लंदन: कैंब्रिज एनालिटिका वही कंपनी ने है जिसपर करोड़ों फेसबुक यूजर्स का डेटा गलत तरीके से इस्तेमाल करके अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति का चुनाव जितवाने और यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन के अलग होने के कैंपेन ब्रेक्ज़िट को प्रभावित करने के आरोप लगे हैं. ऐसे में आपके लिए जानना बेहद ज़रूरी है कि आखिर कैंब्रिज एनालिटिका किस तरह की कंपनी है, कैसे काम करती है, ये कंपनी क्या काम करती है और भारत में इस कंपनी की कौन-कौन से राजनीतिक पार्टियां क्लाइंट रह चुकी है.


Cambridge Analytica- क्या है इसका काम


कैंब्रिज एनालिटिका ब्रिटेन के लंदन में स्थिति के analytics कंपनी है, मतलब इसका काम डेटा विश्वेषण का है. कैंब्रिज एनालिटिका जिस कंपनी का छोटा सा हिस्सा है उसका नाम Strategic Communication Laboratories है. Cambridge Analytica का काम किसी चुनाव या कैंपेन के दौरान उससे जुड़े कैंडिडेट्स या संस्था को ऑनलाइन मीडियम से एंड यूजर्स तक पहुंचाने का है.



कंपनी का लंदन स्थित ऑफिस

एंड यूजर्स को प्रभावित करने के लिए ये कंपनी उनका प्रोफाइल बनाने का काम करती है. जिसका प्रोफाइल ये कंपनी बनाती है उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं होती. प्रोफाइल बनाने के लिए कैंब्रिज एनालिटिका कई सोर्सेज़ से डेटा इक्ट्ठा करती है. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के लिए इस कंपनी ने फेसबुक से भारी मात्रा में इसके यूज़र्स का डेटा चुराया.


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डेटा इक्ट्ठा करने के लिए ये कंपनी पोलिंग भी करवाती है जिसके सहारे यूज़र्स से उनकी राय ली जाती है ताकि उनके विचार जानने के बाद उसे प्रभावित किया जा सके. सारा डेटा इक्ट्ठा करने और उसके सहारे यूज़र्स की प्रोफाइल बनाने के बाद ये कंपनी कंप्यूटर प्रोग्राम का इस्तेमाल करती है ताकि एंड यूजर्स या वोटर्स के विचारों को प्रभावित किया जा सके. इसके लिए कंपनी अलग से ऐसे ऐड यानी प्रचार की सामग्री तैयार करती है जिससे सीधे तौर पर यूज़र की सोच पर हमला किया जाता है और उसके विचारों को बदल दिया जाता है.



कंपनी के पास ऑनलाइन यूज़र्स के डेटा का अंबार है. प्राप्त जानकारी के अनुसार कंपनी के पास 50 मिलियन लोगों के 5000 डेटा प्वाइंट्स हैं. एक डेटा प्वाइंट एक जानकारी के बराबर होता है, ऐसे में कंपनी के मुताबिक उसके पास पांच करोड़ लोगों में से हर वोटर से जुड़ी करीब 5000 जानकारियां हैं. आपको बता दें कि अमेरिका में कुल वोटरों की संख्या 235 मिलियन के करीब है.


कैसे चोरी हुआ फेसबुक यूज़र्स का डेटा



साल 2013 में केंब्रिज यूनिवर्सिटी के रीसर्चर एलेकेज़ेंडर कोगन ने एक पर्सनैल्टी क्विज़ एप बनाया. तीन लाख लोगों ने इसे इंस्टॉल किया. इंस्टॉल करने वालों ने अपनी और अपने दोस्तों की जानकारी इस एप के साथ साझा की. उस समय फेसबुक जैसे काम कर रहा था उसकी वजह से एप इंस्टाल करने वाले तीन लाख लोगों के जरिए कोगन ने करोड़ों लोगों का डेटा हासिल कर लिया.


जकरबर्ग ने लिखा है कि साल 2015 में द गार्डियन अख़बार के हवाले से फेसबुक को ये पता चला कि कोगन ने फेसबुक यूजर्स का डेटा कैंब्रिज एनालिटिका नाम की कंपनी के साथा शेयर की. वो आगे लिखते हैं कि ऐसे डेटा शेयर करना फेसबुक की पॉलिसी के खिलाफ है क्योंकि इसके लिए पहले आपको यूज़र की अनुमति लेनी पड़ती है. इसलिए फेसबुक ने कोगन के एप को तुंरत अपने प्लेटफॉर्म से बैन कर दिया.


खास बात ये है कि डेटा चोरी करने वाली कैंब्रिज एनालिटिका की इंडियन फर्म स्ट्रेटेजिक कम्युनिकेशन्स लैबोरेट्रीज प्राइवेट लिमिटेड और ओवलेने बिजनेस इंटेलिजेंस से केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी, मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और बिहार की सत्ताधारी पार्टी जेडीयू ने मदद ली है.