Bangladesh Election: बांग्लादेश में अगले साल होने वाले आम चुनाव को लेकर चीन, अमेरिका,रूस और भारत दो खेमों बंट गए हैं. ये चौंकाने वाला है कि भारत और चीन एक ही खेमे में हैं. बांग्लादेश में चीन और अमेरिका दोनों का प्रभाव है. बांग्लादेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी सरीखे पार्टियां आने वाले चुनाव को मानने से इनकार कर रहे हैं. उनका मानना है कि अगर शेख हसीना सरकार सत्ता में रहते हुए चुनाव कराती है तो वह चुनाव में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करेगी, इसलिए चुनाव से पहले एक अंतरिम सरकार बनायी जानी चाहिए.


अमेरिका इन मांगों का समर्थन करता है. उसका कहना है कि लोकतंत्र और चुनावी प्रकिया में मजबूती लाया जाना चाहिए. अमेरिकी सरकार ने इसी साल मई में स्पेशल वीजा पॉलिसी का एलान किया था. तब अमेरिका ने कहा था कि उसकी नीयत वैसे बांग्लादेशी शख्सियतों को वीजा देने से रोकना है जो बांग्लादेश में चुनावी प्रकिया को कमजोर करना चाहते हैं और लोकतंत्र को खत्म करना चाहते हैं, लेकिन इसके बावजूद अमेरिका वैश्विक शक्तियों के गुट में अलग-थलग पड़ गया. वहीं रूस, चीन और भारत इस बार पर जोर देते रहे हैं कि बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में दखल देना किसी विदेशी सरकार का कर्तव्य नहीं है. 


क्या सोचता है भारत?


भारत बांग्लादेश चुनाव को आंतरिक मामला बताता रहा है. भारत का मानना है कि किसी देश की चुनावी प्रकिया में दखल देना ठीक नहीं है. इसके अलावा भारत सत्तारूढ़ पार्टी का समर्थन करती रही है. भारत शेख हसीना सरकार पर इसलिए भी ‘भरोसा’ करती है क्योंकि उनकी सरकार पाकिस्तान के लेकर भारत के साथ रहती है. जबकि बांग्लादेश की विपक्षी पार्टियों पर आरोप है कि उनके तार पाकिस्तान से जुड़े हैं. जमात-ए-इस्लामी पर तो यहां तक आरोप है कि उसने बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई में पाकिस्तानी सरकार का साथ दिया था.


रूस का पक्ष


रूस ने इसी महीने एक बयान के जरिए बांग्लादेश को लेकर अपना रुख सामने रखा था और इसके साथ ही अमेरिका पर निशाना साधा था. रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा था कि अमेरिका बांग्लादेश के जरिए रूस और चीन पर निशाना साधना चाहता है. रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने कहा कि अमेरिका बांग्लादेश का चुनाव अपने मन मुताबिक तय करना चाहता है. 


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