Bangladesh News: बांग्लादेश में हाल ही में संविधान सुधार आयोग की तरफ से एक रिपोर्ट सौंपी गई है, जिसमें देश के तीन मूलभूत सिद्धांतों—धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और राष्ट्रवाद को हटाने की सिफारिश की गई है. इस प्रस्ताव के आने के बाद से देश और उसके पड़ोसी भारत में चिंता बढ़ गई है, क्योंकि ये सिद्धांत 1971 के मुक्ति संग्राम के मूल आदर्शों का हिस्सा थे.
शेख हसीना, जो देश की सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहीं. उन्हे छात्रों के नेतृत्व में हुए आंदोलन के बाद पद छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था. इसके बाद नए प्रशासन ने संविधान सुधार आयोग की स्थापना की. आयोग ने 5 नए राज्य सिद्धांतों—समानता, मानव सम्मान, सामाजिक न्याय, बहुलवाद और लोकतंत्र को प्रस्तावित किया है, जिसमें केवल लोकतंत्र को ही पिछले सिद्धांतों में से बरकरार रखा गया है.
दो सदन के संसद का प्रस्ताव
संविधान सुधार आयोग ने देश में दो सदन के संसद की सिफारिश की है. इसमें नेशनल असेंबली और सीनेट नामक दो सदन होंगे. आयोग ने प्रस्तावित किया कि निचले सदन में 400 और ऊपरी सदन में 105 सीटें होंगी. दोनों सदनों का कार्यकाल 5 साल से घटाकर 4 साल करने की सिफारिश की गई है.
धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को हटाने के संभावित प्रभाव
धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को हटाने के प्रस्ताव को लेकर बांग्लादेश में व्यापक बहस छिड़ गई है. ये सिद्धांत बांग्लादेश की स्वतंत्रता और सामाजिक संरचना के आधारभूत स्तंभ माने जाते हैं. इनको हटाने से देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे और सामाजिक न्याय की दिशा पर गहरा असर पड़ सकता है.
बांग्लादेश के इस कदम के पीछे की वजह
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि पिछले 16 सालों में प्रधानमंत्री कार्यालय में सत्ता का ज्यादा-से-ज्यादा सेंट्रलाइज किया गया. इसके अलावा संस्थागत शक्ति संतुलन की कमी देश में बिना कोई रोक-टोक के सत्तावाद को बढ़ावा देने वाले मुख्य कारक बने हैं. आयोग का मानना है कि इस कदम से सत्ता का डिसेंट्रलाइज होगा और नियुक्तियों में पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित होगी.
इतिहास में बदलाव का संकेत
बांग्लादेश के संविधान में अब तक 17 संशोधन हो चुके हैं. लेकिन वर्तमान प्रस्ताव, 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद बने मूलभूत सिद्धांतों को हटाने का है, जो देश की ऐतिहासिक पहचान को बदलने का संकेत देता है.
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