कोरोना के बाद अमेरिका के सामने एक नई मुसीबत, जानिए क्या है दिमाग को चट कर जानेवाला अमीबा
नेग्लरिया फाउलेरी ब्रेन संक्रमण का कारण बन सकता है. संक्रमण से होनेवाली बीमारी को अम्बेरिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस (पीएएम) कहा जाता है. बीमारी करीब-करीब घातक होती है.
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कोरोना वायरस के बाद अमेरिका को एक और नई मुसीबत से निबटना पड़ सकता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि 'दिमाग को चट कर जानेवाला अमीबा' नेग्लरिया फाउलेरी जलवायु परिवर्तन के कारण दक्षिणी हिस्से से पूर्वी हिस्सों की तरफ बढ़ रहा है. सेंटर फोर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के शोधकर्ताओं ने अमीबा से होनेवाले संक्रमण मामलों का अध्ययन कर चेतावनी जारी की है.
अमेरिका में नेग्लरिया फाउलेरी अमीबा से हड़कंप
उन्होंने पाया कि हर साल उजागर होनेवाले मामलों की संख्या बराबर है, मगर इस बार उसका भौगोलिक परिधि बदल रहा है और पहले से ज्यादा इंडियाना, मिशिगन, नॉर्थ डकोटा, ओहियो और विंसिकॉन्सिन जैसी जगहों पर बढ़ रहे हैं. सीडीसी के मुताबिक, नेग्लरिया फाउलेरी एक एकल कोशिका जीवित जीव है. ये आम तौर से गर्म झरनों, नदियों, तालाबों में पाया जाात है.
नेग्लरिया फाउलेरी ब्रेन संक्रमण का कारण बन सकता है. संक्रमण से होनेवाली बीमारी को अम्बेरिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस (पीएएम) कहा जाता है. संक्रमण से होनेवाली बीमारी करीब-करीब घातक होती है. शोधकर्ताओं का कहना है कि कोई शख्स उस वक्त अमीबा की चपेट में आकर संक्रमित होता है जब दूषित पानी नाक से शरीर में प्रवेश करता है.
अमीबा के संक्रमण से दिमाग के ऊत्तकों को नुकसान
इससे उसे ब्रेन में सूंघनेवाली तंत्रिकाओं के जरिए घुसने का रास्ता मिल जाता है और दिमाग के ऊत्तकों को क्षतिग्रस्त कर देता है. सीडीसी का कहना है कि नेग्लरिया फाउलेरी से दूषित पानी पीकर संक्रमित नहीं हो सकता क्योंकि अमीबा 45 डिग्री सेल्सियस (113 डिग्री फॉरेनहाइट) तक गर्म पानी में पनपता है. इसलिए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ग्लोबल वार्मिंग ने जीव के भौगोलिक दिशा को प्रभावित किया हो.
16 दिसंबर को इमरजिंग इंफेक्शियस डिजीज पत्रिका में प्रकाशित नए रिसर्च में शोधकर्ताओं ने नेग्लरिया फाउलेरी के अमेरिकी मामलों का अध्ययन किया और पाया कि उसका संबंध झील, तालाब, नदी या जलाशयों से है. रिसर्च से जुड़े शोधकर्ताओं का कहना है कि तापमान में बढ़ोतरी से जलाशयों के पानी का इस्तेमाल जैसे तैराकी और वाटर स्पोर्ट्स ज्यादा हो जाता है और इसका योगदान पीएएम के बदलते महामारी विज्ञान में हो सकता है.
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