नए राष्ट्रपति का शपथग्रहण कई पुरानी परम्पराओं के टूटने और नए अपवादों के लिखे जाने का भी बनेगा गवाह
यह एक परम्परा रही है कि निवर्तमान राष्ट्रपति नए राष्ट्रपति के शपथ समारोह में शरीक होते हैं. निवर्तमान ही नहीं बल्कि लगभग सभी जीवित पूर्व राष्ट्रपति शपथ समारोह में बतौर खास मेहमान शामिल होते आए हैं. लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं होगा.
वॉशिंगटन: दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका में नए राष्ट्रपति जो बाइडेन का शपथग्रहण इस बार कई पुरानी परम्पराओं के टूटने और नए अपवादों के लिखे जाने का भी गवाह बनेगा. 20 जनवरी यानी कल जो बाइडेन अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेंगे. उनके साथ कमला हैरिस भी उपराष्ट्रपति के तौर शपथ लेंगी.
नए राष्ट्रपति के शपथ समारोह में नहीं शरीक होंगे निवर्तमान राष्ट्रपति यह एक परम्परा रही है कि निवर्तमान राष्ट्रपति नए राष्ट्रपति के शपथ समारोह में शरीक होते हैं. निवर्तमान ही नहीं बल्कि लगभग सभी जीवित पूर्व राष्ट्रपति शपथ समारोह में बतौर खास मेहमान शामिल होते आए हैं. इतना ही नहीं बल्कि पद छोड़ने जा रहे और भावी राष्ट्रपति एक साथ कैपिटल हिल पर होने वाले शपथ समरोह में शरीक होने के लिए एक ही कार में साथ पहुंचते हैं. मौजूदा और भावी प्रथम महिलाएं भी एक साथ एक ही वाहन में आती हैं. इससे निवर्तमान राष्ट्रपति अपनी पत्नी के साथ नए राष्ट्रपति और उनकी पत्नी का व्हाइट हाउस में स्वागत करते हैं.
लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं होगा. क्योंकि निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कार्यक्रम से किनारा करने का फैसला किया है. ट्रम्प शपथ समारोह से पहले ही व्हाइट हाउस को छोड़ फ्लोरिडा चले जाएंगे.
फौज की पहरेदारी में लोकतांत्रिक सत्ता हस्तातंरण किसी भी लोकतांत्रिक देश में सेना को चुनावी प्रक्रिया और सत्ता संचालन की प्रक्रिया से दूर रखा जाता है क्योंकि सत्ता के सूत्र निर्वाचित नेताओं के हाथ में होते हैं. अमेरिका भी इसका अपवाद नहीं है. मगर अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने जा रहे जो बाइडन के हाथों में सत्ता का हस्तांतरण फौजी पहरे में हो रहा है. ऐसा पहली बार होगा कि इतनी बड़ी संख्या में सड़कों पर मौजूद अमेरिकी सेना और उसके नेशनल गार्ड्स की मौजूदगी के बीच कोई अमेरिकी राष्ट्रपति कामकाज संभालेगा.
इसकी वजह 6 जनवरी को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थकों की रैली और उसके बाद कैपिटल हिल पर हुआ तांडव है. इसने अमेरिका को इतना डरा दिया है कि वॉशिंगटन शहर में इतनी अमेरिकी फौज बुला ली गई, जितना अफगानिस्तान, सीरिया और इराक में कुल मिलाकर भी नहीं.
इससे पहले के शपथ समारोह में सेना सलामी और सेरिमोनीयल औपचारिकताओं के लिए तो मौजूद रही, लेकिन सुरक्षा ड्यूटी में उसकी ऐसी तैनाती अभूतपूर्व है.
लॉकडाउन में शपथ समारोह आम तौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति का शपथ समारोह लोकतंत्र के त्यौहार की तरह मनाया जाता है. बड़ी संख्या में लोग जमा होते हैं. लेकिन इस बार कोविड महामारी और हिंसक विरोध प्रदर्शनों की आशंकाओं के चलते लोगों को आने से रोका गया है. बाइडन की टीम अपने समर्थकों को वॉशिंगटन से दूर रहने और वर्चुअल तरीके से शामिल होने पर जोर दे रही है.
निवर्तमान राष्ट्रपति के माथे पर लटकती महाभियोग की तलवार अमेरिकी संविधान में महाभियोग एक ऐसा हथियार है, जिसका इस्तेमाल किसी राष्ट्रपति को हटाने के लिए बहुत कम किया जाता है. लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प सवा सौ साल के अमेरिकी लोकतांत्रिक इतिहास में पहले राष्ट्रपति हैं, जिनके खिलाफ इसका इस्तेमाल दो बार किया गया है. साल 2019 में तो ट्रम्प सिनेट में अपनी रिपब्लिकन पार्टी के बहुमत की बदौलत बच गए. लेकिन 6 जनवरी को कैपिटल हिल पर हुए हिंसक उत्पात के बाद उनके खिलाफ लाए गए महाभियोग का खतरा है. उनके खिलाफ हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में पारित महाभियोग प्रस्ताव पर रीपब्लिकन पार्टी के ही 10 सांसदों ने वोट दिया. वहीं, सिनेट में भी अब जो बाइडन की डेमोक्रेटिक पार्टी का दबदबा है और 20 जनवरी के बाद चेयरपर्सन की कुर्सी पर नई उपराष्ट्रपति कमला हैरिस होंगी.
ऐसे में अगर महाभियोग पारित होता है तो ट्रम्प के 2024 में एक बार फिर चुनावी मैदान में ताल ठोंकने का सपना चकनाचूर भी हो सकता है.
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