China 6G Tech: चीन ने 'सबमरीन डिटेक्टिंग डिवाइस' यानी पनडुब्बी का पता लगाने वाले डिवाइस का टेस्ट किया है. इस टेस्ट को नेक्स्ट-जनरेशन कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के आधार पर किया गया है. चीन का मकसद पानी के भीतर मौजूद दुश्मन की पनडुब्बियों का पता लगाना है. इसके लिए वह 6जी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहा है. जहां दुनिया अभी 4जी, 5जी पर है, वहीं चीन अब 6जी का इस्तेमाल करने लगा है. 


पनडुब्बियों को दुनिया के सबसे बेहतरीन हथियारों में से एक माना जाता है. वह दुश्मन के इलाके में आसानी से घुस सकती हैं. पनडुब्बियों के जरिए पानी के भीतर कई-कई दिनों तक छिपे रहकर मिशन को अंजाम दिया जा सकता है. पनडुब्बियों का पता लगाना किसी भी देश के लिए टेढ़ी खीर है. यही वजह है कि चीन अब पनडुब्बियों का 'शिकार' करने के लिए उन्हें ढूंढने वाला डिवाइस तैयार कर रहा है. 


कैसे काम करता है चीन का डिवाइस?


चीन के पनडुब्बी ढूंढने वाले डिवाइस का नाम 'टेराहर्ट्ज डिवाइस' है. पनडुब्बियां जब पानी के भीतर चलती हैं, तो वह समुद्र में कंपन पैदा करती हैं, जिसे पकड़ना बहुत मुश्किल होता है. चीन के बनाए 'टेराहर्ट्ज डिवाइस' के जरिए पनडुब्बियों की हल्की से हल्की कंपन को बड़ी आसानी से रिकॉर्ड किया जा सकता है. इससे पनडुब्बी की लोकेशन पता लगाकर उसे तबाह किया जा सकता है. 


साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक, पनडुब्बियों से होने वाले कंपन को वर्तमान में मौजूद टेक्नोलॉजी के जरिए पकड़ना नामुमकिन है. अगर इसे रिकॉर्ड कर लिया जाए, तो पनडुब्बी का मॉडल भी आसानी से बताया जा सकता है. चीन की नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ डिफेंस टेक्नोलॉजी की प्रोजेक्ट टीम ने कहा कि इस टेक्नोलॉजी में पानी के भीतर जहाज का पता लगाने की सबसे बेहतरीन क्षमता है.


दरअसल, टेराहर्ट्ज माइक्रोवेव और इंफ्रारेड रेडिएशन के बीच एक फ्रीक्वेंसी रेंज है. टेराहर्ट्ज टेक्नोलॉजी के जरिए कम से कम समय ज्यादा से ज्यादा डेटा भेजा जा सकता है. यही वजह है कि इसे नेक्स्ट-जनरेशन कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी या 6G के तौर पर जाना जाता है. चीन के कुछ एयरपोर्ट्स पर टेराहर्ट्ज टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया भी जा रही है, ताकि यात्रियों के कपड़ों के भीतर छिपे अवैध चीजों को पकड़ा जा सके. 


चीन क्यों कर रहा 'टेराहर्ट्ज डिवाइस' पर काम? 


दरअसल, चीन के दो पड़ोसी देश साउथ कोरिया और जापान की अमेरिका से गहरी दोस्ती है. अमेरिका इनकी मदद से चीन पर लगाम कसने के लिए प्रशांत महासागर और दक्षिण चीन सागर में अपनी पनडुब्बियों को ऑपरेट करता है. चीन को अमेरिकी पनडुब्बियों से खतरा है. 2021 में एक अमेरिकी पनडुब्बी दक्षिण चीन सागर में दुर्घटनाग्रस्त भी हुई थी, जो चीन के इलाके में अमेरिका की मौजूदगी की पुष्टि करती है. 


चीन को लगता है कि अगर अमेरिका की पनडुब्बियों पर नजर नहीं रखा गया, तो आने वाले वक्त में यहां उनकी भरमार हो सकती है. उसके मन में ये भी डर है कि अगर भविष्य में ताइवान को लेकर युद्ध हुआ, तो जमीन और समुद्र से तो युद्ध लड़ा ही जाएगा. मगर समुद्र के भीतर से भी हथियारों की लॉन्चिंग होगी. इन बातों को ध्यान में रखकर वह 'टेराहर्ट्ज डिवाइस' पर काम कर रहा है. 


यह भी पढ़ें: चीन में शादी करने वाले कपल को सरकार दे रही इनाम, बस पूरी करनी होगी ये शर्त