ब्रिटेन के चुनावों में कंजरवेटिव पार्टी को जीत हासिल हुई है और एक बार फिर बोरिस जॉनसन पीएम बनेंगे. 650 सीटों वाली ब्रिटेन की संसद में कंजरवेटिव पार्टी ने 364 सीटें जीती हैं जबकि बहुमत के लिए 326 सीटों की जरूरत थी. माना जा रहा है कि ब्रेक्जिट मुद्दा जॉनसन की जीत का कारण बना.


जीत के बाद नए प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा कि उन्हें जो जनादेश मिला है वो ब्रेक्जिट के पक्ष में है और अब वो ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से अलग कराने वाली ब्रेक्जिट डील को लागू करा सकेंगे.



क्या है ब्रेक्जिट डील?


ब्रेक्जिट का मतलब है ब्रिटेन एक्जिट यानि ब्रिटेन का यूरोपीय यूनियन से बाहर जाना. 2016 में ब्रिटेन में ब्रेक्जिट को लेकर जनमत संग्रह किया गया था जिसमें 52 फीसदी लोगों का मानना था कि ब्रिटेन को यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलना चाहिए जबकि 48 फीसदी लोगों की राय ब्रेक्जिट के विरोध में थी.


अब 31 जनवरी तक ब्रिटेन की संसद को ब्रेक्जिट पर फैसला करना है और शायद यही कारण है कि जनता ने एक बार फिर से बोरिस जॉनसन को इतने भारी बहुमत के साथ सत्ता सौंपी है.


कंजरवेटिव पार्टी की सबसे बड़ी विरोधी लेबर पार्टी को केवल 203 सीटें मिलीं. पिछली बार की तुलना में जहां कंजरवेटिव की 47 सीटें बढ़ गईं वहीं लेबर पार्टी को 59 सीटों का नुकसान हुआ.



बोरिस जॉनसन (फोटो-getty image)

ईयू से क्यों अलग होना चाहता है ब्रिटेन


दरअसल साल 2008 में ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आने लगी थी, महंगाई और बेरोजगारी़ बढ़ रही थी वहीं जनता भी बेहद परेशान हो चुकी थी. ऐसे में ये मांग उठी कि ब्रिटेन को ईयू यानि यूरोपीय यूनियन से अलग हो जाना चाहिए.


इस मांग के पीछे तर्क ये था कि ब्रिटेन को हर साल ईयू के बजट के लिए 9 अरब डॉलर देने होते हैं, साथ ही फ्री वीजा पॉलिसी के कारण भी ब्रिटेन को नुकसान हो रहा है. ईयू से अलग होने की मांग करने वाले लोगों का मानना था कि ईयू ने ब्रिटेन की मंदी को दूर करने के लिए कुछ खास नहीं किया जबकि ब्रिटेन ने हमेशा ईयू के लिए काफी कुछ किया है.


ब्रेक्जिट विरोधियों की भी कमी नहीं


ऐसा नहीं था कि केवल ब्रेक्जिट की मांग उठाने वालों का ही दबदबा था, ऐसे लोगों की भी कमी नहीं थी जो ये मानते रहे हैं कि ब्रेक्जिट एक गलत फैसला होगा. ब्रेक्जिट विरोधियों का मानना है कि ऐसा करने से ब्रिटेन को ही नुकसान होगा, इससे ना केवल कारोबार प्रभावित होगा बल्कि जीडीपी पर भी भारी असर पड़ेगा.



ब्रेक्जिट पर हमेशा से रहा है बवाल


लंबे वक्त से ब्रेक्जिट पर बवाल रहा है. जनता और संसद इस मुद्दे पर दो फाड़ रही है हालांकि अब ऐसा लग रहा है कि ब्रेक्जिट समर्थकों की संख्या बढ़ रही है और शायद यही कारण भी है कि कंजरवेटिव पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला है. अब देखना ये भी होगा कि क्या जॉनसन 31 जनवरी 2020 तक ब्रेक्जिट को लागू करा पाएंगे? और क्या होगा ब्रेक्जिट के बाद? क्या वाकई इससे ब्रिटेन को फायदा होगा या फिर नुकसान हो जाएगा?