नई दिल्ली: भारत के पड़ोसी देश नेपाल में राजनीतिक माहौल इस वक्त बेहद गर्म है. सत्ताधारी नेपाल कम्यूनिष्ट पार्टी विभाजन की ओर बढ़ रही है. मंगलवार को पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' ने खेमे ने प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली को सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष पद से हटाने का एलान किया.


वहीं दूसरी ओर ओली ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को आश्चर्यचकित करते हुए रविवार को राष्ट्रपति से संसद भंग करने की सिफारिश कर दी और इसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई. संसद भंग करने को लेकर नेपाल की सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई शुरू हो गई है.


इसके साथ ही दोनों ही खेमों ने पार्टी की मान्यता एवं चुनाव चिन्ह को अपने पास रखने के लिए प्रयास तेज कर दिए हैं. मामला है साफ है कि सत्ता के लिए लंबे समय में चल रहे संघर्ष में अब दोनों ही खेमे किसी भी सीमा तक जाने को तैयार हैं.


नेपाल की इस सियासी हलचल में अपने विस्तारवाद के दुनियाभर में पहचान बना चुका चीन भी सक्रिय हो गया है. चीन चाहता है कि नेपाल में सत्ताधारी एनसीपी का विभाजन ना हो. इसके लिए उसने अपने मोहरे भी बिछाने शुरू कर दिए हैं. नेपाल में चीन की राजदूत होउ यांकी ने मुलाकातों का सिलसिला शुरू कर दिया है.


दरअसल प्रचंड गुट विपक्षी पार्टी जनता समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर स्पीकर को बहुमत का पत्र सौंपने वाला है. इसके साथ प्रचंड गुट मांग करेगा कि संसद की बैठक बुलाई जाए. चीन की भूमिका भी यहीं से शुरू होती है.


जानकारी के मुताबिक चीनी राजदूत ने कल राष्ट्रपति से मिलकर संसद की बैठक बुलाने और ओली का साथ नहीं देने की सलाह दी थी. इतना ही नहीं चीन प्रचंड को एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी सौंपना चाहता है. चीनी राजदूत ने राष्ट्रपति से यहां तक कहा कि अगर वह ओली का साथ छोड़कर प्रचंड का साथ देने के लिए तैयार हो तो उसके खिलाफ महाभियोग नहीं लगाया जाएगा.


कल रात ही चीनी राजदूत ने इस पूरे प्रकरण में तटस्थ रहे गृहमंत्री रामबहादुर थापा और उपाध्यक्ष बामदएव गौतम से भी बातचीत की थी . उन दोनों को प्रचंड का साथ देने के लिए दबाव डाला है. इसके अलावा मधेशी दल के नेता उपेन्द्र यादव और पूर्व प्रधानमंत्री डा बाबूराम भट्टराई को भी प्रचंड के पक्ष‌ में रहने के लिए कहा है.


प्रचंड के आखिर प्रधानमंत्री क्यों बनाना चाहता चीन?
सत्ताधारी पार्टी की टूट से बचाने के पीछे चीन की इस छटपटाहट का मुख्य कारण है कि वो पर्दे के पीछे से नेपाल की राजनीति को अपने हाथ में लेना चाहता है. दरअसल नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का झुकाव चीन की साफ देखा गया. समय समय पर उनके बयान और कई ऐसी रिपोर्ट सामने आई हैं, जिनसे पता चलता है चीन ने उन पर पूरी तरह शिकंजा कसा हुआ है.


चीन अब सत्ताधारी पार्टी के दूसरे बड़े नेता और प्रचंड को भी अपने पाले में करना चाहता है. केपी शर्मा ओली पहले से ही चीन के करीबी माने जाते हैं. ऐसे में चीन पुष्प कमल दहल प्रचंड को प्रधानमंत्री बनाकर उन पर भी अपनी मर्जी चलाने का रास्ता साफ कर रहा है.

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