Bangladesh Violence : खुशी मातम में बदली, 'बेटे के लिए दुल्हन देखने गए, घर लौटे तो पता चला खानदान का इकलौता बेटा मारा गया है'
Bangladesh Violence : बांग्लादेश हिंसा में अब तक 100 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है.
Bangladesh Violence : बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर हुए हिंसक प्रदर्शन में 100 से ज्यादा लोग मारे गए. इनमें कुछ लोग तो ऐसे हैं, जिनका अंतिम संस्कार लावारिस में ही कर दिया गया. उनके परिवारवाले अब भी इसी आस में हैं कि उनका बेटा लौटकर आएगा. बांग्लादेश के रहने वाले अब्दुर रज्जाक के बेटे के साथ भी ऐसा ही हुआ था. अब्दुर रज्जाक रोते हुए बताते हैं कि मैं अपने बेटे की शादी के लिए लड़की देखने गया था, लेकिन लौटा तो पता चला कि मेरा बेटा ही इस दुनिया में नहीं रहा. रज्जाक का इकलौता बेटा आरक्षण विरोधी आंदोलन के दौरान हिंसा की भेंट चढ़ गया.
BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, 27 साल के हसीब इकबाल एक निजी संस्थान में नौकरी करते थे. वह बीते शुक्रवार ढाका के मीरपुर इलाके़ में अपने घर से जुमे की नमाज पढ़ने निकले थे. पिता रज्जाक ने कहा, मुझे भी नमाज पढ़ने बेटे के साथ जाना था, लेकिन कुछ देर होने के कारण वह अकेले मस्जिद के लिए रवाना हो गया. 68 साल के पिता ने कहा कि नमाज पढ़कर मैं तो घर लौट आया, लेकिन बेटा नहीं आया था. नमाज के बाद बेटे की शादी के लिए लड़की देखने जाना था, इसलिए मस्जिद से घर लौटने के बाद वहीं चला गया.
'शाम को पता चला कि बेटा इस दुनिया में नहीं है'
जब तीन घंटे बाद भी इकबाल नमाज पढ़कर घर नहीं लौटे तो चिंता बढ़ने लगी. शाम के समय बाहर हंगामा और हिंसा चल रही थी. डेढ़ घंटे की तलाश के बाद भी बेटा नहीं मिला. बाद में शाम को उसकी मौत की खबर आई. रज्जाक ने रोते हुए बताया कि शाम को अचानक एक युवक ने फोन पर बताया कि अंकल, हसीब के शव को स्नान करा दिया है. अब आप उसका शव ले जाएं. परिवार को इकबाल का शव कफन में लिपटा मिला था. रज्जाक बताते हैं, उसकी मौत दोपहर को ही हो गई थी. पुलिस ने शव अंजुमन मुफीदुल के पास भेज दिया था. उन्होंने ही शव को नहलाने और कफन में लपेटने का काम किया. अंजुमन मुफीदुल इस्लाम बांग्लादेश का एक धर्मार्थ संगठन है, जो लावारिस या बेघर लोगों के शवों को कफन-दफन और अंतिम संस्कार का इंतजाम करता है. अंजुमन मुफीदुल में ले जाने के बाद हमारे इलाके के कुछ युवकों ने हसीब इकबाल को पहचान लिया था. उन लोगों ने ही फोन पर इकबाल की मौत की सूचना दी थी
हिंसक प्रदर्शन से नहीं था कोई संबंध
परिवार ने कहा कि इकबाल बेहद शांत स्वभाव के थे. उनका आरक्षण विरोधी आंदोलन से कोई संबंध नहीं था. डॉक्टरों ने रिपोर्ट में मौत का कारण सांस की तकलीफ लिखा है, डॉक्टरों की राय में हिंसा के दौरान बेटे की मौत शायद पुलिस की ओर से छोड़े गए आंसू गैस के गोलों की वजह से हुई, लेकिन उसकी छाती पर काले रंग का एक निशान देखा था. हालांकि, इस बारे में कोई शिकायत नहीं की गई है. उन्होंने कहा, मेरा बेटा लौटकर नहीं आएगा, तो इन सबका कोई फायदा नहीं. वह मेरा एकमात्र बेटा और मेरे खानदान का वारिस था. मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे इस तरह खोना पड़ेगा.
'तीन सप्ताह पहले नौकरी के लिए गया बेटा, गोली मार दी'
ऐसा ही 21 साल के मारूफ हुसैन के साथ हुआ. वह कुष्टिया पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट से पढ़ाई पूरी कर 3 सप्ताह पहले नौकरी की तलाश में ढाका आए थे. बीते शुक्रवार को बाड्डा इलाके में संघर्ष में हुसैन की पीठ पर गोली लगी थी. बाद में अस्पताल में उनकी मौत हो गई. हुसैन की मां मोयना खातून ने कहा, उन लोगों ने मेरे इकलौते बेटे की गोली मारकर हत्या कर दी. मेरा मारूफ अब लौटकर नहीं आएगा. बेटे से शुक्रवार सुबह करीब 11 बजे आखिरी बार बातचीत हुई थी.
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