(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Bangladesh Crisis: जब नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस को 'गरीबों के बैंकर' से शेख हसीना ने बना दिया 'गरीबों का खून चूसने वाला'
Bangladesh Crisis: बांग्लादेश के लाखों लोगों को गरीबी से निकालने वाले यूनुस ने साल 1983 में ग्रामीण बैंक की स्थापना की थी. जिसके लिए 2006 में यूनुस और उनके बैंक को नोबेल शांति पुरस्कार दिया था.
Bangladesh Crisis News: बांग्लादेश में अराजकता का माहौल बना हुआ है. प्रधानमंत्री शेख हसीना ने सोमवार (5 अगस्त) को अपने पद से से इस्तीफा दे दिया है और भारत के गाजियाबाद स्थित हिंडन एयरबेस पर सेफ हाउस में हैं. इसी बीच छात्र आंदोलन के प्रमुख आयोजको ने बांग्लादेश के नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का मुख्य सलाहकार बनाने का प्रस्ताव दिया गया है.
इस दौरान शेख हसीना के आलोचक रहे और "गरीबों के बैंकर" के रूप में मशहूर डॉ. यूनुस ने साल 1983 में ग्रामीण बैंक की स्थापना की थी. उनके द्वारा स्थापित ग्रामीण बैंक को 2006 का नोबेल शांति पुरस्कार मिला था, क्योंकि उन्होंने ग्रामीण गरीबों को 100 डॉलर से कम राशि के छोटे-छोटे लोन उपलब्ध कराकर लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद की थी. ये गरीब लोग इतने गरीब थे कि उन्हें पारंपरिक बैंकों से भी कोई मदद नहीं मिल पाती थी. वहीं, बांग्लादेश की तर्ज पर इस तरह के बैंक दुनियाभर में खोले गए.
पार्टी बनाने पर शेख हसीना ने जताई थी नाराजगी
इस बीच जैसे-जैसे उनकी सफलता बढ़ती गई, 84 साल के डॉ यूनुस ने कुछ समय के लिए राजनीतिक करियर बनाने की कोशिश की और 2007 में अपनी खुद की पार्टी बनाई. मगर, पूर्व पीएम शेख हसीना ने डॉ यूनुस की महत्वाकांक्षाओं को देखते हुए नाराजगी जताई. जिसके बाद हसीना सरकार ने डॉ युनुस पर "गरीबों का खून चूसने" का आरोप लगाया.
आवामी लीग सरकार ने डॉ. यूनुस पर दर्ज किए थे 190 केस
शेख हसीना का कहना था कि डॉ यूनुस की तरफ से शुरू किए गए ग्रामीण बैंक गरीबों से अत्यधिक ब्याज वसूलते हैं. शेख हसीना की आवामी लीग सरकार ने डॉ. यूनुस पर 190 मामले दर्ज किए हैं. हाल ही में यूनुस पर भ्रष्टाचार का एक केस चलाया गया. यूनुस के समर्थकों का मानना है कि ये केस राजनीति से प्रेरित है.
हसीना सरकार ने डॉ यूनुस को 2011 में हटाया था पद से
इस पर सफाई देते हुए डॉ यूनुस ने कहा कि ये दरें विकासशील देशों में स्थानीय ब्याज दरों या 300% या उससे भी ज्यदा की तुलना में बहुत कम हैं, जो लोन शायद कभी-कभी मांगते हैं. इसको देखते हुए साल 2011 में, सुश्री हसीना की सरकार ने उन्हें ग्रामीण बैंक के प्रमुख के पद से हटा दिया. यह कहते हुए कि 73 साल की उम्र में, वे 60 साल की कानूनी सेवानिवृत्ति की आयु के बाद भी पद पर बने हुए थे.
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