बांग्लादेश की ये औकात, नेता कर रहे दो-भारत की बात! ग्लोबल मीडिया से निपटने का भी हो रहा इंतजाम, समझें कैसे
India-Bangladesh Relations: आरक्षण विरोधी आंदोलन के छात्र नेताओं और कार्यवाहक सरकार के एक हिस्से ने मुख्य सलाहकार मुहम्मद युनुस से मुलाकात की.
Bangladesh Minorities Row: बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार और तीन हिंदू भिक्षुओं की गिरफ्तारी की खबरों के बीच, सरकार में शामिल छात्र नेताओं ने अपने भारत विरोधी रुख को और तेज कर दिया है. कार्यवाहक सरकार के सूचना सलाहकार नाहिद इस्लाम ने दो-भारत का हवाला दिया है और भारत में "सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग" पर विभाजनकारी राजनीति करने का आरोप लगाया है.
5 अगस्त को शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश में हालात सामान्य नहीं हैं. मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के साथ बैठक के बाद, छात्र नेताओं ने बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरवाद के बढ़ने के चित्रण का मुकाबला करने के लिए एक मीडिया सेल स्थापित करने की योजना की घोषणा की. मंगलवार को अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के साथ भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन के नेताओं की मुलाकात के बाद यह नया कथानक और प्रस्ताव सामने आया.
मुहम्मद यूनुस के सलाहकार ने भारत के खिलाफ उगला जगह
ढाका के न्यूज पेपर प्रोथोम अलो की रिपोर्ट के मुताबिक, बैठक के बाद छात्र नेताओं ने यह भी कहा कि उन्होंने अवामी लीग सरकार से भारत के साथ किए गए सभी समझौतों का खुलासा करने की मांग की है. मुहम्मद यूनुस के साथ बैठक के दौरान ही बांग्लादेश के सूचना एवं प्रसारण सलाहकार नाहिद इस्लाम ने कहा कि भारतीय सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग और हिंदुत्ववादी ताकतें "विभाजनकारी राजनीति और बांग्लादेश विरोधी बयानबाजी में संलग्न हैं."
एक ओर, उन्होंने कोलकाता और दिल्ली के "लोकतंत्र-प्रेमी" भारतीय छात्रों की ओर से दिखाई गई एकजुटता की सराहना की. उन्होंने एक्स पर लिखा, "बांग्लादेश पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और असम के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध साझा करता है; वे हमारे हितधारक हैं." दूसरी ओर, नाहिद ने भारत के सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग और हिंदुत्ववादी ताकतों की "विभाजनकारी राजनीति और बांग्लादेश विरोधी बयानबाजी को बढ़ावा देने" के लिए आलोचना की.
उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली "फासीवादी अवामी लीग को पुनर्स्थापित करने का प्रयास कर रही है" और "अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की कहानी" के जरिए बांग्लादेश की लोकतांत्रिक और राष्ट्र-पुनर्निर्माण प्रक्रिया को बाधित करने का प्रयास कर रही है.
नाहिद ने भारतीयों को दो वर्गों में बांटने की कोशिश की
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, नाहिद इस्लाम की टिप्पणी निश्चित रूप से दर्शाती है कि उन्होंने बड़ी चतुराई से भारतीयों को दो वर्गों में वर्गीकृत करने का प्रयास किया है. किसी भी वकील ने हिंदू साधु चिन्मय कृष्ण दास को जमानत दिलाने में मदद करने की हिम्मत नहीं दिखाई, क्योंकि कुछ ही घंटे पहले, वकीलों की ओर से उनके बचाव में आने वाले किसी भी शख्स को सार्वजनिक रूप से पीटने की धमकी देने वाले वीडियो पोस्ट किए थे.
नाहिद ने पहले एक्स पर पोस्ट किया था, जिसमें चटगांव कोर्ट परिसर में एक वकील की हत्या को "सांप्रदायिक आतंकवादियों" का काम बताया गया था. दास के समर्थकों की ओर से उनकी जेल वैन को रोकने की कोशिश के दौरान ही यह हत्या हुई थी.
नाहिद ने आरोप लगाया कि दास "विभिन्न सभाओं में झूठे और भड़काऊ बयानों के माध्यम से सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रहे थे." नाहिद ने चेतावनी दी, "बांग्लादेश सरकार उचित कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से विध्वंसकारी हिंदुत्व आतंकवादियों के लिए उच्चतम स्तर का न्याय सुनिश्चित करेगी."
प्रोपेगैंडा विरोधी सेल का प्रस्ताव
अल्पसंख्यकों और उनकी संपत्तियों, खास तौर पर हिंदुओं पर हमलों की खबरों और बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथ के उदय पर विश्व मीडिया की रिपोर्टिंग के बीच, छात्र नेताओं ने कहा कि उन्होंने यूनुस के साथ "गलत सूचना" से निपटने के लिए एक समर्पित मीडिया "सेल" की स्थापना पर चर्चा की.
प्रोथोम अलो की रिपोर्ट के मुताबिक, मंगलवार (03 दिसंबर, 2024) को मीडिया से बात करते हुए एक अन्य छात्र नेता हसनत अब्दुल्ला ने कहा कि उन्होंने मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के साथ अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अधिक प्रचार की जरूरत और दुष्प्रचार का मुकाबला करने के लिए एक 'सेल' के गठन पर चर्चा की थी. बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथ में वृद्धि की रिपोर्टों को खारिज करते हुए अब्दुल्ला ने यहां तक कहा कि सांप्रदायिक सद्भाव बांग्लादेश की विरासत है.
हालांकि, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के कार्यों और गलत कदमों का विश्लेषण करने वाली ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल बांग्लादेश (टीआईबी) की रिपोर्ट ने मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार को उजागर किया है, जिसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि सेना समर्थित प्रशासन के पहले 100 दिनों के दौरान "धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यक और हाशिए पर पड़े समुदाय" "हिंसा के शिकार" बन गए.
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