Bangladesh-India Relations: भारतीय उच्चायुक्त प्रणय वर्मा ने मंगलवार (03 दिसंबर, 2024) को कहा कि भारत और बांग्लादेश के बीच “व्यापक और बहुआयामी संबंध” हैं और इसे “सिर्फ एक मुद्दे तक सीमित नहीं किया जा सकता.”


द डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा, “हमारे बीच व्यापक और बहुआयामी संबंध हैं.” उन्होंने कहा कि भारत आपसी लाभ के लिए दोनों देशों के बीच “निर्भरता” का निर्माण करना चाहता है. वर्मा ने यह टिप्पणी ढाका में बांग्लादेश के कार्यवाहक विदेश सचिव रियाज हमीदुल्लाह से मुलाकात के बाद की. अगरतला में पड़ोसी देश के सहायक उच्चायोग की सुरक्षा नाकेबंदी को तोड़कर एक अनियंत्रित भीड़ के घुस जाने के एक दिन बाद बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने उन्हें तलब किया था. 


मंगलवार को सरकार के विधि मामलों के सलाहकार ने कहा कि अगरतला की घटना भारत सरकार की "विफलता" है. विधि मामलों के सलाहकार आसिफ नजरुल ने फेसबुक पोस्ट में लिखा, "भारत को यह समझना चाहिए कि यह शेख हसीना का बांग्लादेश नहीं है." एक दिन पहले, अगरतला में हजारों लोगों ने बांग्लादेश के मिशन के पास प्रदर्शन किया था, जिसमें उन्होंने चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के साथ-साथ बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हमलों का विरोध किया था. 


भारत-बांग्लादेश के बीच बढ़ा तनाव


भारतीय दूत की यात्रा पर विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन ने मीडिया को अपनी संक्षिप्त टिप्पणी में बताया कि “उन्हें (वर्मा को) आने के लिए कहा गया है.” सरकारी न्यूज एजेंसी बांग्लादेश संवाद संस्था (बीएसएस) ने कहा कि भारतीय दूत शाम चार बजे विदेश मंत्रालय में दाखिल हुए. बीएसएस ने बताया कि कार्यवाहक विदेश सचिव रियाज हमीदुल्ला ने भारतीय उच्चायुक्त को तलब किया. 5 अगस्त को अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के भारत आने के बाद से दोनों पड़ोसियों के बीच तनाव बढ़ गया है. इसके बाद पिछले सप्ताह हिंदू भिक्षु चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी ने इस तनाव को और भी बढ़ा दिया.


चिन्मय दास की जमानत याचिका पर अगले महीने होगी सुनवाई


बांग्लादेश की एक अदालत ने मंगलवार को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार चिन्मय कृष्ण दास की जमानत याचिका पर सुनवाई अगले महीने तक के लिए स्थगित कर दी, क्योंकि उनकी ओर से कोई वकील पेश नहीं हुआ. सम्मिलित सनातनी जागरण जोत में साधु के सहयोगी स्वतंत्र गौरांग दास ने दावा किया कि “राजनीति से प्रेरित वकीलों के समूह” की धमकियों के कारण किसी भी वकील ने हिंदू नेता का प्रतिनिधित्व नहीं किया. 


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