बल्कि अमेरिका को विजयी करार दिया.
क्या अफगानिस्तान में तालिबान की रास्ता है आसान?
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान के खिलाफ मुखर आईएस 16 अगस्त से अब तक ज्यादातर पोस्टर के रूप में 22 लेख प्रकाशित कर चुका है. अल-बत्तर और तलाए अल-अंसार, अल-मुरहफत, अल-तकवा, हदम-अल असवार, अल-अदियत और अल-असवीर्ती जैसे पुराने यूजर्स ने अब तक सबसे ज्यादा पोस्टर जारी किए हैं. पोस्टरों में आईएस ने शरिया को लागू करनेवाली तस्वीर लगाई है जबकि तालिबान की तस्वीर में दोहा की बैठक और शिया पर्व में उनकी मौजूदगी दिखाई गई है.
इस्लामिक स्टेट ने खोला मोर्चा, बताया 'अमेरिकी पिट्ठू'
अफगानिस्तान में हजारा शिया जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों को इस्लामिक स्टेट विधर्मी कहता है. कुछ पोस्टरों ने तालिबान की दोहा में हुई बैठकों या शिया त्योहारों में उनकी मौजूदगी की तस्वीरें भी लगाई गई हैं. इनकी तुलना में आईएस की शरिया को लागू करने वाली तस्वीरें लगाई गई हैं. कई पोस्टरों से ऐसा संदेश मिलता है कि तालिबान कभी भी अफगानिस्तान में शरिया कानून पूरी तरह लागू नहीं करनेवाला है. दुष्प्रचार के पोस्टरों से हटकर एक वीडियो में अंग्रेजी बोलनेवाला शख्स तालिबान की अमेरिका के साथ सांठ गांठ साबित करता हुआ नजर आ रहा है.
अपने दावे के समर्थन में उसने सीआईए के इस्लामाबाद स्टेशन के पूर्व प्रमुख रॉबर्ट एल ग्रेनियर की किताब '88 डेज टू कंधार' की मदद ली है. आईएस का कहना है कि 20 साल पहले मुल्ला उमर के समय का तालिबान अब नहीं रहा. उसने बदलाव को अपनाया है और इलाके में जिहाद को कमजोर करने के लिए अमेरिकी योजना पर गुप्त रूप से काम कर रहा है.
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