Dr. Kajal Sharma: ब्रिटेन में नस्लीय भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने वाली भारतीय लेक्चरर ने अपने केस में जीत हासिल कर ली है. भारतीय मूल की डॉ. काजल शर्मा ने पोर्ट्समाउथ विश्वविद्यालय के खिलाफ नस्लीय भेदभाव का मुकदमा दायर किया था. दरअसल डॉ. काजल शर्मा को जनवरी 2016 में पांच साल के लिए ब्रिटेन के विश्वविद्यालय में संगठनात्मक अध्ययन व मानव संसाधन प्रबंधन विभाग की ‘एसोसिएट हेड’ नियुक्त किया गया था. हालांकि पांच साल के बाद उनको इस पद के लिए दोबारा आवेदन करने का विक्लप मौजूद था. 


 रोजगार संबंधी अधिकरण ने डॉ. काजल शर्मा के पक्ष में सुनाया फैसला


पांच साल पूरे होने के बाद इस पद के लिए उनको नजरअंदाज किया गया. जिसके बाद उन्होंने नवंबर 2020 में विश्वविद्यालय की शिकायत प्रक्रिया के तहत इस मामलें में शिकायत दर्ज कराई थी. जिसमें कहा गया कि उनके साथ ब्रिटेन के समानता अधिनियम 2010 के तहत भेदभाव किया गया है. हालांकि अब उन्होंने मुकदमा जीत लिया है. इस साल 29 नवंबर को ब्रिटेन के रोजगार संबंधी अधिकरण ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाया है.जिसमें उन्होंने कहा कि डॉ. काजल शर्मा के अश्वेत और अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध रखने वाली कर्मचारी थी. उन्होंने आगे कहा कि वह एक विशिष्ट भारतीय उच्चारण के साथ बोलती हैं. अधिकरण ने पाया कि लेक्चरर के साथ भेदभाव हुआ है, जिसके बाद उन्होंने उनके पक्ष में फैसला सुनाया था.


क्या कहता है ब्रिटेन का समानता अधिनियम 2010


ब्रिटेन का समानता अधिनियम 2010 लोगों को कार्यस्थल और व्यापक समाज में भेदभाव से कानूनी रूप से बचाता है. इसने पिछले भेदभाव-विरोधी कानूनों को एक अधिनियम के साथ बदल दिया, जिससे कानून को समझना आसान हो गया और कुछ स्थितियों में सुरक्षा को मजबूत किया गया है. 


कौन हैं डॉ. काजल शर्मा? 


डॉ. काजल शर्मा  ने 2010 में विश्वविद्यालय में शामिल होने से पहले संयुक्त राष्ट्र और भारत में विभिन्न क्षमताओं में शिक्षण, सीखने और शोध में योगदान में छह साल बिताए हैं. हालांकि वह इस समय ब्रिटेन के पोर्ट्समाउथ विश्वविद्यालय में, सब्जेक्ट ग्रुप रिसोर्सर (OSHRM) की सामान्य प्रबंधन की भूमिका में हैं. वह एमएससी लीडरशिप हेल्थ एंड वेलबीइंग-पोस्टग्रेजुएट प्रोग्राम सूट के लिए कोर्स लीडर भी हैं.


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