पड़ोसी देश पाकिस्तान के बलूचिस्तान में फिर से आतंकी हमला हुआ है. दो अलग-अलग हुए हमलों में अब तक 32 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली है बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने, लेकिन सवाल है कि आखिर बलूचिस्तान में ऐसा क्या है कि वहीं पर सबसे ज्यादा आतंकी हमले होते हैं. आखिर जो पाकिस्तान खुद ही आतंकियों को पनाह देता है, जिसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई को ही दुनिया के कई देश आतंकी मानते हैं, उसी देश में उसी के खिलाफ कौन सा ऐसा संगठन है जो आतंकी हमले करता है. ऐसे हमलों के बाद क्यों पाकिस्तान हमेशा भारत को ही शक की निगाह से देखता है.



क्षेत्रफल यानी कि जमीन के लिहाज से देखें तो बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है. इसकी सीमाएं ईरान, अफगानिस्तान और अरब सागर से भी लगती हैं. अरब सागर से बलूचिस्तान की जो सीमा लगती है, वही बलूचिस्तान में आतंकी हमले की सबसे बड़ी वजहों में से एक है. इसको समझने की कोशिश करेंगे, लेकिन उससे पहले समझिए कि बलूचिस्तान में आखिर ऐसे कौन से लोग हैं जो पाकिस्तान के इतने खिलाफ हैं कि आतंकी हमलों से भी बाज नहीं आते हैं. इसको समझने के लिए बलूचिस्तान को समझना होगा.


कैसे बना बलूचिस्तान?
तो बलूचिस्तान बना है चार अलग-अलग प्रिंसली स्टेट को मिलाकर. यानी कि कलात, मकरान, लास बेला और खारन. इन चार छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर एक बड़ा प्रांत बना है बलूचिस्तान. जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो जिस तरह से भारत में कई रियासतें थीं, उसी तरह पाकिस्तान में भी कई रियासतें थीं. वो रिसायतें भी पाकिस्तान में न जाकर अलग ही रहना चाहती थीं, लेकिन जिस तरह से भारत में सरदार पटेल की पहल पर सारी रियासतों का विलय हुआ, वैसे ही पाकिस्तान ने भी रियासतों का विलय करवाया.


बलूचिस्तान की भी तीन रियासतें यानी कि मकरान, लास बेला और खारन तो तुरंत ही पाकिस्तान के साथ विलय के लिए तैयार हो गईं, लेकिन कलात रियासत के मुखिया अहमद यार खान विलय के लिए तैयार नहीं हुए. वो पाकिस्तान के कायदे-आजम मोहम्मद अली जिन्ना को अपना पिता कहते थे, लेकिन ये भी चाहते थे कि कलात एक अलग ही देश बने, वो पाकिस्तान के साथ न जाए. पाकिस्तान का दबाव था तो लंबी बातचीत के बाद 27 मार्च 1948 को अहमद यार खान ने पाकिस्तान के साथ विलय की शर्तों को मान लिया., लेकिन अहमद यार खान के भाई प्रिंस अब्दुल करीम और प्रिंस मोहम्मद रहीम ने बगावत कर दी.

दोनों बागी भाइयों ने मिलकर करीब एक हजार लड़ाकों की सेना बनाई और नाम दिया दोश्त-ए-झालावान. इन दोनों भाइयों की सेना ने पाकिस्तानी सेना पर हमले शुरू कर दिए. पाकिस्तानी सेना ने जवाबी हमला किया और दोनों भाई भागकर अफगानिस्तान चले गए, लेकिन अफगानिस्तान ने भी उनकी मदद नहीं की. तो उन्हें कलात लौटना पड़ा. यहां आते ही पाकिस्तानी सेना ने दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. ये पहला मौका था जब बलूचिस्तान में विद्रोह हुआ और उसे पाकिस्तानी सेना ने कुचल दिया.

बलोच लोगों के मन में आजादी का खयाल पनपते रहा. कभी नवाब नौरोज खान ने विद्रोहियों का नेतृत्व किया तो कभी शेर मोहम्मद बिजरानी मारी ने गोरिल्ला वॉर तकनीक का इस्तेमाल करके बलोच लोगों को भड़काने का काम किया, लेकिन विद्रोहियों को कभी सफलता नहीं मिली. आखिरकार 1970 में पाकिस्तानी राष्ट्रपति याहिया खान ने बलूचिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान का चौथा प्रांत घोषित कर दिया. इसकी वजह से बलूचिस्तचान के लोग और भी भड़क गए. रही-सही कसर जुल्फिकार अली भुट्टो ने पूरी कर दी और उन्होंने 1973 में बलूचिस्तान की सरकार को भंग करके वहां मॉर्शल लॉ लगा दिया.


52 साल में बलूचिस्तान कभी शांति नहीं रही
इस बात को बीते 52 साल हो गए हैं और इन 52 साल में बलूचिस्तान में कभी भी शांति नहीं आ पाई है क्योंकि इन 52 साल में अलग-अलग ग्रुप्स बलूचिस्तान की आजादी की मांग करते रहते हैं. हथियार उठाते रहते हैं, पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तानी लोगों पर हमले करते रहते हैं और पाकिस्तान इन हमलावरों को आतंकी मानता है. अब भी ईरान वाले बलूचिस्तान, अफगानिस्तान वाले बलूचिस्तान और पाकिस्तान वाले बलूचिस्तान को मिलाकर कम से कम 20 ऐसे ग्रुप्स हैं, जो इन देशों की सरकारों के लिए आतंकी हैं.


उदाहरण के लिए अभी पाकिस्तान में जो आतंकी हमला हुआ है, उसकी जिम्मेदारी ली है बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) ने, जो फिलहाल पाकिस्तान में सबसे बड़ा बलोच आतंकी ग्रुप है. इसके अलावा, बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट बीएलएफ, लश्कर-ए-बलूचिस्तान, बलूचिस्तान लिबरेशन, यूनाइटेड फ्रंट, बलोच स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन, बलोच नेशनलिस्ट आर्मी, बलोच रिपब्लिकन आर्मी और यूनाइटेड बलोच आर्मी जैसे संगठन हैं, जो बलूचिस्तान की आजादी के लिए लड़ते रहते हैं.


बलूचिस्तान में धर्म के आधार पर भी ग्रुप
बलूचिस्तान में धर्म के आधार पर भी अलग-अलग गुट बने हुए हैं, जिनमें शिया और सुन्नी हैं. जैसे अंसार-उल-फुरकान सुन्नी बलोच मिलिटेंट ग्रुप है और ईरान के लिए आतंकी संगठन है. इसके अलावा जैश-उल-अदल, हरकत-अंसार, हिजबुल-फुराकान, इस्लामिक स्टेट, आईएसआईएस-खोरासान, तहरीक-ए-तालिबान, लश्कर-ए-झांगवी और सिपाह-ए-शहाबा जैसे ग्रुप्स भी बलूचिस्तान में आतंकी हमलों के लिए कुख्यात हैं.


पाकिस्तान के साथ चीन भी बलूचिस्तान के लिए खतरा?
रही बात अब अरब सागर की बलूचिस्तान से लगती सीमा और इसके बलूचिस्तान में आतंकी हमलों के वजह होने की, तो इसकी कहानी का सिरा जुड़ता है चीन से, जो पाकिस्तान के साथ मिलकर चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर यानी कि सीपीईसी बना रहा है. ये सीपीईसी गुजरता है बलूचिस्तान से होकर, जिसके पास ग्वादर पोर्ट है और इसी ग्वादर पोर्ट तक पहुंच के लिए ही चीन इतनी बड़ी परियोजना पर काम कर रहा है. ऐसे में बलूचिस्तान के जो लोग पहले से ही पाकिस्तान से आजादी चाहते हैं, अब उनके ऊपर चीन एक और खतरे के तौर पर दिखाई देता है. लिहाजा जब भी मौका मिलता है, बलूचिस्तान के संगठन कभी चीन पर तो कभी पाकिस्तान पर हमला करते ही रहते हैं ताकि सीपीईसी कभी पूरा हो ही न पाए.


बलूचिस्तान में हमलों के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराना गलत
तो अब शायद आपको बलूचिस्तान में बार-बार हो रहे आतंकी हमलों के पीछे की वजह समझ में आ ही गई होगी कि ये बलोच लोगों की आजादी का मुद्दा है. इसके लिए वो पाकिस्तान के बनने के साथ ही लड़ रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान को जब भी अपनी नाक बचानी होती है, वो इन आतंकी हमलों के लिए भारत को ही जिम्मेदार ठहरा देता है, जबकि हकीकत ये है कि भारत को तो बलूचिस्तान में कुछ करने की कभी जरूरत ही नहीं पड़ी है. वहां के जो संगठन हैं और जिनका नाम ऊपर आपको बताया गया था, वो ही काफी हैं पाकिस्तान की तबाही के लिए. तो पाकिस्तान की तबाही हो रही है. पाकिस्तान के आतंकी पाकिस्तान के लोगों को ही निशाना बना रहे हैं और इन आतंकियों को पनाह देने वाला पाकिस्तान कुछ भी नहीं कर पा रहा है.


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