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जब तालिबान ने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति नजीबुल्लाह को बेरहमी से मारकर बिजली के खंभे से लटका दिया था

मदद की आस में कंपाउंड में छिपे नजीबुल्लाह कभी वहां से बाहर नहीं निकल पाए. इसके बाद तालिबान जब काबुल में दाखिल हुआ तो उन्होंने नजीबुल्लाह को अपने साथ चलने को कहा, लेकिन वह नहीं गए. 

तालिबान के लड़ाकों ने इस समय लगभग पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है. अफगान के हालात का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्तमान राष्ट्रपति अशरफ गनी और उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह देश छोड़कर भाग गए हैं. भारत, अमेरिका और कनाडा समेत कई देश अपने नागरिकों को एयर लिफ्ट कर रहे हैं. अफगानिस्तान के ऐसे हालात पहली बार नहीं हुए है, साल 1996 का मंजर भी कुछ ऐसा ही था.

28 सितंबर साल 1996 में जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा जमाया था तो राष्ट्रपति नजीबुल्लाह को मारकर बिजली के खंभे से लटका दिया गया था.

दरअसल पार्टी पीपल्स डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ अफगानिस्तान एक कम्युनिस्ट विचारधारा वाली पार्टी थी. नजीबुल्लाह इस पार्टी में शामिल थे. इस पार्टी के सत्ता में आने के बाद बड़े पैमाने पर सोशल इंजीनियरिंग हुई, औरतों को उनके हक दिए गए और धर्मनिरपेक्षता की बातें की गईं. लेकिन इस सरकार के राज में लोगों के साथ बर्बरता भी हुई. जिससे अफगानिस्तान के लोग नाराज़ थे. बाद में सरकार के खिलाड़ लड़ रहे मुजाहिदीनों को स्थानीय लोग मदद करने लगे.

1991 से लेकर 1996 तक कंपाउंड में रहे नजीबुल्लाह

साल 1987 में सोवियत संघ ने ही नजीबुल्लाह को अफगानिस्तान का राष्ट्रपति बनवाया था. इसके बाद नजीबुल्लाह ने फिर से अफगानिस्तान का संविधान लिखवाया और अफगानिस्तान का नाम बदलकर रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान करवा दिया. दिसंबर 1991 में सोवियत संघ टूटा तो नजीबुल्लाह को मिलने वाली सारी मदद बंद हो गई. हालात ऐसे हो गए कि नजीबुल्लाह को काबुल भी नहीं छोड़ने दिया गया. अपनी जान बचाने के लिए वह एक कंपाउंड में छिप गए और वह 1996 तक कंपाउंड में ही रहे.

इसी दौरान अफगानिस्तान में तालिबान खड़ा हुआ. तालिबान को उस वक्त पाकिस्तान और अमेरिका से मदद मिलती थी. तालिबान के लड़ाकों से हर कोई खौफ खाता था. वह धीरे धीरे अफगानिस्तान के हर शहर पर कब्जा करता चला गया. मदद की आस में कंपाउंड में छिपे नजीबुल्लाह कभी वहां से बाहर नहीं निकल पाए. इसके बाद तालिबान जब काबुल में दाखिल हुआ तो उन्होंने नजीबुल्लाह को अपने साथ चलने को कहा, लेकिन वह नहीं गए. 

पहले मारा, फिर घसीटा और फिर खंबे पर टांग दिए गए नजीबुल्लाह

द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, नजीबुल्लाह ने शॉर्टवेव रेडियो पर यूएन की पोस्ट से संपर्क करके अपने लिए सुरक्षा मांगी. लेकिन उनकी मदद नहीं की जा सकी. इसके बाद तालिबान ने उन्हें मार दिया और काबुल के आरियाना चौक में एक खंबे से टांग दिया. इतना ही नहीं टांगे जाने से पहले उन्हें एक ट्रक के पीछे बांधकर सड़कों पर घसीटा गया. रिपोर्टस के मुताबिक तालिबान ने उनके सिर में गोली मारी थी. बड़ी बात यह है कि इसे खंबे पर उनके भाई शाहपुर अहमदज़ाई की लाश भी लटक रही थी.

नजीबुल्लाह के बारे में जानिए

नजीबुल्लाह साल 1947 में पैदा हुए थे. उनकी शुरूआती पढ़ाई काबुल में हुई इसके बाद वह जम्मू-कश्मीर के बारामुला गए. हालांकि बाद में काबुल से ही उन्होंने डॉक्टर की पढ़ाई की. नजीबुल्लाह महज 18 साल की उम्र में ही कम्युनिस्ट विचारधारा वाली पार्टी पीपल्स डेमोक्रैटिक पार्टी ऑफ अफगानिस्तान से जुड़ गए थे.

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