भारत ने मंगलवार (16 जुलाई, 2024) को मॉरीशस में अपनी दो दिवसीय यात्रा के दौरान ऐसा फैसला लिया, जिससे ब्रिटेन और अमेरिका नाराज हो सकते हैं. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चागोस द्वीपसमूह के मुद्दे पर मॉरीशस को भारत के समर्थन की पुष्टि की है. चागोस द्वीप 50 साल से भी ज्यादा समय से मॉरीशस और ब्रिटेन के बीच विवाद का मुद्दा है और अमेरिका भी इसमें शामिल है. इसके चलते ऐसी अटकले लगाई जा रही हैं कि भारत ने इस फैसले से दोनों देशों से पंगा ले लिया है.
एस. जयशंकर ने मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुइस में पीएम प्रविंद कुमार जगन्नाथ के साथ एक कार्यक्रम में कहा, 'प्रधानमंत्री जी, जैसा कि हम अपने गहरे और स्थाई संबंधों को देखते हैं, मैं आज आपको फिर से आश्वस्त करना चाहूंगा कि चागोस के मुद्दे पर भारत उपनिवेशवाद के उन्मूलन और राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए अपने मुख्य रुख के अनुरूप मॉरीशस को अपना निरंतर समर्थन जारी रखेगा.'
भारत भी एक समय ब्रिटेन का उपनिवेश था और संभवतः एक समान औपनिवेशिक अतीत से प्रेरित होकर मॉरीशस के विदेश मंत्री मनीष गोबिन ने तुरंत इस भावना का समर्थन किया. कार्यक्रम के तुरंत बाद गोबिन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर कहा, 'हम डॉ. जयशंकर के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं कि उन्होंने चागोस द्वीपसमूह के संबंध में मॉरीशस को लगातार समर्थन दिया है, जो उपनिशेववाद के अंत, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर भारत के सैद्धांतिक रुख के अनुरूप है.'
क्या है चागोस द्वीप?
चागोस द्वीपसमूह 58 आईलैंड से बना एक प्रवाल या एटॉल द्वीप समूह है. प्रवाल द्वीप उस स्थल को कहते हैं, जो चारों ओर से आंशिक या पूर्ण रूप से समुद्र से घिरा हो. चागोस द्वीपसमूह 60 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला है और मॉरीशस के मुख्य द्वीप से लगभग 2,200 किमी उत्तर-पूर्व में, तिरुवनंतपुरम से लगभग 1,700 किमी दक्षिण-पश्चिम में और मालदीव से 500 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
चागोस द्वीप को लेकर क्या है विवाद?
मॉरीशस चागोस को अपना हिस्सा मानता है, जबकि इस पर ब्रिटेन का कब्जा है. मॉरीशस सरकार की वेबसाइट के अनुसार, चागोस द्वीपसमूह 18वीं शताब्दी से मॉरीशस गणराज्य का हिस्सा रहा है, तब यह एक फ्रांसीसी उपनिवेश था और इसे आइल डी फ्रांस के नाम से जाना जाता था.
वेबसाइट के अनुसार, 'चागोस द्वीपसमूह और आइल डी फ्रांस का हिस्सा बनने वाले अन्य सभी द्वीपों को 1810 में फ्रांस ने ब्रिटेन को सौंप दिया था और आइल डी फ्रांस का नाम बदलकर मॉरीशस कर दिया गया था. ब्रिटिश शासन की पूरी अवधि के दौरान चागोस द्वीपसमूह का प्रशासन मॉरीशस के हिस्से के रूप में जारी रहा. साल 1965 में इसे मॉरीशस से अवैध रूप से अलग कर दिया गया.
साल 1967 में ब्रिटेन ने सभी नागरिकों को जबरन हटाकर इसे अमेरिका को किराए पर दे दिया. इसके मुख्य द्वीप डिएगो गारसिया पर अमेरिका का मिलिट्री बेस है. तभी से यह विवाद चला आ रहा है. साल 1968 में ब्रिटेन ने चागोस को आजाद कर दिया, लेकिन इसे मॉरीशस को देने से इनकार कर दिया. ब्रिटेन ने मॉरीशस को धमकी दी थी कि अगर उसने चागोस पर उसकी बात नहीं मानी तो आजादी नहीं मिलेगी, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री शिवसागर रामगुलाम को मजबूरन हामी भरनी पड़ी.
मॉरीशस कई बार अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चागोस का मुद्दा उठा चुका है. संयुक्त राष्ट्र महासभा का 2019 का प्रस्ताव है जो पुष्टि करता है कि चागोस द्वीपसमूह मॉरीशस का एक अभिन्न अंग है और मांग करता है कि ब्रिटेन छह महीने की अवधि के अंदर बिना शर्त चागोस द्वीपसमूह से अपना औपनिवेशिक प्रशासन वापस ले ले. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने भी मॉरीशस को चागोस लौटाने का निर्देश दिया, लेकिन ब्रिटेन ने इसे एडवाइजरी बताकर मानने से इनकार कर दिया.