नई दिल्ली: जीत खुशियां देती है लेकिन आतंक की मार इंसानियत को हरा देती है. आज से अफगानिस्तान में आतंकी राज का आगाज हो गया है. आज के बाद अफगानिस्तान और यहां के लोगों का जीवन बदल जाएगा.  तालिबान ने सत्ता पर कब्जा करते ही अपना वही पुराना चेहरा दिखाना शुरू कर दिया है. 


काबुल में फायरिंग की तस्वीरें गवाह हैं कि तालिबान ना बदला है और ना बदलेगा. आज से 25 साल पहले 1996 में तालिबान ने पहली बार अफगानिस्तान पर कब्जा किया था. इस दौरान तालिबान ने पूरे देश में इस्लामी कानून शरिया को लागू कर दिया. इसमें  महिलाओं के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी और महिलाओं को पश्चिमी कपड़े पहनने की इजाजत नहीं देने जैसे कानून हैं.


इसके साथ ही सजा के तौर पर पत्थर से मारने और सार्वजनिक तौर पर फांसी की सजा दी जाती थी. एक बार फिर अफगानिस्तान के लोग उसी जगह आ खड़े हुए. जहां से उन्होंने बीस साल पहले तालिबान मुक्त जीवन की शुरुआत की थी. 


तालिबान के बिना 20 साल में हुई खूब तरक्की
साल 2001 में तालिबान के खात्मे के बाद अफगानिस्तान ने खूब तरक्की की. जीडीपी 2001 में 2.5 बिलियन डॉलर थी जो 2020 में बढ़कर 19.8 बिलियन डॉलर हो गई. महिला साक्षरता दर साल 2000 में 28 प्रतिशत थी जो साल 2018 में बढ़कर 43 प्रतिशत हो गई. साल 2002 में 0.01 प्रतिशत लोगों के पास इंटरनेट का सुविधा थी जो साल 2018 में बढ़कर 13.5 प्रतिशत हो गई.


अफगानिस्तान की तरक्की अब मुसीबत ना बन जाए, इसी बात का डर हर आम अफगानी के ज़ेहन में है. अफगानिस्तान की जनसंख्या करीब 4 करोड़ है. इसमें ज्यादातर युवा आबादी है, जिन्होंने कभी तालिबान का राज देखा ही नहीं.


इन लोगों ने तालिबान का बर्बर शासन नहीं देखा और इन्होंने पश्चिमी, टर्किश फैशन के कपड़े पहने. इसके साथ ही इस आबादी ने स्कूलों में को-एजुकेशन में पढाई की. महिलाओं के पास अपनी मर्जी से घरों से बाहर निकलने की आजादी थी. महिलाएं चुनावों में भी हिस्सा लेती थी और बुर्के का इस्तेमाल भी जरूरी नहीं था.


तालिबान की वापसी के बाद महिलाओं की क्या होगी यह किसी से छिपा नहीं है. तालिबान बड़े बड़े वादे कर रहा है लेकिन सबको पता है कि सच्चाई इससे बिल्कुल उलट है. तालिबान के आने के बाद अफगानिस्तान का यंगिस्तान आजादी के साथ जिंदगी नहीं जी पाएगा. हर वक्त तालिबानियों के खुंखार आतंकियों का डर इनको सताएगा.


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