Chat GPT: दुनिया में इस समय चैट जीपीटी की चर्चा काफी तेजी से हो रही है. इसके बारे में कहा जा रहा है कि यह गूगल सर्च को भी टक्कर दे सकता है. इसका निर्माण ओपन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के द्वारा किया गया है जो कि एक प्रकार का चैट बॉट है. 


चैट जीपीटी को लेकर कहा जा रहा है कि इस मॉडल की वजह से नौकरियां खत्म होंगी. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर काम करने वाले इस चैट बॉट को बेहद कारगर माना जा रहा है. यूजर्स आंख मूंदकर इसे प्रयोग कर रहे हैं. वहीं कुछ यूजर्स ऐसे हैं जो इसी के भरोसे बैठे हैं. अगर आपके दिमाग में भी चैट जीपीटी को लेकर बहुत कुछ चल रहा है तो यह खबर आपके लिए है. 


गलतियां कर रहा है चैट जीटीपी


दरअसल, भाषाई मॉडल में प्रभावशाली क्षमताएं तो होती हैं लेकिन इनकी तार्किक शक्ति कमजोर होती है. ये ऐसी-ऐसी गलतियां कर जाते हैं, जिनकी उम्मीद नहीं की जाती. चैट जीपीटी का हाल भी कुछ ऐसा ही है. कई बार चैट जीपीटी बड़ी गलतियां कर जा रहा है. 


इसको लांच करते वक्त दावा किया गया था कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की वजह से ही यह काम करेगा. आप इससे किसी भी तरह का सवाल करके जानकारी प्राप्त कर सकते है. वो भी बिल्कुल सटीक और सधी हुई. लेकिन कभी-कभी ये मॉडल चीजों को आसान बनाने के बजाय और जटिल बना देता है.


चैट जीपीटी को लेकर एक टीम ने रिसर्च किया है. रिसर्च में वही तरीका अपनाया गया जो ‘सर्च इंजन’ गूगल के बीईआरटी मॉडल की पड़ताल के समय अपनाया गया था. बीईआरटी शुरुआती बड़े भाषा संबंधी एआई मॉडल में शुमार है. इसे ‘बर्टोलॉजी’ भी कहा जाता है. बीईआरटी पर किए गए रिसर्च में पहले ही बहुत कुछ पता चल चुका है कि ऐसे मॉडल क्या कर सकते हैं और कहां गलती करते हैं.


उदाहरण के लिए कई भाषा मॉडल भाव को नहीं समझ पाते हैं और वे केवल रिजल्ट देते हैं. कई बार ये आसान चीजों को और जटिल बना देता है. चैट जीपीटी गलत उत्तर भी पूरे आश्वस्त होकर बताता है. ऐसे में ब्लंडर होने के चांस बढ़ जाते हैं. 


पूछा गया सवाल


बीईआरटी मॉडल पर एक सवाल पूछा गया और उसके दो विकल्प दिए गए. सवाल था कि आप एक सिक्का उछालते हैं और यदि चित आता है, तो आप एक हीरा जीत जाएंगे. यदि पट आता है, तो आप एक कार खो देंगे. दोनों में से किसमें फायदा है?


जवाब जानिये 


ऐसे में बीईआरटी को पहला विकल्प चुनना था, लेकिन वह बार बार दूसरा विकल्प चुनता रहा. इससे पता चला कि उसे नफा-नुकसान के बारे में नहीं पता है. साथ ही यह भी मालूम हुआ कि ये मॉडल सीमित दायरे में सोचकर ही किसी सवाल का जवाब दे पाते हैं. इसके अलावा भी हमने कई और प्रयोग किए, जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि ऐसे मॉडल पर आंख मूंद कर विश्वास नहीं किया जा सकता और इन पर मिले परिणाम बिल्कुल सही नहीं हो सकते, लिहाजा इनमें अब भी काफी सुधार की गुंजाइश है.


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