वॉशिंगटन: अमेरिका अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से औपचारिक रूप से अलग हो गया है. ट्रंप प्रशासन ने डब्ल्यूएचओ से देश के सभी संबंध खत्म करने की आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र को जानकारी दे दी है. ये डब्ल्यूएचओ के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. अमेरिका के इस कदम के बाद डब्ल्यूएचओ को सालाना 45 करोड़ डॉलर का नुकसान होगा. दुनिया में अमेरिका ही WHO को हर साल सबसे ज्यादा फंडिंग करता था, जबकि चीन का योगदान अमेरिका के योगदान के दसवें हिस्से के बराबर है. ट्रंप प्रशासन के संबंधों की समीक्षा शुरू करने के बाद अमेरिका ने अप्रैल में ही डब्ल्यूएचओ को फंड देना बंद कर दिया था.
अमेरिका साल 1948 से डब्लूएचओ का पक्षकार रहा है
संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने एक बयान में कहा, "मैं कह सकता हूं कि छह जुलाई 2020 को अमेरिका ने महासचिव को विश्च स्वास्थ्य संगठन से हटने की आधिकारिक जानकारी दी जो छह जुलाई 2021 से प्रभावी होगा." दुजारिक ने कहा कि महासचिव डब्ल्यूएचओ के साथ इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि संगठन से हटने की सभी प्रक्रियाएं पूरी की गईं की नहीं. अमेरिका 21 जून 1948 से डब्ल्यूएचओ संविधान का पक्षकार है.
अमेरिका और WHO का विवाद
WHO संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य से जुड़ी सबसे बड़ी संस्था है. कोरोना संकट काल के शुरुआत से ही अमेरिका और डब्ल्यूएचओ के बीच विवाद रहा है. अमेरिका डब्ल्यूएचओ पर लगातार कोविड-19 को लेकर चीन का पक्ष लेने का आरोप लगाता रहा है. ट्रंप और उनका प्रशासन ये कहकर आलोचना करते रहे कि WHO कोरोना के शुरुआती लक्षण पहचानने में नाकाम रहा, जिसकी वजह से कोरोना वायरस नाम की बीमारी पूरी दुनिया में फैल गई. इसके बाद मई में जब अमेरिका में कोरोना का प्रकोप चरम पर था तब राष्ट्रपति ट्रंप ने घोषणा कर दी थी कि उनका देश डब्ल्यूएचओ से रिश्ते खत्म कर रहा है.
इससे पहले ट्रंप ने अप्रैल में ही डब्ल्यूएचओ की फंडिग पर रोक दी थी. अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ को कई बार पत्र लिखकर संगठनात्मक सुधार लाने की बात कही, लेकिन संगठन पर कोई असर नहीं हुआ. आज अमेरिका कोरोना से प्रभावित दुनिया का सबसे बड़ा देश है. यहां 30 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं और 1.33 लाख से ज्यादा की मौत हो चुकी है.
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