Pakistan: पाकिस्तानी संसद के नेशनल असेंबली में जबरन गुमशुदगी को जघन्य अपराध बनाने वाला विधेयक दोबारा पारित
पाकिस्तान में जबरन गुमशुदगी को लेकर विधेयक को दोबारा पारित कर दिया है. पाकिस्तान के निचले सदन नेशनल असेंबली ने पिछले साल नवंबर में विधेयक को मंजूरी दे दी थी.
Parliament of Pakistan: पाकिस्तान के निचले सदन नेशनल असेंबली ने जबरन गुमशुदगी को घोर अपराध घोषित करने से संबंधित विधेयक को दोबारा पारित कर दिया है. पाकिस्तान के कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक, 2022 के विवादास्पद धारा 514 को वापस लेने पर सहमति जताई थी.
जिसके बाद शुक्रवार (21 अक्टूबर) को विधेयक पारित कर दिया गया. इस विधेयक में झूठी शिकायत दर्ज कराने वालों को सजा देने का नियम है. ‘डॉन’ न्यूज लेटर के अनुसार, कई सांसदों ने धारा 514 का विरोध किया था.
झूठी शिकायत पर 5 साल की सजा
अभी के स्वरूप में विधेयक को वोट देने से इनकार कर दिया था. जिसके बाद धारा को हटा दिया गया. विरोध करने वालों में ज्यादातर सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल पार्टियों के सांसद थे. धारा में गुमशुदगी के बारे में झूठी शिकायत या जानकारी देने वाले को पांच साल कैद की सजा देने और एक लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान था.
पहले भी विधेयक को मिली थी मंजूरी
पाकिस्तान के निचले सदन नेशनल असेंबली ने पिछले साल नवंबर में विधेयक को मंजूरी दे दी थी. हालांकि, सरकार को इसे दोबारा असेंबली में पेश करना पड़ा क्योंकि सीनेट यानी उच्च सदन ने गुरुवार (20 अक्टूबर) को कुछ संशोधनों के साथ विधेयक पारित किया था.
विधेयक को एक्ट का रूप देने के लिए सीनेट को फिर से इसे पारित करना होगा. पाकिस्तान के बलूचिस्तान, कराची और कबायली इलाकों में वर्षों से जबरन गुमशुदगी के मामले सामने आते रहे हैं. इन क्षेत्रों में सुरक्षा बल आतंकवादियों और विद्रोहियों के खिलाफ लड़ रहे हैं.
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को धमकाना
UN के मुताबिक पाकिस्तान में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को डराए-धमकाए जाता है. उन्हें गुप्त ढँग से हिरासत में रखे जाता है. जिसको लेकर UN ने यातना और जबरन गायब करने की कड़ी निंदा भी कर चुका है.
उनका कहना है कि यह विश्व स्तर पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की आवाज को दबाने की कोशिश है. इसमें पाकिस्तान सरकार सीधे तौर पर शामिल होकर बैठी है.
जबरन गुमशुदगी का लम्बा इतिहास
पाकिस्तान में लोगों को जबरन गायब किए जाने की घटनाएं लम्बे समय से होती रही हैं, इसमें अक्सर सरकार और सेना की आलोचना करने वाले मानवाधिकारों, अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले और विपक्षी पार्टियों के कथित तौर पर नजदीकी कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जाता है.
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