नई दिल्लीः हॉन्ग कॉन्ग को पूरी तरह से गुलाम बनाने के लिए चीन ने अपना आखिरी दांव भी चल दिया है. इसके बाद अब हॉन्ग कॉन्ग में जिनपिंग तंत्र पूरी तरह से हावी हो जाएगा. चीन के नए नियमों के मुताबिक हॉन्ग कॉन्ग की 90 सदस्यों वाली एग्जिक्यूटिव एसेम्बली में सिर्फ 20 सदस्य ही जनता के वोट से चुनकर आएंगे. बाकी 70 सदस्य अलग-अलग प्रक्रियाओं के तहत चुनकर सदन पहुंचेंगे. बता दें कि हॉन्ग कॉन्ग लंबे समय से चीन के शिकंजे से आजाद होने के लिए संघर्ष कर रहा है. लेकिन ये बात चीन को मंजूर नहीं है यही कारण है कि पहले तो चीन ने लोकतंत्र की मांग करने वालों को ताकत के दम पर कुचला. लेकिन इससे भी बात नहीं बनी तो उसने दमनकारी कानूनों का सहारा लिया है.


चीन ने जून 2020 राष्ट्रीय सुरक्षा कानून बनाया, जिससे उसे प्रदर्शनकारियों पर सख्ती की छूट मिल गई. इस कानून का विरोध हुआ तो चीन नया प्रत्यर्पण बिल लाया, जिससे सड़क पर जंग छिड़ गई. मजबूरन चीन को प्रत्यर्पण बिल वापस लेना पड़ा. इससे चीन समझ गया कि हॉन्ग कॉन्ग को अपने शिकंजे में करने के लिए ऐसा कानून बनाना होगा कि जिसे हॉन्ग कॉन्ग को पूरी तरह से गुलाम बनाया जा सके.


चुनावी प्रक्रिया बदल दी गई


हॉन्ग कॉन्ग की एसेम्बली में 70 सदस्य है, पहले इनमें 35 लोग सीधे चुने जाते थे और 35 मनोनीत होते थे, जो ज्यादातर चीन समर्थक ही होते थे. चीन के नए नियम के मुताबिक अब सिर्फ 20 लोग ही सीधे चुने जाएंगे, 30 मनोनीत होंगे और 40 लोगों को चुनाव समिति करेगी.


नए नियम के तहत जो 40 लोग चुने जाएंगे,उन्हें चुनने के लिए एक चुनाव समिति होगी. जिसमें 1200 से 1500 लोग होंगे, और इन लोगों की नियुक्ति चीन करेगा. अब आप समझ सकते हैं कि इस तरह बनी सरकार का क्या मतलब होगा.


चीन ने अपने समर्थकों को हॉन्ग कॉन्ग की कुर्सी पर बिठा दिया


चीन ने बेहद शातिर तरीके सेहॉन्ग कॉन्ग की सरकार को पूरी तरह से खत्म करके अपने समर्थकों को हॉन्ग कॉन्ग की कुर्सी पर बिठा दिया है. क्योंकि हॉन्ग क़ॉन्ग में कौन चुनाव का उम्मीदवार होगा, इसके लिए उसने पिछले महीने ही एक नियम बना दिया था.


नए नियमों को मुताबिक हॉन्ग कांग में चुनाव के उम्मीदवार चीन तय करेगा, वो चाहे तो किसी भी उम्मीदवार का नामांकन रद्द भी कर सकता है और चुने हुए उम्मीदवार को किसी भी समय अयोग्य घोषित कर सकता है. हॉन्ग कॉन्ग में लोकतंत्र की मांग को पूरी तरह से कुचलने के बाद चीन ये दलील भी दे रहा है कि उसका मकसद देशभक्त सरकार बनाना है.


हॉन्ग कांग को लेकर चीन के फैसले पर अमेरिका नाराज है और उसने अपनी नाराजगी जताने में देर भी नहीं की. हॉन्ग कॉन्ग चीन के कब्जे में 1997 में आया, दो देश एक व्यवस्था के सिद्धांत पर चलने का फैसला हुए, लेकिन भूमाफिया चीन धीरे-धीरे हॉन्ग कान्ग को अपना गुलाम बना रहा है.


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