China's Loan Diplomacy: चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया में बसा एक ऐसा देश है जिसकी तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था और विस्तारवादी इरादों ने भारत से लेकर यूरोप और अमेरिकी ताकतों को आशंकित कर रखा है. चीन का हर कदम दुनिया के लिए आशंकाओं भरा कदम होता है. इसके पीछे की एक मात्र वजह अपने विस्तार को लेकर उसकी आक्रामकता है.


भारत की हिमालयी पर्वत श्रंखलाओं से लेकर साऊथ चाइना सागर तक चीन के इरादे भौगोलिक विस्तार के हैं. सिंगापुर से लेकर सियोल तक, बीआरआई से लेकर न्यूयार्क तक उसकी नीतियां आर्थिक विस्तारवाद की हैं. अपनी इन महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए धन को वह ईंधन के रूप में बीते कई दशकों से इस्तेमाल कर रहा है, क्योंकि चक्र एक सा है. अगर व्यापार बढ़ेगा तो धन बढ़ेगा, धन बढ़ेगा तो सेना बढ़ेगी और सेना बढ़ेगी तो विस्तारवाद की नीतियां भी बढ़ेंगी.


'चीन के कर्ज में कई शर्तें, सभी शर्तें चीन को फायदा पहुंचाने वाली'
ऐसे में चीन ने सामरिक रूप से अहम भौगोलिक जगहों पर बसे देशों को विकास और बुनियादी ढ़ांचे में विस्तार को लेकर सशर्त कर्ज देना शुरू कर दिया. इन सभी देशों की अर्थव्यवस्था निचले से मध्यम थी. कई शर्तों में एक शर्त यह भी बनी कि उन देशों को एक तय समय में कर्ज लौटाना होगा, कर्ज नहीं लौटाने की स्थिति में उसे चीन को कुछ अधिकार देने होंगे. इसके शिकार दुनिया के कई देश बन चुके हैं. कर्ज इतना बढ़ चुका है कि प्रायोगिक रूप से उनकी अर्थव्यवस्था इतना पैसा लौटाने की स्थिति में ही नहीं है. आने वाले सालों तक भी ऐसी स्थिति बनी रहने वाली है. 


चीन कह रहा है कि उसका पैसा यहां फंस चुका है. सवाल यह है कि अब वह यह पैसा कैसे वसूल करेगा. पैसा देते समय जो शर्तें हुईं थी उनमें एक शर्त यह भी थी कि पैसा नहीं लौटाने की स्थिति पर चीन उस देश के बुनियादी ढ़ांचे का इस्तेमाल करेगा. उदाहरण के तौर पर अगर हम सिल्क रूट में आने वाले देश पाकिस्तान की बात करें तो चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह बनने में मदद की थी. इस बंदरगाह को पाकिस्तान में बनाने के लिए ज्यादातर पैसा चीन ने दिया था. 


40 साल के लिए चीनी कंपनी को लीज पर मिला ग्वादर बंदरगाह
जाहिर तौर पर पाकिस्तान के पास इतना पैसा नहीं है, लिहाजा चीन की सरकार द्वारा संचालित होने वाली एक कंपनी को ग्वादर का अगले 40 साल के लिए पूरा प्रबंधन सौंप दिया. ग्वादर बंदरगाह से आने वाले ज्यादातर पैसे का लाभ चीन को मिलता है. इस बंदरगाह को बनाया भी चीन की कंपनी ने ही है और लाभ भी चीन को हो रहा है. शर्तों के मुताबिक जिस राज्य में यह बना है उसको इस व्यापार से कोई आर्थिक फायदा नहीं मिलता है. पाकिस्तान सरकार को जो पैसा मिलता है उसका प्रतिशत कुल मुनाफे के मुकाबले बेहद कम है.


हंबनटोटा पर भी चीन का अपरोक्ष नियंत्रण
ऐसा ही कुछ श्रीलंका में हुआ. चीन ने श्रीलंका को हंबनटोटा बंदरगाह बनाने के लिए कर्ज दिया था. हंबनटोटा बंदरगाह का प्रोजेक्ट शुरुआत से ही विवादों में रहा है. विशेषज्ञों की माने तो यह प्रोजेक्ट ऐसा है ही नहीं कि इससे श्रीलंका को फायदा हो सके. हुआ भी यही, कई आंतरिक और वैश्विक कारणों की वजह से श्रीलंका इन दिनों कठिन आर्थिक दौर से गुजर रहा है और उसकी अर्थव्यवस्था आने वाले कई सालों तक चीन को उसका पैसा चुकाने की स्थिति में नहीं है, ऐसे में चीन उस बंदरगाह का सैन्य इस्तेमाल करने के लिए श्रीलंका पर दबाव बना रहा है. 


चीन का श्रीलंका पर यह दबाव बढ़ता ही जा रहा है. हाल ही में चीन ने इसी बंदरगाह पर अपने दो कथित रिसर्च पोत भेजे. भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई, लेकिन ऐसा होने से रोका नहीं जा सका. भारतीय सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि चीनी नौसाने हंबनटोटा के जरिए भारत के सबसे नजदीक पहुंच सकती है. चीन ने मलेशिया को भी कर्ज दिया है. जो भारत का एक पडोसी देश है. इसके अलावा बांग्लादेश और नेपाल में भी वह कई प्रोजेक्ट लगा रहा है.


कुल कितने देशों को चीन ने दिया कर्ज?
अमेरिका की रिसर्च एजेंसी एडडाटा ने हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित की. इस रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने जिस देश को भी कर्ज दिया है, या उसके बुनियादी ढ़ांचे में निवेश किया है उनमें से 80 प्रतिशत आर्थिक मुश्किलों में घिरे हैं. रिपोर्ट में अंदाजा लगाया गया है कि बकाया कर्ज 1100 अरब डॉलर है जिसमें ब्याज भी शामिल है. 


इस रिपोर्ट में कोई आंकड़ा नहीं दिया गया है कि आखिर कितने देशों ने लोन नहीं चुकाया है, लेकिन इसमें कहा गया है कि बकाया भुगतान बढ़ता ही जा रहा है. 1,693 बीआरआई प्रोजेक्ट जोखिम में है और 94 प्रोजेक्ट या तो रद्द कर दिए गए हैं या रोक दिए गए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक कुछ प्रोजेक्ट में चीन ने लोन के भुगतान में देरी होने पर जुर्माने के तौर पर ब्याज दर को तीन प्रतिशत से 8.7 प्रतिशत कर दिया है. प्रतिक्रिया में कुछ विशेषज्ञों ने कहा, चीन कभी न खत्म होने वाला कर्ज देता है.


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