इस बिल के मंजूर होने के बाद ब्रिटिश सरकार ईयू की लिस्बन संधि के आर्टिकल- 50 को अमल में लाकर ईयू से बाहर निकलने के लिए दो साल तक चलने वाली बातचीत को औपचारिक तौर पर शुरू कर सकती है.
सांसदों ने इस बिल को 114 के मुकाबले 498 मतों से मंजूरी दी. बताते चलें कि देश की सुप्रीम कोर्ट ने देश की सरकार को बताया था कि बिना संसद की सहमति के आर्टिकल- 50 को अमल में नहीं लाया जा सकता है.
इसके पहले बीते साल 23 जून को ब्रिटेन की जनता ने देश के यूरोपिय यूनियन से बाहर होने या उसमें बने रहने के प्रस्ताव पर बोटिंग की थी जिसमें बाहर जाने वाले वोटर्स की संख्या ज़्यादा रही.
यूरोपियन यूनियन यूरोपिय देशों का एक सूमह है. ऐसे समूह दक्षिण एशियाई देशों के समूह सार्क के जैसे होते हैं. इनका प्रमुख उद्देश्य फ्री ट्रेड यानि मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना होता है.
ग्लोबलाइज़ेशन के बाद ऐसे समूहों की बाढ़ सी आ गई लेकिन 2008 में आई वैश्विक मंदी की वजह से इसके जनक अमेरिका और यूरोप के देश जो लंबे समय से मुक्त व्यापार की वकालत करते रहे हैं, इससे पैर बाहर खिंचने लगे. ब्रेक्ज़िट और ट्रंप का चुना जाना वैश्विकरण के कमज़ोर होने की ओर इशारा करते हैं.