(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
युद्धविराम के लिए राजी आर्मेनिया और अजरबैजान 5 मिनट में पलटे, एक दूसरे पर लगाया सीजफायर तोड़ने का आरोप
नागोर्नो-काराबाख़ 4,400 वर्ग किलोमीटर यानी 1,700 वर्ग मील का पहाड़ी इलाका है. पारंपरिक तौर पर यहां ईसाई आर्मीनियाई और तुर्क मुसलमान रहते हैं.
पूर्व सोवियत संघ से अलग होकर बने दो देशों अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच सिर्फ 5 मिनट की शांति के बाद फिर से युद्ध भड़क चुका है. रूस की मध्यस्थता में कल अजरबैजान और आर्मेनिया युद्धविराम के लिए राजी हुए थे. तोपें इस शर्त पर खामोश हुई थीं कि दोनों देश एक दूसरे को युद्ध में मारे गए सैनिकों को वापस ले जाने का मौका देंगे. लेकिन इस संघर्षविराम के कुछ ही मिनटों के बाद ही नागोर्नो-काराबाख के विवादित इलाका धमाकों से दहल उठा. दोनों देशों ने एक दूसरे पर युद्धविराम तोड़ने का आरोप लगाते हुए हमले शुरू कर दिए.
अजरबैजान के रक्षा मंत्रालय ने दावा किया कि तेर्तेर और अगदाम के इलाकों में दुश्मन की ओर से गोलीबारी हुई है. हालांकि आर्मीनिया की तरफ़ से भी अज़रबैजान पर यही आरोप लगाया गया है. दूसरी तरफ, आर्मेनिया के रक्षा मंत्रालय ने दावा किया कि संघर्ष विराम के लागू होने के बाद काराखामबेयली के इलाके में अज़रबैजान के सैनिकों ने हमला किया है.
अबतक 15 हजार सैनिक और नागरिकों गंवाई जान नागोर्नो-काराबाख पर कब्जे को लेकर पिछले 14 दिन से जारी इस युद्ध में अजरबैजान और आर्मेनिया दोनों को जानमाल का भारी नुकसान हुआ है. अजरबैजान के किलर ड्रोन्स एक तरफ जहां चुन-चुन कर आर्मिनिया के टैंक, बख्तबंद गाड़ियों और मिलिट्री बेस को निशाना बना रहे हैं तो वहीं आर्मिनिया की सेना अजरबैजान के रिहायशी इलाकों पर मिसाइलें दाग रही है. ओपन सोर्स के मुताबिक इस युद्ध में अबतक 15 हजार सैनिक और इतने ही नागरिकों को जान गंवानी पड़ी है.
नागोर्नो-काराबाख को समझ लीजिए नागोर्नो-काराबाख़ 4,400 वर्ग किलोमीटर यानी 1,700 वर्ग मील का पहाड़ी इलाका है. पारंपरिक तौर पर यहां ईसाई आर्मीनियाई और तुर्क मुसलमान रहते हैं. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस इलाके को अजरबैजान के हिस्से के रूप में मान्यता दी जाती है, लेकिन 1990 के दशक में हुए युद्ध के बाद इसपर आर्मेनिया का कब्जा है.
थर्ड वर्ल्ड वॉर का काउंटडाउन! अज़रबैजान और आर्मेनिया के बीच जारी युद्ध को थर्ड वर्ल्ड वॉर का काउंटडाउन इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इस युद्ध में तुर्की, पाकिस्तान और दूसरे कई इस्लामिक देश अजरबैजान की खुलकर मदद कर रहे हैं तो वहीं रूस, फ्रांस और अमेरिका जैसे ताकतवर मुल्क आर्मीनिया के पीछे खड़े हैं. और अगर ये देश भी एक दूसरे से उलझे तो समझिए महाविनाश तय है.
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