Bangladesh Crisis: मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने शेख हसीना के खिलाफ उठाया ये कदम, क्या होगी घर वापसी?
Sheikh Hasina Passport: एक अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पास उनके नाम से जारी राजनयिक पासपोर्ट के अलावा कोई अन्य पासपोर्ट नहीं है.
India-Bangladesh Relations: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपनी सरकार के खिलाफ छात्रों के नेतृत्व में हुए विद्रोह के बाद पद से हटने पड़ा. इसके बाद से ही वो देश छोड़कर लगभग तीन सप्ताह से भारत में हैं. ऐसे में उनके अगले कदम के बारे में अटकलें लगाई जा रही हैं, लेकिन बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के हसीना का राजनयिक पासपोर्ट रद्द करने से उनके भारत में रहने की संभावना कम हो गई है.
हिदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के गृह मंत्रालय के सुरक्षा सेवा प्रभाग ने घोषणा की कि शेख हसीना, उनके सलाहकारों, पूर्व कैबिनेट सदस्यों और हाल ही में भंग की गई 12वीं जातीय संसद के सभी सदस्यों और उनके जीवनसाथियों का राजनयिक पासपोर्ट तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया जाएगा. इन पासपोर्टों को रद्द करने का प्रावधान उन राजनयिक अधिकारियों पर भी लागू होगा जिनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है और कम से कम दो जांच एजेंसियों की मंजूरी के बाद ही साधारण पासपोर्ट जारी किए जाने की संभावना है.
क्या शेख हसीना को प्रत्यर्पण का खतरा है?
डेली स्टार अखबार ने सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया कि शेख हसीना के पास अब रद्द किए जा चुके राजनयिक पासपोर्ट के अलावा कोई अन्य पासपोर्ट नहीं है. भारतीय वीजा नीति के तहत, राजनयिक या आधिकारिक पासपोर्ट रखने वाले बांग्लादेशी नागरिक वीजा-मुक्त प्रवेश के लिए पात्र हैं और देश में 45 दिनों तक रह सकते हैं. शनिवार तक, हसीना ने भारत में 20 दिन बिता लिए हैं और उनके कानूनी प्रवास की समयसीमा समाप्त होने वाली है.
शेख हसीना के राजनयिक पासपोर्ट और उससे संबंधित वीजा विशेषाधिकारों को रद्द करने से उन्हें बांग्लादेश प्रत्यर्पित किये जाने का खतरा हो सकता है, जहां उसके खिलाफ 51 मामले दर्ज हैं. इनमें से 42 मामले हत्या के हैं.
क्या कहती है भारत-बांग्लादेश की प्रत्यर्पण संधि
हसीना का प्रत्यर्पण बांग्लादेश और भारत के बीच 2013 की प्रत्यर्पण संधि के कानूनी ढांचे के अंतर्गत आएगा, जिसे 2016 में संशोधित किया गया था. हालांकि संधि राजनीतिक प्रकृति के आरोपों के मामले में प्रत्यर्पण से इनकार करने की अनुमति देती है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से हत्या जैसे अपराधों को राजनीतिक मानने से बाहर रखती है.
हालांकि, सरकारी समाचार एजेंसी बीएसएस की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रत्यर्पण से इनकार करने का एक आधार यह है कि लगाए गए आरोप "सद्भावना से, न्याय के हित में" नहीं लगाए गए हों.
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