Australian Navy: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन और रूस से मिल रही चुनौतियों के जवाब में ऑस्ट्रेलिया अपनी नौसैनिक ताकत बढ़ा रहा है. इसके पीछ की वजह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते तनाव को बताया गया है. ऑस्ट्रेलिया अपने सुरक्षा तंत्र को मजबूत करके चीन और रूस से होने वाले खतरों को रोकना चाहता है. इस परियोजनाओं के लिए ऑस्ट्रेलिया कई युद्धक जहाज खरीदने की तैयारी में है. 


इन लड़ाकू जहाजों को खरीदेगा ऑस्ट्रेलिया
एक रिपोर्ट के मुताबिक यह योजना ऑस्ट्रेलिया के रक्षा खर्च को सकल घरेलू उत्पाद 2.4% तक बढ़ाएगी, जो नाटो सहयोगियों द्वारा निर्धारित 2% लक्ष्य से अधिक है. ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने अपने प्रमुख लड़ाकू जहाजों के बेड़े को 11 से बढ़ाकर 26 करने की घोषणा की है. यह योजना 10 सालों में पूरी होगी, लेकिन इसका परिणाम दूरगामी होगी. इस योजना के तहत छह हंटर क्लास फ्रिगेट, 11 सामान्य प्रयोजन फ्रिगेट, तीन वायु युद्ध विध्वंसक और छह 'वैकल्पिक रूप से चालक दल' सतह जहाज शामिल हैं जो मानव रहित होंगे.


कुछ जहाज टॉमहॉक मिसाइलों से लैस होंगे जो दुश्मन के इलाके में काफी अंदर तक लक्ष्य पर हमला करने में सक्षम होंगे. इससे ऑस्ट्रेलिया की दूर तक मार करने की क्षमता बढ़ेगी. रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्ल्स ने कहा कि यह योजना ऑस्ट्रेलिया को विश्व में बड़ी शक्ति बनाएगी. 2030 के दशक के बीच में ऑस्ट्रेलिया को इससे बल मिलेगा. रक्षा मंत्री ने कहा कि इस योजना से ऑस्ट्रेलिया का रक्षा बजट तो बढ़ जाएगा, लेकिन यह देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.


ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस से समझौता किया रद्द
इस घोषणा के पहले ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस के साथ अपने 90 अरब डॉलर के समझौते को रद्द कर दिया है. इस समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया को 12 परंपरागत पनडुब्बियां मिलने वाली थी. ऑस्ट्रेलिया ने अब नया समझौता अमेरिका और ब्रिटेन के साथ किया है. इस समझौते के तहत अमेरिका से कम से कम तीन परमाणु-संचालित पनडुब्बियां मिलेंगी, जिसे AUKUS के नाम से जाना जाता है. इस समझौते के बाद फ्रांस ऑस्ट्रेलिया से नाराज हो गया और कहा कि "यह पीठ में छूरा घोंपने" जैसा है. वहीं चीन को कोसते हुए फ्रांस ने कहा कि चीन की वजह से कई देशों में अस्थिरता पैदा हो गई है.


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