लंदन: ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमंस ने यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलने के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के समझौते को बृहस्पतिवार को मंजूरी दे दी. समझौते के पक्ष में 330 वोट जबकि विरोध में 231 वोट पड़े. इसी के साथ वर्षों की देरी के बाद ब्रिटेन के 31 जनवरी को यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलने का मार्ग प्रशस्त हो गया है.


हालांकि अभी 'ईयू-यूके विदड्रॉवल एग्रीमेंट बिल' को अनिर्वाचित हाउस ऑफ लॉर्ड्स और यूरोपीय संसद द्वारा पारित किया जाना बाकी है, जिसे केवल औपचारिकता मात्र माना जा रहा है. ब्रिटेन यूरोपीय संघ की 50 साल पुरानी अपनी सदस्यता खत्म करने की ओर बढ़ रहा है.


क्या है ब्रेक्जिट डील?


ब्रेक्जिट का मतलब है ब्रिटेन एक्जिट यानि ब्रिटेन का यूरोपीय यूनियन से बाहर जाना. 2016 में ब्रिटेन में ब्रेक्जिट को लेकर जनमत संग्रह किया गया था जिसमें 52 फीसदी लोगों का मानना था कि ब्रिटेन को यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलना चाहिए जबकि 48 फीसदी लोगों की राय ब्रेक्जिट के विरोध में थी.


अब 31 जनवरी तक ब्रिटेन की संसद को ब्रेक्जिट पर फैसला करना है और शायद यही कारण है कि जनता ने एक बार फिर से बोरिस जॉनसन को इतने भारी बहुमत के साथ सत्ता सौंपी है.


कंजरवेटिव पार्टी की सबसे बड़ी विरोधी लेबर पार्टी को केवल 203 सीटें मिलीं. पिछली बार की तुलना में जहां कंजरवेटिव की 47 सीटें बढ़ गईं वहीं लेबर पार्टी को 59 सीटों का नुकसान हुआ.


ईयू से क्यों अलग होना चाहता है ब्रिटेन


दरअसल साल 2008 में ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आने लगी थी, महंगाई और बेरोजगारी़ बढ़ रही थी वहीं जनता भी बेहद परेशान हो चुकी थी. ऐसे में ये मांग उठी कि ब्रिटेन को ईयू यानि यूरोपीय यूनियन से अलग हो जाना चाहिए.


इस मांग के पीछे तर्क ये था कि ब्रिटेन को हर साल ईयू के बजट के लिए 9 अरब डॉलर देने होते हैं, साथ ही फ्री वीजा पॉलिसी के कारण भी ब्रिटेन को नुकसान हो रहा है. ईयू से अलग होने की मांग करने वाले लोगों का मानना था कि ईयू ने ब्रिटेन की मंदी को दूर करने के लिए कुछ खास नहीं किया जबकि ब्रिटेन ने हमेशा ईयू के लिए काफी कुछ किया है.


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